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जरुरी - बच्चों में प्रतिभा के अंकुर को पनपने दें Bachchon me pratibha ke ankur ko panpane den
जरुरी - बच्चों में प्रतिभा के अंकुर को पनपने दें Bachchon me pratibha ke ankur ko panpane den. बच्चों में छिपी प्रतिभा का पता लगाता है, बच्चों के अंदर छिपी प्रतिभा. बच्चों में कोई न कोई प्रतिभा छिपी है. प्रतिभा जन्मजात होती है या हासिल की जा सकती है? बाल कलाकारों की प्रतिभा देख चकित रह गए. अपने अंदर छुपी प्रतिभा को कैसे बाहर निकालें? माता-पिता को उस प्रतिभा का लाभ भी लेना चाहिए. बच्चे की प्रतिभा को को विकसित करने का प्रयत्न करें. बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है.

जब माता पिता अपने बच्चों का भविष्य और कार्य क्षेत्र स्वयं तय करते है तो बच्चे उस कार्यक्षेत्र में आधिकांशतः असफल होते हैं। बच्चे अक्सर शिकायत करते है कि उनकी इच्छा तो इंजीनियर बनने की थी, लेकिन उनके पिता जी उन्हें डॉक्टरर बनाना चाहते थे- ‘बगैर रूचि के मैं इस फील्ड में कैसे काम कर सकता हूँ?’’

जब माता पिता अपने बच्चों का भविष्य और कार्य क्षेत्र स्वयं तय करते है तो बच्चे उस कार्यक्षेत्र में आधिकांशतः असफल होते हैं। बच्चे अक्सर शिकायत करते है कि उनकी इच्छा तो इंजीनियर बनने की थी, लेकिन उनके पिता जी उन्हें डॉक्टरर बनाना चाहते थे- ‘बगैर रूचि के मैं इस फील्ड में कैसे काम कर सकता हूँ?’’
अब आप मुकेश को ही देखिए! उसकी रूचि इंजिनियर बनने की थी। मेहनत करके उसने इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला ले लिया। एक वर्ष पढ़ाई भी की और अच्छे अंक से उत्तीर्ण हुआ। उसके पिता जी व्यापारी थे, वे चाहते थे कि मुकेश उनका व्यापार संभाले, मां की भी इच्छा थी कि वह उनकी नजरों से दूर न रहे। अंततः मुकेश को इंजिनियरिंग की पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी और बेमन से उन्हें एम.ए. करना पड़ा।
आज स्थिति यह है कि मुकेश का नाम वहां से असामाजिक तत्वों की सूची में सबसे ऊपर है। क्या उसके माता-पिता ने ठीक किया? उसके भविष्य के साथ आखिर यह खिलवाड़ क्यों किया गया ? मुकेश न तो इंजिनियर बन सका, न अपने पिता का व्यापार संभाल पाया और नहीं अपनी मां की आंखों का तारा बन सका।
ऐसे ही माता-पिता को प्रसिद्ध मनोचिकित्सक ब्लूम चेतावनी देते हुए कहते हैं ‘अगर आप यह तय करके चलते है कि एक महान प्रतिभा का विकास करना है, तो शायद आपको सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि इसके लिए आप कुछ ज्यादा जोर लगायेंगे और ज्यादा जोर लगाने से बच्चों के मन में संचित भविष्य के सपने एक ही झटके में टूट जाते हैं। बच्चे उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते’’
वासंती एक दूसरा उदाहरण है। रायगढ़ कत्थक घराना की अंतिम कड़ी के रूप में पंडित फिरतू दास वैष्णव का स्मरण किया जाता है। उनकी घंटों रियाज करते देख कर उनकी बेटी वासंती भी घूम-घूम कर नाचने लगी। अपनी पांच वर्षीया बिटिया को ऐसा करते देख कर वे खुशी से झूम उठे और उसे उत्साहित करके कत्थक की बारीकियां और लय-ताल समझाने लगे, आज वासंती कत्थक नृत्य में निष्णात है।
ब्लूम मानते है कि विलक्षण प्रतिभासंपन्न बच्चों की झलक कम उम्र में ही उभर कर सामने आती है। इसके विपरीत वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि अध्ययनरत अधिकांश बच्चों के होनहार होने के संकेत आरंभ में नहीं, वषों कड़ी मेहनत करने के बाद सामने आते हैं। पियानोवादक जरूर लय के प्रति संवेदनशील और संगीत प्रवण होते है, लेकिन उनमें से आधे से भी कम ऐसे होते है कि जिनका सुर प्रारंभ से सही रहा हो। कई गणितज्ञ बचपन में पढ़ाई में कमजोर होते हैं। ओfलंपिक तैराकों के बारे में भी यह तथ्य सामने आया है कि उनमें पहले तैराकी के बारे में खास प्रतिभा नही थी।
मूलभूत शारीरिक और मानसिक योग्यता के अतिरिक्त बच्चों के पास अगर कुछ होता है, तो वह है जागरूकता और उसका ध्यान रखने वाले माता-पिता! बच्चों में छिपी प्रतिभा के लक्षण प्रकट होते ही उन्हें पहचानना और उसे प्रोत्साहित करना जरूरी है। माता-पिता अपने किसी एक बच्चे की प्रशंसा करते हैं, तो दूसरे की उपेक्षा। बच्चों की प्रतिक्रिया इसी के अनुरूप होती है। कल्याणी अपनी शिल्पकार बेटी तृप्ति द्वारा तैयार की गयी हर कृति को सुरक्षित रखती है। भले ही वह कैसी भी हो। एक गणितज्ञ के माता-पिता इसलिए अपने बच्चों की प्रशंसा करते है, क्योंकि वे एक कमरे में अकेले बैठकर गणित के सवाल हल करते है। लेकिन खेलों में रूचि रखने वाले मां-पिता इस बात पर शायद परेशान हों।
बच्चों का जीवन तीन अवस्थाओं से गुजरता है- पहली अवस्था खेल-खिलवाड़ और आमोद-प्रमोद की है, दूसरी अपने चुने हुए काम से प्यार हो जाने की अवस्था है और तीसरी है सुनिश्चितता की अवस्था।
इन अलग-अलग चरणों में बच्चों के लिए अलग-अलग तरह की मद्द तथा प्रोत्साहन की जरूरत होती है। ऐसे शिक्षक की जरूरत होती है जो भले ही विशिष्टता प्राप्त न हो, लेकिन बच्चे के साथ सहज ढंग से पेश आ सके। जिसका स्नेह भरा अपनापन बच्चे को उत्साहित कर सके। बच्चेरा ही हैं तो उन्हें याद दिलाने की जरूरत होती है कि उन्हें अभ्यास करना है। मां-पिता में से कोई एक भी अगर उनके साथ होता, तो उनका उत्साह दोगुना हो जाता है। अपने बच्चों के विकास से जुड़ एक दम्पत्ती का कहना है कि ‘‘इसमें हमें भी उतना ही आनंद आता है, जितना हमारे बच्चों को।’’ बच्चे को जीतने पर शाबाशी और हारने पर स्वस्थ ढांढस दें। कोई बच्चा अगर पूरा जोर लगाता है, पहले से कुछ बेहतर दिखाता है तो इसे भी विजय की तरह लेना चाहिए।
हर बच्चे में कोई-न कोई प्रतिभा अवश्य होती है। माता-पिता उसका पोषण करके, उसके पूर्ण करने में सहायक हो सकते हैं। इस अनुभव से अगर वह सफल कलाकर न भी बन सके, तो भी जीवन से हार नही मानेगा। कुछ लोग प्रश्न कर सकते है कि क्या इस समय इतना समय और इतनी शक्ति लगायी जाये ? हां ,क्योंकि बचपन की सीख ही बड़े होने पर सहज ज्ञान बन जाती है। बच्चे जिंदगी में आगे चल कर कुछ भी बनें, fजंदगी का आदर करना सीखें और साहस से उसकी चुनौतियों का मुकाबला करें, इसके लिए जरूरी है कि आप बच्चों की प्रतिभा को प्रोत्साहित कीजिए, कुंठित मत कीजिए।
वासंती एक दूसरा उदाहरण है। रायगढ़ कत्थक घराना की अंतिम कड़ी के रूप में पंडित फिरतू दास वैष्णव का स्मरण किया जाता है। उनकी घंटों रियाज करते देख कर उनकी बेटी वासंती भी घूम-घूम कर नाचने लगी। अपनी पांच वर्षीया बिटिया को ऐसा करते देख कर वे खुशी से झूम उठे और उसे उत्साहित करके कत्थक की बारीकियां और लय-ताल समझाने लगे, आज वासंती कत्थक नृत्य में निष्णात है।
ब्लूम मानते है कि विलक्षण प्रतिभासंपन्न बच्चों की झलक कम उम्र में ही उभर कर सामने आती है। इसके विपरीत वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि अध्ययनरत अधिकांश बच्चों के होनहार होने के संकेत आरंभ में नहीं, वषों कड़ी मेहनत करने के बाद सामने आते हैं। पियानोवादक जरूर लय के प्रति संवेदनशील और संगीत प्रवण होते है, लेकिन उनमें से आधे से भी कम ऐसे होते है कि जिनका सुर प्रारंभ से सही रहा हो। कई गणितज्ञ बचपन में पढ़ाई में कमजोर होते हैं। ओfलंपिक तैराकों के बारे में भी यह तथ्य सामने आया है कि उनमें पहले तैराकी के बारे में खास प्रतिभा नही थी।
मूलभूत शारीरिक और मानसिक योग्यता के अतिरिक्त बच्चों के पास अगर कुछ होता है, तो वह है जागरूकता और उसका ध्यान रखने वाले माता-पिता! बच्चों में छिपी प्रतिभा के लक्षण प्रकट होते ही उन्हें पहचानना और उसे प्रोत्साहित करना जरूरी है। माता-पिता अपने किसी एक बच्चे की प्रशंसा करते हैं, तो दूसरे की उपेक्षा। बच्चों की प्रतिक्रिया इसी के अनुरूप होती है। कल्याणी अपनी शिल्पकार बेटी तृप्ति द्वारा तैयार की गयी हर कृति को सुरक्षित रखती है। भले ही वह कैसी भी हो। एक गणितज्ञ के माता-पिता इसलिए अपने बच्चों की प्रशंसा करते है, क्योंकि वे एक कमरे में अकेले बैठकर गणित के सवाल हल करते है। लेकिन खेलों में रूचि रखने वाले मां-पिता इस बात पर शायद परेशान हों।
बच्चों का जीवन तीन अवस्थाओं से गुजरता है- पहली अवस्था खेल-खिलवाड़ और आमोद-प्रमोद की है, दूसरी अपने चुने हुए काम से प्यार हो जाने की अवस्था है और तीसरी है सुनिश्चितता की अवस्था।
इन अलग-अलग चरणों में बच्चों के लिए अलग-अलग तरह की मद्द तथा प्रोत्साहन की जरूरत होती है। ऐसे शिक्षक की जरूरत होती है जो भले ही विशिष्टता प्राप्त न हो, लेकिन बच्चे के साथ सहज ढंग से पेश आ सके। जिसका स्नेह भरा अपनापन बच्चे को उत्साहित कर सके। बच्चेरा ही हैं तो उन्हें याद दिलाने की जरूरत होती है कि उन्हें अभ्यास करना है। मां-पिता में से कोई एक भी अगर उनके साथ होता, तो उनका उत्साह दोगुना हो जाता है। अपने बच्चों के विकास से जुड़ एक दम्पत्ती का कहना है कि ‘‘इसमें हमें भी उतना ही आनंद आता है, जितना हमारे बच्चों को।’’ बच्चे को जीतने पर शाबाशी और हारने पर स्वस्थ ढांढस दें। कोई बच्चा अगर पूरा जोर लगाता है, पहले से कुछ बेहतर दिखाता है तो इसे भी विजय की तरह लेना चाहिए।
हर बच्चे में कोई-न कोई प्रतिभा अवश्य होती है। माता-पिता उसका पोषण करके, उसके पूर्ण करने में सहायक हो सकते हैं। इस अनुभव से अगर वह सफल कलाकर न भी बन सके, तो भी जीवन से हार नही मानेगा। कुछ लोग प्रश्न कर सकते है कि क्या इस समय इतना समय और इतनी शक्ति लगायी जाये ? हां ,क्योंकि बचपन की सीख ही बड़े होने पर सहज ज्ञान बन जाती है। बच्चे जिंदगी में आगे चल कर कुछ भी बनें, fजंदगी का आदर करना सीखें और साहस से उसकी चुनौतियों का मुकाबला करें, इसके लिए जरूरी है कि आप बच्चों की प्रतिभा को प्रोत्साहित कीजिए, कुंठित मत कीजिए।
रचनाकार :- अश्विनी केशरवानी
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