भारतीय तिरंगे का इतिहास Bhartiya tirange ka itihas
भारतीय तिरंगे का इतिहास Bhartiya tirange ka itihas, History of Indian Tricolor. भारत का ध्वज. तिरंगे का इतिहास इन हिंदी. इतिहास के पन्नों से 'तिरंगे' का सफरनामा. भारत तिरंगा किसने बनाया राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास. क्या आपको पता है राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का इतिहास. तिरंगे का जन्मदिन. तिरंगे के रंगों का अर्थ. तिरंगे के रंग का मतलब. तिरंगे के तीन रंग. तिरंगा फहराने के नियम. तिरंगा का डिज़ाइन किसने बनाया. भारत के राष्ट्रीय ध्वज को पहली बार कब प्रदर्शित किया गया. तिरंगा झंडा.
26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए:
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"सभी राष्ट्रों के लिए एक ध्वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर
अपनी जान न्यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्ट करना पाप
होगा।
ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है।"
"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्यूस, पारसी और अन्य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।"
- महात्मा गांधी
ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है।"
"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्यूस, पारसी और अन्य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।"
- महात्मा गांधी
प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र
देश होने का संकेत है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना पिंगली
वैंकैयानन्द ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को
आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्त
1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी।
इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के
रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत
में ‘’तिरंगे’’ का अर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर
केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी और ये तीनों
समानुपात में हैं। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का
है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की
राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास लगभग सफेद
पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
तिरंगे का विकास
यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ से किन-किन
परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के
दौरान खोजा गया या मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के
इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा। एक रूप से यह
राष्ट्र में राजनैतिक विकास को दर्शाता है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के
विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं:
प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7
अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था
जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज
पट्टियों से बनाया गया था।
द्वितीय ध्वज को पेरिस में
मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों
द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्वज के समान
था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात
तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन
में भी प्रदर्शित किया गया था।
तृतीय ध्वज 1917 में आया जब
हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और
लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5
लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास
में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन
जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र
के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र
प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का
बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम
का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय
का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति
का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक
यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने
के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया । यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का
पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ
था। तथापि यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व
नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी।
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय
ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका
महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के
धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज
अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।
ध्वज के रंग
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की
शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ
शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की
पवित्रता को दर्शाती है।
चक्र
इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व
मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को
प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु
है।
ध्वज संहिता
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और
स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और
फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी
रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को
शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है। बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता
का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें।
सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया
है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है।
संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के
सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है।
संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और
अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता
है।
26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए:
क्या करें
- राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्वज आरोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
- किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
- नई संहिता की धारा 2 में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है।
क्या न करें
- इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
- इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
- किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को हमारे ध्वज से ऊंचे स्थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।
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