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स्वतंत्रता सेनानी - चन्द्रशेखर आजाद Swatantarta Senani - Chandrashekhar Azad
स्वतंत्रता सेनानी - चन्द्रशेखर आजाद Swatantarta Senani - Chandrashekhar Azad, Freedom Fighter - Chandrashekhar Azad. चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में. चन्द्रशेखर आजाद पर निबंध. चन्द्रशेखर आजाद पर हिंदी निबंध. चंद्रशेखर आज़ाद इन हिंदी. चंद्रशेखर आजाद जीवनी. चंद्रशेखर आजाद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी. शहीद चन्द्रशेखर आजाद की मौत कैसे हुई थी? अंग्रेजों के लिए सिरदर्द थे आजाद. चद्रशेखर आज़ाद शहीद दिवस 27 फरवरी पर जाने चंद्रशेखर आज़ाद की पूरी कहानी. Chandrashekhar Azad in Hindi. Chandra Shekhar Azad History Biography in Hindi. अमर बलिदानी चन्द्रशेखर आजाद. क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद. अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन.
पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अत्यन्त सम्मानित
और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार
भगत सिंह सरीखे महान क्रान्तिकारियों के अनन्य साथियों में से थे।

प्रारम्भिक जीवन: चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाँवरा गाँव जो वर्तमान में अलीराजपुर जिला में है, में 23 जुलाई 1906 को हुआ था।
आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते थे।
फिर जाकर भावरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी
माता का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य
क्षेत्र में स्थित भावरा में बीता।
यहाँ बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।
यहाँ बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।
क्रांतिकारी के रूप में शुरुआत: 1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला
बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया था। चन्द्रशेखर उस समय
पढाई कर रहे थे। तभी से उनके मन में एक आग धधक रही थी। जब गांधीजी ने सन्
1921 में असहयोग आन्दोलन का फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी
बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सडकों पर उतर
आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर
वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली।
इस घटना को लेकर जवाहरलाल नेहरू ने आज़ाद को क़ानून तोड़ने वाला और आतंककारी बताते हुए लिख डाला: "ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र 15-16 साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह 'भारत माता की जय!' चिल्लाता था। हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के आतंककारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना।
इस घटना को लेकर जवाहरलाल नेहरू ने आज़ाद को क़ानून तोड़ने वाला और आतंककारी बताते हुए लिख डाला: "ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र 15-16 साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह 'भारत माता की जय!' चिल्लाता था। हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के आतंककारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ: असहयोग आन्दोलन के दौरान जब फरवरी 1922 में
चौरी चौरा की घटना के पश्चात् बिना किसे से पूछे गाँधीजी ने आन्दोलन वापस
ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग
हो गया और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल,शचीन्द्रनाथ सान्याल और योगेशचन्द्र
चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल
हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ का गठन किया।
चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इस संगठन ने जब गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके लेकिन यह तय किया गया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गाँव ने हमला कर दिया।
बिस्मिल ने मकान के अन्दर घुसकर उस औरत के कसकर चाँटा मारा, पिस्तौल वापस छीनी और आजाद को डाँटते हुए खींचकर बाहर लाये। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया। 1 जनवरी 1925 को दल ने पूरे भारत में अपना बहुचर्चित पर्चा "द रिवोल्यूशनरी" बाँटा जिसमें दल की नीतियों का खुलासा किया गया था। इस पैम्फलेट में सशस्त्र क्रान्ति की चर्चा की गयी थी। इश्तहार के लेखक के रूप में "विजयसिंह" का छद्म नाम दिया गया था। शचींद्रनाथ सान्याल इस पर्चे को बंगाल में पोस्ट करने जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें बाँकुरा में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। संगठन के गठन के अवसर से ही इन तीनों प्रमुख नेताओं - बिस्मिल, सान्याल और चटर्जी में इस संगठन के उद्देश्यों को लेकर मतभेद था। इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया।
जब शाहजहाँपुर में इस योजना के बारे में चर्चा करने के लिये मीटिंग बुलायी गयी तो दल के एक मात्र सदस्य अशफाक उल्ला खाँ ने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जायेगा और ऐसा ही हुआ भी। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओँ - पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 तथा उससे 2 दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी दे दी थी। सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं के पकडे जाने से इस मुकदमे के दौरान दल निष्क्रिय ही रहा। एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रान्तिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह भी शामिल थे लेकिन किसी कारण वश यह योजना पूरी न हो सकी।
चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इस संगठन ने जब गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके लेकिन यह तय किया गया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गाँव ने हमला कर दिया।
बिस्मिल ने मकान के अन्दर घुसकर उस औरत के कसकर चाँटा मारा, पिस्तौल वापस छीनी और आजाद को डाँटते हुए खींचकर बाहर लाये। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया। 1 जनवरी 1925 को दल ने पूरे भारत में अपना बहुचर्चित पर्चा "द रिवोल्यूशनरी" बाँटा जिसमें दल की नीतियों का खुलासा किया गया था। इस पैम्फलेट में सशस्त्र क्रान्ति की चर्चा की गयी थी। इश्तहार के लेखक के रूप में "विजयसिंह" का छद्म नाम दिया गया था। शचींद्रनाथ सान्याल इस पर्चे को बंगाल में पोस्ट करने जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें बाँकुरा में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। संगठन के गठन के अवसर से ही इन तीनों प्रमुख नेताओं - बिस्मिल, सान्याल और चटर्जी में इस संगठन के उद्देश्यों को लेकर मतभेद था। इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया।
जब शाहजहाँपुर में इस योजना के बारे में चर्चा करने के लिये मीटिंग बुलायी गयी तो दल के एक मात्र सदस्य अशफाक उल्ला खाँ ने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जायेगा और ऐसा ही हुआ भी। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओँ - पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 तथा उससे 2 दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी दे दी थी। सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं के पकडे जाने से इस मुकदमे के दौरान दल निष्क्रिय ही रहा। एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रान्तिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह भी शामिल थे लेकिन किसी कारण वश यह योजना पूरी न हो सकी।
HSRA के सेनानायक के रूप में: 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी और 16 को
कड़ी कैद की सजा के बाद चन्द्रशेखर
आज़ाद ने उत्तर भारत के सभी कान्तिकारियों को एकत्र कर 8 सितम्बर 1928 को
दिल्ली
के कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया। इसी सभा में
भगत सिंह को दल का प्रचार-प्रमुख बनाया गया। इसी सभा में यह भी तय किया गया
कि सभी क्रान्तिकारी दलों को अपने-अपने उद्देश्य इस नयी पार्टी में विलय
कर लेने चाहिये। पर्याप्त विचार-विमर्श के पश्चात् एकमत से समाजवाद को दल
के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल घोषित करते हुए "हिन्दुस्तान
रिपब्लिकन ऐसोसिएशन" का नाम बदलकर "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन
एसोसियेशन (HSRA)" रखा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद
ने सेना-प्रमुख (कमाण्डर-इन-चीफ) का दायित्व सम्भाला। इस दल के गठन के
पश्चात् एक नया लक्ष्य निर्धारित किया गया - "हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने
तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत।"
बलिदान: HSRA द्वारा किये गये साण्डर्स-हत्याकांड और दिल्ली
एसेम्बली बम काण्ड में मौत की सजा पाए हुए तीन अभियुक्तों- भगत सिंह,
राजगुरु व सुखदेव
ने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था। अन्य सजायाफ्ता अभियुक्तों में से
सिर्फ 3 ने ही प्रिवी कौन्सिल में अपील की। 11 फरवरी 1931 को लन्दन
की प्रिवी कौन्सिल में अपील की सुनवाई हुई। इन अभियुक्तों की ओर से
एडवोकेट प्रिन्ट ने बहस की अनुमति माँगी थी किन्तु उन्हें अनुमति नहीं मिली
और बहस सुने बिना ही अपील खारिज कर दी गयी।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की सीतापुर जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उसके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा तो वे अपने तकियाकलाम 'स्साला' के साथ भुनभुनाते हुए ड्राइँग रूम से बाहर आये और अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क की ओर चले गये।
अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से चर्चा कर ही रहे थे तभी CID का SSP नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना 27 फरवरी 1931 के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे।
वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे शहर में आजाद की बलिदान की खबर से जबरदस्त तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले होने लगे। लोग सडकों पर आ गये। आज़ाद के बलिदान की खबर जवाहरलाल की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने तमाम काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी। । बाद में शाम के वक्त लोगों का हुजूम पुरुषोत्तम दास टंडन के नेतृत्व में इलाहाबाद के रसूलाबाद शमशान घाट पर कमला नेहरू को साथ लेकर पहुँचा।
अगले दिन आजाद की अस्थियाँ चुनकर युवकों का एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में इतनी ज्यादा भीड थी कि इलाहाबाद की मुख्य सडकों पर जाम लग गया। ऐसा लग रहा था जैसे इलाहाबाद की जनता के रूप में भारत माँ अपने इस सपूत को अंतिम विदाई देने उमड पडा हो। जुलूस के बाद सभा हुई। सभा को शचीन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीराम बोस की बलिदान के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा।
Thanks for reading...
Tags: स्वतंत्रता सेनानी - चन्द्रशेखर आजाद Swatantarta Senani - Chandrashekhar Azad, Freedom Fighter - Chandrashekhar Azad. चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में. चन्द्रशेखर आजाद पर निबंध. चन्द्रशेखर आजाद पर हिंदी निबंध. चंद्रशेखर आज़ाद इन हिंदी. चंद्रशेखर आजाद जीवनी. चंद्रशेखर आजाद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी. शहीद चन्द्रशेखर आजाद की मौत कैसे हुई थी? अंग्रेजों के लिए सिरदर्द थे आजाद. चद्रशेखर आज़ाद शहीद दिवस 27 फरवरी पर जाने चंद्रशेखर आज़ाद की पूरी कहानी. Chandrashekhar Azad in Hindi. Chandra Shekhar Azad History Biography in Hindi. अमर बलिदानी चन्द्रशेखर आजाद. क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद. अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन.
चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की सीतापुर जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उसके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा तो वे अपने तकियाकलाम 'स्साला' के साथ भुनभुनाते हुए ड्राइँग रूम से बाहर आये और अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क की ओर चले गये।
अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से चर्चा कर ही रहे थे तभी CID का SSP नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना 27 फरवरी 1931 के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे।
वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे शहर में आजाद की बलिदान की खबर से जबरदस्त तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले होने लगे। लोग सडकों पर आ गये। आज़ाद के बलिदान की खबर जवाहरलाल की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने तमाम काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी। । बाद में शाम के वक्त लोगों का हुजूम पुरुषोत्तम दास टंडन के नेतृत्व में इलाहाबाद के रसूलाबाद शमशान घाट पर कमला नेहरू को साथ लेकर पहुँचा।
अगले दिन आजाद की अस्थियाँ चुनकर युवकों का एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में इतनी ज्यादा भीड थी कि इलाहाबाद की मुख्य सडकों पर जाम लग गया। ऐसा लग रहा था जैसे इलाहाबाद की जनता के रूप में भारत माँ अपने इस सपूत को अंतिम विदाई देने उमड पडा हो। जुलूस के बाद सभा हुई। सभा को शचीन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीराम बोस की बलिदान के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा।
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