मटर की खेती करने की वैज्ञानिक जानकारी Matar ki kheti karne ki vaigyanik jankari
मटर की खेती करने की वैज्ञानिक जानकारी Matar ki kheti karne ki vaigyanik jankari मटर की खेती कैसे करें Matar ki unnat Kheti Kaise kare मटर की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Matar ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. खेती मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा. अधिकतम उपज के लिए ध्यान रखने योग्य बातें. बेहतर फसल के लिए टिप्स सुझाव और उपाय. कम खर्च में ज्यादा पैदावार कैसे ले. अच्छी फसल तैयार करने के लिए अपनाए ये तरीके.

क्या आप मटर की खेती करने की वैज्ञानिक और आधुनिक जानकारी खोज रहे है? यदि हां, तो आप बिलकुल सही जगह पहुँच चुके है. चलिए जानते है मटरछेमी की उन्नत खेती कर के कैसे लाखों में कमा सकते हैं? मटर की खेती को वैज्ञानिक तकनीको से की जाए तो किसानो को ज्यादा से ज्यादा फसल की प्राप्ति हो सकती है। तो चलिए जानते है matar ki kheti कैसे करने से हमे ज्यादा नगदी मिल सकता है।

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मटर के लिए भूमि का चयन - वैसे तो मटर की खेती हर वो भूमि में की जा सकती है जिसमे Suitable amount में नमी उपलब्ध हो सके । इसके अलावा अच्छे जल निकासी वाले मटियार दोमट जमीन इसकी खेती के लिए सबसे की best माना जाता है ।
जलवायु - मटर की खेती के लिए रबी मौसम को अच्छा माना जाता है क्योंकि इसके फसल किए लिए नम और ठंडी (Damp and cold) मौसम यानि की July का मौसम चाहिए होता है । जिस जिस जगह पर साल में 70-80 से.मी. तक की वर्षा होती है उन सभी जगहों पर इसकी खेती की जा सकती है । अधिक वर्षा मटर के फसल को नुकसान भी पहुंचा सकता है ।
मटर की प्रजातियाँ -
1. आर्केल – इस प्रजाति के मटर के दाने मीठे होते है। इस मटर की फलियाँ 8 से 10 cm लम्बी होती है और इसमें 5 से 6 दाने होते है ।
2. बोनविले – इस प्रजाति के मटर का बीज झुर्रीदार होता है तथा ये मटर medium height का होता है।
3. अर्ली बैजर – इस प्रजाति का मटर हल्के हरे रंग का होता है । इसकी फलियाँ लगभग 7 cm लम्बी और मोटी होती है और इसके दाने बड़े बड़े होते है ।
4. अर्ली दिसंबर – इस मटर की फलियाँ लगभग 6 से 7 cm लम्बी होती है और इसका रंग dark green होता है ।
5. असौजी – ये एक बौनी किस्म की मटर होती है । इसका height लगभग 5 से 6 cm होता है। इसका रंग भी dark green का होता है।
6. पन्त उपहार – इस प्रजाति के मटर की फलियाँ को ready होने में कम से कम 70 से 75 दिन लग जाता है ।
7. जवाहर मटर – इस प्रजाति के मटर की लम्बाई लगभग 7 से 8 cm होती है । इसके हर फली में 5 से 6 दाने होते है ।
ऊपर दिए गए प्रजातियों के अलावा मटर के और भी कई प्रजातियां होते है जिनके नाम कुछ इस प्रकार के होते है :- टा.१९ , टा.५६ , एन. पी.२९ ।
बीज बुआई - किसी भी बीज को बोने से पहले उसे नीम का तेल या केरोसिन से उपचारित(treated) कर के बोना चाहिए । 15 से 30 october मटर के बीज को बोने का right time होता है । ज्यादातर बुआई हल के द्वारा की जाति है लेकिन अब बुआई के लिए Seed Drill मशीन का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है । बीज बोने से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर के उसे समतल बना लें। अब बीज बोने के लिए लगभग 6 inch गहरा गड्ढा खोद लें । अब उस गड्ढे में उपचारित किये हुए मटर के बीज को डाल कर उस पर मिट्टी डाल दें । दो पौधों के बिच का अंतर कम से कम 6 से 7 cm होनी चाहिए ।
खाद प्रबंधन - मटर की खेती में अच्छे फसल के प्राप्ति हेतु खेत में organic खाद या compost खाद का होना अती आवश्यक होता है। खेती के समय लगभग 40 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद और साथ में organic खाद- 2 बैग भू-पावर -50 kg, 2 बैग micro फर्टी सिटी compost – 40 kg, 2 बैग micro नीम- 20 kg , 2 बैग super gold कैल्सी फर्ट- 10 kg , 2 बैग micro भू-पावर -10 kg और अरंडी की खली- 50 kg को एक साथ अच्छे से mix कर के खेत में बीज की बोने से पूर्व समान मात्रा में डाल दें और फिर खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के बीजो को बो दें । बीज बुआई के 25 से 30 दिन के बाद 2 बैग super gold मैग्नीशियम –1 kg और micro झाइम 500 ml को लगभग 500 liter पानी में घोल कर पम्प द्वारा फसलो पर छिड़काव करे । उसके बाद दूसरा छिड़काव लगभग 15 दिन बाद करे ।
सिंचाई प्रबंधन - मटर की खेती करने में दो बार सिंचाई की जरुरत पड़ती है । अगर पहली सिंचाई के बाद वर्षा हो जाए तो दूसरी सिंचाई की जरुरत नहीं पड़ती । इसके खेती में पहली सिंचाई बीज बोने के लगभग 40 दिन के बाद करनी होती है और अव्यश्कता होने पर दूसरी सिंचाई लगभग 60 दिनो के बाद करनी होती है ।
खरपतवार व निराई गुड़ाई - मटर की खेती करने में फसल के साथ कुछ ऐसे खरपतवार भी निकल आते है जिसे निराई गुड़ाई कर के साफ़ किया जा सकता है जैसे की बथुआ , सैजी , गजरी आदि । मटर की खेती में बीज बोने के बाद लगभग 40 दिनों तक इसके फसल को खरपतवार से बचाना होता है । इसलिए बीज को बोने के ठीक 35 से 40 days के बाद खेत की एक बार निराई-गुड़ाई जरुर से कर देना चाहिए ।
कीट व रोग नियंत्रण - मटर की खेती में लगने वाले किट व रोगों के नाम कुछ इस प्रकार के होते है :-
तना छेदक :- यह कीट एक प्रकार की मक्खी होती है जिसका रंग काला होता है। ये मक्खी फसल में छेद कर के उसे अन्दर से खाती है जिस्सके कारण पौधे सूखने लगते है । इससे बचने के लिए नीम का काढ़ा बना कर उसे micro झाइम के साथ mix कर के उसका 250 ml पम्प द्वारा फसल पर इसका छिडकाव करना चाहिए ।
पत्तियों में छेद करने वाले कीट – यह कीट पत्तियों में छेद कर के उसमे सुरंग बना देती है । इस कीट से बचने के लिए भी नीम का काढ़ा बना कर उसे micro झाइम के साथ mix कर के उसका 250 ml पम्प द्वारा फसल पर इसका छिडकाव करना चाहिए।
माहू कीट – यह कीट ज्यादातर January के बाद फसल पर आक्रमण करती है । इस किट से बचने के लिए भी नीम का काढ़ा बना कर उसे micro झाइम के साथ mix कर के उसका 250 ml पम्प द्वारा फसल पर इसका छिडकाव करना चाहिए ।
बुकनी रोग – इस रोग के से फसल के पत्ते, तने और फलियाँ पर सफ़द चित्ती(बुकनी) सा पड़ने लगता है जिसके कारण ये सभी काली हो कर नष्ट होने लगती है । इससे बचने के लिए भी नीम का काढ़ा बना कर उसे micro झाइम के साथ mix कर के उसका 250 ml पम्प द्वारा फसल पर इसका छिडकाव करना चाहिए ।
उकठा रोग – इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियां निचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती है जिससे पूरा पत्ता सूखने लगता है । अगर एक बार खेत में इस रोग का प्रकोप हो जाए तो फिर कुछ सालो तक उस खेत में मटर की फसल नहीं बोना चाहिए । इससे बचने के लिए भी नीम का काढ़ा बना कर उसे micro झाइम के साथ mix कर के उसका 250 ml पम्प द्वारा फसल पर इसका छिडकाव करना चाहिए ।
बीज विगलन – इस रोग में बीज के अंकुरण के time में हीं बीज सड़ने लगता है । इस रोग से बचने के लिए बिच को नीम या केरोसिन से उपचारित(Treated) कर के हीं बोना चाहिए ।
ऊपर दिए गए रोगों के अलावा भी कई रोग होते है जो की मटर की खेती में लगते है जैसे की तुलासिता रोग , सफ़ेद विगलन , सफ़ेद गेरुई , आदि । इन सभी रोगों से बचने के लिए भी नीम का काढ़ा बना कर उसे micro झाइम के साथ mix कर के उसका 250 ml पम्प द्वारा फसल पर इसका छिडकाव करना चाहिए ।
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