लोबिया की आधुनिक खेती करने की जानकारी Lobiya ki aadhunik kheti karne ki jankari
लोबिया की आधुनिक खेती करने की जानकारी Lobiya ki aadhunik kheti karne ki jankari लोबिया की खेती कैसे करे Lobeeya ki Kheti Kaise Kare लोबिया की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Lobiya ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. लोबिया की उन्नत खेती. लोबिया की खेती किस प्रकार करें ? लोबिया है लाभ की खेती. कम लागत में अधिक मुनाफा दे रही लोबिया की फसल. गर्मी मे लोबिया की वैज्ञानिक खेती.

लोबिया का चारा अत्यन्त पौष्टिक है जिसमें 17 से 18 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है। कैल्शियम तथा फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में होता है। यह अकेले अथवा गैल दलहनी फसलों जैसे ज्वार या मक्का के साथ बोई जाती है। लोबिया की खेती दाल एवं सब्जी दोनों के लिए की जाती है इसके साथ-साथ जानवरों के चारे में भी प्रयोग की जाती है। भूमि में हरी खाद देने के रूप में भी प्रयोग करते है।

लोबिया का चारा अत्यन्त पौष्टिक है जिसमें 17 से 18 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है। कैल्शियम तथा फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में होता है। यह अकेले अथवा गैल दलहनी फसलों जैसे ज्वार या मक्का के साथ बोई जाती है। लोबिया की खेती दाल एवं सब्जी दोनों के लिए की जाती है इसके साथ-साथ जानवरों के चारे में भी प्रयोग की जाती है। भूमि में हरी खाद देने के रूप में भी प्रयोग करते है।
भारत में मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, केरल तथा उत्तर प्रदेश के कुछ भागो में खेती की जाती है।
जलवायु और भूमि - लोबिया को शीतोष्ण और सम-शीतोषण जलवायु में उगाया जा सकता है। भूमि मुख्य रूप से खरीफ अर्थात वर्षा ऋतू में इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए 21 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम की आवश्यकता पड़ती है। लोबिया के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। वर्षा ऋतू में ढालू भूमि में भी खेती की जा सकती है, बलुई दोमट में भी खेती की जाती है। वर्षा ऋतू की फसल होने के कारण खेत में जल निकास का साधन अच्छा होना चाहिए।
बुआई का समय - वर्षा प्रारम्भ होने पर जून-जुलाई के महीने में इसकी बुआई करनी चाहिए।
उन्नत किस्में - रशियन जायन्ट, एच.एफ.सी.-42-1, यू.पी.सी.-5286, 5287, यू.पी.सी.-287, एन.पी.-3, बुन्देल लोबिया (आई.एम.सी.-8503), सी.-20, सी.-30.-558), टाईप2, टाईप5269, यू.पी.सी.4200, रसियन जाईंट, आई.जी.ऍफ़450, सी.ऒ.5 एवम सी.ऒ.6
बीज उपचार - 2.5 ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज उपचारित करें।
खेत की तैयारी - खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले खेत समतल तथा उचित जल निकास वाला होना चाहिए। एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके भुरभुरा बना लेना चाहिए।
बीज की मात्रा - अकेले बोने के लिए 40 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। मक्का या जवार के साथ मिलाकर बुआई के लिए 15-20 कि.ग्रा. बीज प्रयोग करना चाहिए।
बुवाई की विधि - दाना व् फलियों के लिए लाइन में तथा चारे व् हरी खाद के लिए छिड्कवा विधि द्वारा बुवाई करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा फलियों के लिए 50 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करनी चाहिए। लोबिया की बुवाई वर्षा होने पर जुलाई में करनी चाहिए। बीज शोधान बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम की दर से शोधन करने के बाद लोबिया को विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए।
खाद एवम उर्वरक - लोबिया के लिए नत्रजन 10 से 15 किलोग्राम तथा फास्फोरस 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले देना चाहिए।
सिंचाई - वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यदि पानी न बरसे तो आवश्यकतानुसार एक या दो सिंचाई करनी चाहिए।
निराई-गुड़ाई - लोबिया की निराई-गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद आवश्यकता पड़ती है। यदि खरपतवार अधिक उगते है तो दोबारा निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है।
रोग और नियंत्रण - लोबिया में सूत्रकृमि एवं पीला रोग जिसे मोजैक कहते है इनकी रोकथाम के लिए ज्वार की मिश्रित खेती करनी चाहिए तथा 100 ई.सी. डायमेक्रोन 1 लीटर 3 लीटर पानी में तथा नुवान 100 ई.सी. 1 लीटर 3 लीटर पानी में मिलाकर दोनों के एक अनुपात एक के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए। यह छिड़काव फल आने के पूर्व 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।
कीट और उनकी रोकथाम - लोबिया में माहू तथा फली बेधक कीट लगते है इनकी रोकथाम के लिए डाईमेथोएट 30 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से माहू रोकने के लिए छिड़काव करना चाहिए तथा फली बेधक के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
फसल की कटाई एवं मड़ाई - लोबिया की खेती के प्रकार के अनुसार कटाई-मड़ाई की जाती है दाने के लिए पूर्ण रूप से फली एवं पेड़ सूखने पर कटाई करते है तथा बाद में मड़ाई करके दाना अलग कर लिया जाता है। फलियों के लिए जब फलियां खाने लायक हो जावे तो हर सप्ताह तुड़ाई करके बाजार में बेच देना चाहिए और हरे चारे हेतु जब फसल में अच्छी बढ़त हो जावे तभी चारे हेतु कटाई शुरू कर देनी चाहिए।
पैदावार - लोबिया की खेती के प्रकार के अनुसार उपज प्राप्त होती है। फलियों की पैदावार 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। दाना की पैदावार 14 से 16 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है तथा चारा की पैदावार 300 से 350 कुंतल पैदावार प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
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