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धार्मिक कार्यों में कुश का उपयोग क्यों किया जाता है? Dharmik karyon me kush ka upyog kyo hota hai?
धार्मिक कार्यों में कुश का उपयोग क्यों किया जाता है? Dharmik karyon me kush ka upyog kyo hota hai? पूजा-अर्चना आदि धार्मिक कर्म में कुश का महत्व क्यों करते है? कर्म-कांडों में विशेष अवसरों पर कुशा का उपयोग जरुरी, नित्यनैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश आवश्यक.
हिंदू धर्म में किए जाने वाले धार्मिक कर्म-कांडों में विशेष अवसरों पर कुश ( एक विशेष प्रकार की घास) का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कोई भी जप कुश के आसन पर बैठकर करने का ही विधान है।
धार्मिक कर्म-कांड़ों में घास का उपयोग आखिर क्यों किया जाता है? इसके पीछे का कारण सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी है।
वैज्ञानिक शोधों से यह पता चला है कि कुश ऊर्जा का कुचालक है। जब कोई साधक कुश का आसन पर बैठकर जप करता है तो उस साधना से मिलने वाली ऊर्जा पृथ्वी में नहीं जा पाती क्योंकि कुश का आसन उसे पृथ्वी में जाने से रोक लेता है। यानि इस समय कुश अपने नैसर्गिक गुणों के कारण ऊर्जा के कुचालक की तरह व्यवहार करता है। यही सिद्धांत पूजा-पाठ व धार्मिक कर्म-कांड़ों में भी लागू होता है।
कुश के इसी गुण के कारण सूर्य व चंद्रग्रहण के समय इसे भोजन तथा पानी में डाल दिया जाता है जिससे ग्रहण के समय पृथ्वी पर आने वाली किरणें कुश से टकराकर परावर्तित हो जाती हैं तथा भोजन व पानी पर उन किरणों का विपरीत असर नहीं पड़ता।
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Tags: धार्मिक कार्यों में कुश का उपयोग क्यों किया जाता है? Dharmik karyon me kush ka upyog kyo hota hai? पूजा-अर्चना आदि धार्मिक कर्म में कुश का महत्व क्यों करते है? कर्म-कांडों में विशेष अवसरों पर कुशा का उपयोग जरुरी, नित्यनैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश आवश्यक.
हिंदू धर्म में किए जाने वाले धार्मिक कर्म-कांडों में विशेष अवसरों पर कुश ( एक विशेष प्रकार की घास) का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कोई भी जप कुश के आसन पर बैठकर करने का ही विधान है।

धार्मिक कर्म-कांड़ों में घास का उपयोग आखिर क्यों किया जाता है? इसके पीछे का कारण सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी है।
वैज्ञानिक शोधों से यह पता चला है कि कुश ऊर्जा का कुचालक है। जब कोई साधक कुश का आसन पर बैठकर जप करता है तो उस साधना से मिलने वाली ऊर्जा पृथ्वी में नहीं जा पाती क्योंकि कुश का आसन उसे पृथ्वी में जाने से रोक लेता है। यानि इस समय कुश अपने नैसर्गिक गुणों के कारण ऊर्जा के कुचालक की तरह व्यवहार करता है। यही सिद्धांत पूजा-पाठ व धार्मिक कर्म-कांड़ों में भी लागू होता है।
कुश के इसी गुण के कारण सूर्य व चंद्रग्रहण के समय इसे भोजन तथा पानी में डाल दिया जाता है जिससे ग्रहण के समय पृथ्वी पर आने वाली किरणें कुश से टकराकर परावर्तित हो जाती हैं तथा भोजन व पानी पर उन किरणों का विपरीत असर नहीं पड़ता।
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