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आइये जानते है कि साधु-संत खड़ाऊ क्यों पहनते हैं? - Sadhu sant khdau kyo pahnte hai?
आइये जानते है कि साधु-संत खड़ाऊ क्यों पहनते हैं? Sadhu sant khdau kyo pahnte hai? पैरों में लकड़ी की चप्पलें पहनने के कारण, खड़ाऊ पहनने के फायदे लाभ वजह कारण और जरूरत, क्यों पहननी चाहिए खड़ाऊ?
आपने साधू संतो को खड़ाऊ हुए देखा होगा या सुना होगा, परन्तु क्या आप जानते है कि वो ऐसा क्यों करते है, यदि नहीं तो आइये आज इस बारे में जानकारी लेते है, आइये जानते है कि साधु-संत खड़ाऊ क्यों पहनते हैं?
पुरातन समय में साधु-संत खड़ाऊ (लकड़ी की चप्पल) पहनते थे। पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनने के पीछे भी हमारे साधु-संतों की सोच पूर्णत: वैज्ञानिक थी। गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि-मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था।
उस सिद्धांत के अनुसार शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं । यह प्रक्रिया अगर निरंतर चले तो शरीर की जैविक शक्ति(वाइटल्टी फोर्स) समाप्त हो जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए साधु-संतों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की ताकि शरीर की विद्युत तंरगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके।
पुरातन समय चमड़े का जूता कई धार्मिक, सामाजिक कारणों से समाज के एक बड़े वर्ग को मान्य न था और कपड़े के जूते का प्रयोग हर कहीं सफल नहीं हो पाया। जबकि लकड़ी के खड़ाऊ पहनने से किसी धर्म व समाज के लोगों के आपत्ति नहीं थी इसीलिए यह अधिक प्रचलन में आए। कालांतर में यही खड़ाऊ ऋषि-मुनियों के स्वरूप के साथ जुड़ गए ।
Thanks for reading...
Tags: आइये जानते है कि साधु-संत खड़ाऊ क्यों पहनते हैं? Sadhu sant khdau kyo pahnte hai? पैरों में लकड़ी की चप्पलें पहनने के कारण, खड़ाऊ पहनने के फायदे लाभ वजह कारण और जरूरत, क्यों पहननी चाहिए खड़ाऊ?
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पुरातन समय में साधु-संत खड़ाऊ (लकड़ी की चप्पल) पहनते थे। पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनने के पीछे भी हमारे साधु-संतों की सोच पूर्णत: वैज्ञानिक थी। गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि-मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था।
उस सिद्धांत के अनुसार शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं । यह प्रक्रिया अगर निरंतर चले तो शरीर की जैविक शक्ति(वाइटल्टी फोर्स) समाप्त हो जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए साधु-संतों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की ताकि शरीर की विद्युत तंरगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके।
पुरातन समय चमड़े का जूता कई धार्मिक, सामाजिक कारणों से समाज के एक बड़े वर्ग को मान्य न था और कपड़े के जूते का प्रयोग हर कहीं सफल नहीं हो पाया। जबकि लकड़ी के खड़ाऊ पहनने से किसी धर्म व समाज के लोगों के आपत्ति नहीं थी इसीलिए यह अधिक प्रचलन में आए। कालांतर में यही खड़ाऊ ऋषि-मुनियों के स्वरूप के साथ जुड़ गए ।
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