Home
» Learn-More
» योग क्या है? योग के कितने अंग है? इसके लिए किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? What is Yoga?
योग क्या है? योग के कितने अंग है? इसके लिए किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? What is Yoga?
योग क्या है? योग के कितने अंग है? इसके लिए किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? What is Yoga? योग का महत्व पर निबंध, योग का परिचय, योग का महत्व, योग के प्रकार, योग के लाभ और हानि इन हिंदी, योग के अंग इन हिंदी, योग कैसे बनता है? योग कैसे करें?
योग क्या है? - भारत के वैदिक, बौद्ध और जैन मुख्य दर्शन हैं। ये तीनों आत्मा, पुण्य-पाप, परलोक और मोक्ष इन तत्वों को मानते है, इसलिये ये आस्तिक-दर्शन हैं। योग शब्द युज् धातु से बना है। संस्कृत में युज् धातु दो हैं। एक का अर्थ है जोड़ना और दुसरे का है समाधि । इनमें से जोड़ने के अर्थ वाले युज् धातु को योगार्थ में स्वीकार किया है। अर्थात् जिन-जिन साधनों से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष का योग होता है, उन सब साधनों को योग कह सकते हैं। पातंजलि-योगदर्शन में योग का लक्षण योगश्चित्तवृत्ति-निरोधः कहा है। मन, वचन, शरीर आदि को संयत करने वाला धर्म-व्यापार ही योग है, क्योंकि यही आत्मा को उसके साध्य मोक्ष के साथ जोड़ता है।
जिस समय मनुष्य सब चिन्ताओं का परित्याग कर देता है, उस समय, उसके मन की उस लय-अवस्था को लय-योग कहते हैं। अर्थात् चित्त की सभी वृत्तियों को रोकने का नाम योग है। वासना और कामना से लिप्त चित को वृत्ति कहा है। इस वृत्ति का प्रवाह जाग्रत , स्वप्न, सुषुप्ति-इन तीनों अवस्थाओं में मनुष्य के हृदय पर प्रवाहित होता रहता है। चित्त सदा-सर्वदा ही अपनी स्वाभाविक अवस्था को पुनः प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करता रहता है, किन्तु इन्द्रियाँ उसे बाहर आकर्षित कर लेती हैं। उसको रोकना एवं उसकी बाहर निकलने की प्रवृत्ति को निवृत करके उसे पीछे घुमाकर चिद्-घन पुरूष के पास पहुँचने के पथ में ले जाने का नाम ही योग है। हम अपने हृदयस्थ चैतन्य-घन पुरूष को क्यों नहीं देख पाते? कारण यही है कि हमारा चित्त हिंसा आदि पापों से मैला और आशादि वृत्तियों से आन्दोलित हो रहा है। यम-नियम आदि की साधना से चित्त का मैल छुड़ाकर चित्त वृत्ति को रोकने का नाम योग है।
योग के कितने अंग है?
योग के आठ अंग है। आठ अंगों वाले योग को शास्त्रों में अष्टांगयोग के नाम से जाना जाता है। साधक को उन्हीं आठ अंगों को साधना होता है। साधना का अर्थ है- अभ्यास। योग के आठ अंग इस प्रकार है-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। योग की साधना करना अर्थात् पूर्ण मनुष्य बनकर स्वरूप- ज्ञान प्राप्त करना हो तो योग के इन आठ अंगों की साधना यानि अभ्यास करना चाहिये।
योग में विशेष सावधानी :-
साधना में सबसे पहले निम्नलिखित कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये- नित्य नियमित रूप से एक ही स्थान पर साधना करनी चाहिये। ऐसा करने से उस स्थान पर एक प्रकार की शक्ति पैदा हो जाती है। क्योंकि जब कभी भी मन चंचल होता है, तब उस स्थान पर पहुँचते ही मन शांत हो जाता है, तथा एक प्रकार की आनन्दावस्था अपने आप ही प्राप्त होती है। जिस स्थान पर साधना की जाये, वह स्थान विशेष हवादार, साफ-सुथरा और शुद्ध होना चाहिये। उस स्थान को नित्य अपने ही हाथों साफ करना चाहिये। दूसरे आदमी से सफाई आदि नहीं करानी चाहिये। क्योंकि इससे आपकी शक्ति का कुछ अंश चला जाता है, जिससे उस आदमी को तो कुछ फायदा मिलता है, मगर साधक उतने अंश में शक्ति हीन हो जाता है।
जिस आसन (जैसे कम्बलासन, कुशासन, व्याघ्रासन आदि) पर बैठ कर स्वयं साधना की जाये, उस आसन को कोई दूसरा व्यक्ति इस्तेमाल ना करे। इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिये कि जिन कपड़ों को साधक इस्तेमाल करे उन को ओर कोई प्रयोग ना करे। साधक को मिट्टी के तेल का दीपक, मोमबत्ती आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिये। शुद्ध भाव से साधना करने पर कुछ महीने बाद ही साधक स्वयं महापुरुषों तथा देवी-देवताओं की अनुकम्पा का अनुभव करने लगेगा। साधना करने स पहले साधक को स्नान करके अथवा हाथ-पैर धोकर, साफ कपड़े पहनकर साधना करनी चाहिये। साधक को तामसिक भोजन का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
Thanks for reading...
Tags: योग क्या है? योग के कितने अंग है? इसके लिए किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? What is Yoga? योग का महत्व पर निबंध, योग का परिचय, योग का महत्व, योग के प्रकार, योग के लाभ और हानि इन हिंदी, योग के अंग इन हिंदी, योग कैसे बनता है? योग कैसे करें?
योग क्या है? - भारत के वैदिक, बौद्ध और जैन मुख्य दर्शन हैं। ये तीनों आत्मा, पुण्य-पाप, परलोक और मोक्ष इन तत्वों को मानते है, इसलिये ये आस्तिक-दर्शन हैं। योग शब्द युज् धातु से बना है। संस्कृत में युज् धातु दो हैं। एक का अर्थ है जोड़ना और दुसरे का है समाधि । इनमें से जोड़ने के अर्थ वाले युज् धातु को योगार्थ में स्वीकार किया है। अर्थात् जिन-जिन साधनों से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष का योग होता है, उन सब साधनों को योग कह सकते हैं। पातंजलि-योगदर्शन में योग का लक्षण योगश्चित्तवृत्ति-निरोधः कहा है। मन, वचन, शरीर आदि को संयत करने वाला धर्म-व्यापार ही योग है, क्योंकि यही आत्मा को उसके साध्य मोक्ष के साथ जोड़ता है।

जिस समय मनुष्य सब चिन्ताओं का परित्याग कर देता है, उस समय, उसके मन की उस लय-अवस्था को लय-योग कहते हैं। अर्थात् चित्त की सभी वृत्तियों को रोकने का नाम योग है। वासना और कामना से लिप्त चित को वृत्ति कहा है। इस वृत्ति का प्रवाह जाग्रत , स्वप्न, सुषुप्ति-इन तीनों अवस्थाओं में मनुष्य के हृदय पर प्रवाहित होता रहता है। चित्त सदा-सर्वदा ही अपनी स्वाभाविक अवस्था को पुनः प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करता रहता है, किन्तु इन्द्रियाँ उसे बाहर आकर्षित कर लेती हैं। उसको रोकना एवं उसकी बाहर निकलने की प्रवृत्ति को निवृत करके उसे पीछे घुमाकर चिद्-घन पुरूष के पास पहुँचने के पथ में ले जाने का नाम ही योग है। हम अपने हृदयस्थ चैतन्य-घन पुरूष को क्यों नहीं देख पाते? कारण यही है कि हमारा चित्त हिंसा आदि पापों से मैला और आशादि वृत्तियों से आन्दोलित हो रहा है। यम-नियम आदि की साधना से चित्त का मैल छुड़ाकर चित्त वृत्ति को रोकने का नाम योग है।
योग के कितने अंग है?
योग के आठ अंग है। आठ अंगों वाले योग को शास्त्रों में अष्टांगयोग के नाम से जाना जाता है। साधक को उन्हीं आठ अंगों को साधना होता है। साधना का अर्थ है- अभ्यास। योग के आठ अंग इस प्रकार है-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। योग की साधना करना अर्थात् पूर्ण मनुष्य बनकर स्वरूप- ज्ञान प्राप्त करना हो तो योग के इन आठ अंगों की साधना यानि अभ्यास करना चाहिये।
योग में विशेष सावधानी :-
साधना में सबसे पहले निम्नलिखित कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये- नित्य नियमित रूप से एक ही स्थान पर साधना करनी चाहिये। ऐसा करने से उस स्थान पर एक प्रकार की शक्ति पैदा हो जाती है। क्योंकि जब कभी भी मन चंचल होता है, तब उस स्थान पर पहुँचते ही मन शांत हो जाता है, तथा एक प्रकार की आनन्दावस्था अपने आप ही प्राप्त होती है। जिस स्थान पर साधना की जाये, वह स्थान विशेष हवादार, साफ-सुथरा और शुद्ध होना चाहिये। उस स्थान को नित्य अपने ही हाथों साफ करना चाहिये। दूसरे आदमी से सफाई आदि नहीं करानी चाहिये। क्योंकि इससे आपकी शक्ति का कुछ अंश चला जाता है, जिससे उस आदमी को तो कुछ फायदा मिलता है, मगर साधक उतने अंश में शक्ति हीन हो जाता है।
जिस आसन (जैसे कम्बलासन, कुशासन, व्याघ्रासन आदि) पर बैठ कर स्वयं साधना की जाये, उस आसन को कोई दूसरा व्यक्ति इस्तेमाल ना करे। इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिये कि जिन कपड़ों को साधक इस्तेमाल करे उन को ओर कोई प्रयोग ना करे। साधक को मिट्टी के तेल का दीपक, मोमबत्ती आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिये। शुद्ध भाव से साधना करने पर कुछ महीने बाद ही साधक स्वयं महापुरुषों तथा देवी-देवताओं की अनुकम्पा का अनुभव करने लगेगा। साधना करने स पहले साधक को स्नान करके अथवा हाथ-पैर धोकर, साफ कपड़े पहनकर साधना करनी चाहिये। साधक को तामसिक भोजन का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
Thanks for reading...
Tags: योग क्या है? योग के कितने अंग है? इसके लिए किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? What is Yoga? योग का महत्व पर निबंध, योग का परिचय, योग का महत्व, योग के प्रकार, योग के लाभ और हानि इन हिंदी, योग के अंग इन हिंदी, योग कैसे बनता है? योग कैसे करें?
आपके लिए कुछ विशेष लेख
- सेक्स करने के लिए लड़की चाहिए - Sex karne ke liye sunder ladki chahiye
- इंडियन गांव लड़कियों के नंबर की लिस्ट - Ganv ki ladkiyon ke whatsapp mobile number
- रण्डी का मोबाइल व्हाट्सअप्प कांटेक्ट नंबर - Randi ka mobile whatsapp number
- Ghar Jamai rishta contact number - घर जमाई लड़का चाहिए
- नई रिलीज होने वाली फिल्मों की जानकारी और ट्रेलर, new bollywood movie trailer 2018
- सेक्सी वीडियो डाउनलोड कैसे करें - How to download sexy video
- अनाथ मुली विवाह संस्था फोन नंबर चाहिए - Anath aashram ka mobile number
- chusne wali ladkiyon ke number - चूसने वाली लड़कियों के मोबाइल व्हाट्सएप्प नंबर
- UDISE + PLUS CODE, School Directory Management, School Data Capture
- महिलाओं को चक्कर आना कारण और इलाज - Mahilaon ko chakkar aana in hindi
एक टिप्पणी भेजें
प्रिय दोस्त, आपने हमारा पोस्ट पढ़ा इसके लिए हम आपका धन्यवाद करते है. आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा और आप क्या नया चाहते है इस बारे में कमेंट करके जरुर बताएं. कमेंट बॉक्स में अपने विचार लिखें और Publish बटन को दबाएँ.