Home
» Love-stories-in-hindi-for-girl-boy-friends
» एक को कष्ट होता तो उसकी पीडा दूसरे को अनुभव होती है - Radha - Krishan ka prem
एक को कष्ट होता तो उसकी पीडा दूसरे को अनुभव होती है - Radha - Krishan ka prem
राधा कृष्ण की प्रेम कहानी इन हिंदी, राधा कृष्ण लव स्टोरी,राधा और कृष्ण की रास लीला, radha krishna prem katha in hindi, radha krishna ki prem kahani hindi me, radha krishna ki baatein , radha krishna story in hindi, कृष्ण भगवान की कहानी, राधा कृष्ण की फोटो, राधा कृष्ण फोटो डाउनलोड, राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक, कृष्ण की लीला, राधे कृष्णा इमेज, भगवान कृष्ण की कहानी, राधा कृष्ण की प्रेम कहानी.
राधाजी भगवान श्री कृष्ण की परम प्रिया हैं तथा उनकी अभिन्न मूर्ति भी। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बरसाना के श्री वृषभानु जी के यहां राधा जी का जन्म हुआ था। श्रीमद्देवी भागवत में कहा गया है कि श्री राधा जी की पूजा नहीं की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अघिकार भी नहीं रखता। राधा जी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अघिष्ठात्री देवी हैं, अत: भगवान इनके अघीन रहते हैं। राधाजी का एक नाम कृष्णवल्लभा भी है क्योंकि वे श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली हैं।
माता यशोदा ने एक बार राधा जी से उनके नाम की व्युत्पत्ति के विषय में पूछा। राधा जी ने उन्हें बताया कि च्राज् शब्द तो महाविष्णु हैं और च्घाज् विश्व के प्राणियों और लोकों में मातृवाचक घाय हैं। अत: पूर्वकाल में श्री हरि ने उनका नाम राधा रखा। भगवान श्रीकृष्ण दो रूपों में प्रकट हैं—द्विभुज और चतुर्भुज। चतुर्भुज रूप में वे बैकुंठ में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और तुलसी के साथ वास करते हैं परन्तु द्विभुज रूप में वे गौलोक घाम में राधा जी के साथ वास करते हैं।
राधा-कृष्ण का प्रेम इतना गहरा था कि एक को कष्ट होता तो उसकी पीडा दूसरे को अनुभव होती। सूर्योपराग के समय श्रीकृष्ण, रूक्मिणी आदि रानियां वृन्दावनवासी आदि सभी कुरूक्षेत्र में उपस्थित हुए। रूक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया। जब रूक्मिणी जी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। बहुत अनुनय-विनय के बाद श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के ह्वदय में विराजते हैं। रूक्मिणी जी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड गए।
राधा जी श्रीकृष्ण का अभिन्न भाग हैं। इस तथ्य को इस कथा से समझा जा सकता है कि वंदावन में श्रीकृष्ण को जब दिव्य आनंद की अनुभूति हुई तब वह दिव्यानंद ही साकार होकर बालिका के रूप में प्रकट हुआ और श्रीकृष्ण की यह प्राणशक्ति ही राधा जी हैं।
श्री राधा जन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर मन्दिर में यथाविधि राधा जी की पूजा करनी चाहिए तथा श्री राधा मंत्र का जाप करना चाहिए। राधा जी लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं अत: इनकी पूजा से धन-धान्य व वैभव प्राप्त होता है।
राधा जी का नाम कृष्ण से भी पहले लिया जाता है। राधा नाम के जाप से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर दया करते हैं। राधाजी का श्रीकृष्ण के लिए प्रेम नि:स्वार्थ था तथा उसके लिए वे किसी भी तरह का त्याग करने को तैयार थीं। एक बार श्रीकृष्ण ने बीमार होने का स्वांग रचा। सभी वैद्य एवं हकीम उनके उपचार में लगे रहे परन्तु श्रीकृष्ण की बीमारी ठीक नहीं हुई। वैद्यों के द्वारा पूछे जाने पर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया कि मेरे परम प्रिय की चरण धूलि ही मेरी बीमारी को ठीक कर सकती है। रूक्मणि आदि रानियों ने अपने प्रिय को चरण धूलि देकर पाप का भागी बनने से इनकार कर दिया अंतत: राधा जी को यह बात कही गई तो उन्होंने यह कहकर अपनी चरण धूलि दी कि भले ही मुझे 100 नरकों का पाप भोगना पडे तो भी मैं अपने प्रिय के स्वास्थ्य लाभ के लिए चरण धूलि अवश्य दूंगी।
कृष्ण जी का राधा से इतना प्रेम था कि कमल के फूल में राधा जी की छवि की कल्पना मात्र से वो मूर्चिछत हो गये तभी तो विद्ववत जनों ने कहा
राधा तू बडभागिनी, कौन पुण्य तुम कीन।
तीन लोक तारन तरन सो तोरे आधीन।।
Thanks for reading...
Tags: प्रेम कहानी हिंदी में,प्रेम कहानी प्रेम कहानी,प्रेम कहानी.com,कहानी प्रेम कहानी,khoobsurat प्रेम कहानी,love प्रेम कहानी,प्रेम कहानी नई,www.प्रेम कहानी.com,w w w प्रेम कहानी,लव स्टोरी इन हिंदी रोमांटिक,hindi love story in short,hindi love story in hindi language,hindi love story india,love story in hindi,hindi love story later,l love story in hindi,Latest hindi prem kahani.
राधाजी भगवान श्री कृष्ण की परम प्रिया हैं तथा उनकी अभिन्न मूर्ति भी। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बरसाना के श्री वृषभानु जी के यहां राधा जी का जन्म हुआ था। श्रीमद्देवी भागवत में कहा गया है कि श्री राधा जी की पूजा नहीं की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अघिकार भी नहीं रखता। राधा जी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अघिष्ठात्री देवी हैं, अत: भगवान इनके अघीन रहते हैं। राधाजी का एक नाम कृष्णवल्लभा भी है क्योंकि वे श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली हैं।

माता यशोदा ने एक बार राधा जी से उनके नाम की व्युत्पत्ति के विषय में पूछा। राधा जी ने उन्हें बताया कि च्राज् शब्द तो महाविष्णु हैं और च्घाज् विश्व के प्राणियों और लोकों में मातृवाचक घाय हैं। अत: पूर्वकाल में श्री हरि ने उनका नाम राधा रखा। भगवान श्रीकृष्ण दो रूपों में प्रकट हैं—द्विभुज और चतुर्भुज। चतुर्भुज रूप में वे बैकुंठ में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और तुलसी के साथ वास करते हैं परन्तु द्विभुज रूप में वे गौलोक घाम में राधा जी के साथ वास करते हैं।
राधा-कृष्ण का प्रेम इतना गहरा था कि एक को कष्ट होता तो उसकी पीडा दूसरे को अनुभव होती। सूर्योपराग के समय श्रीकृष्ण, रूक्मिणी आदि रानियां वृन्दावनवासी आदि सभी कुरूक्षेत्र में उपस्थित हुए। रूक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया। जब रूक्मिणी जी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। बहुत अनुनय-विनय के बाद श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के ह्वदय में विराजते हैं। रूक्मिणी जी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड गए।
राधा जी श्रीकृष्ण का अभिन्न भाग हैं। इस तथ्य को इस कथा से समझा जा सकता है कि वंदावन में श्रीकृष्ण को जब दिव्य आनंद की अनुभूति हुई तब वह दिव्यानंद ही साकार होकर बालिका के रूप में प्रकट हुआ और श्रीकृष्ण की यह प्राणशक्ति ही राधा जी हैं।
श्री राधा जन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर मन्दिर में यथाविधि राधा जी की पूजा करनी चाहिए तथा श्री राधा मंत्र का जाप करना चाहिए। राधा जी लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं अत: इनकी पूजा से धन-धान्य व वैभव प्राप्त होता है।
राधा जी का नाम कृष्ण से भी पहले लिया जाता है। राधा नाम के जाप से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर दया करते हैं। राधाजी का श्रीकृष्ण के लिए प्रेम नि:स्वार्थ था तथा उसके लिए वे किसी भी तरह का त्याग करने को तैयार थीं। एक बार श्रीकृष्ण ने बीमार होने का स्वांग रचा। सभी वैद्य एवं हकीम उनके उपचार में लगे रहे परन्तु श्रीकृष्ण की बीमारी ठीक नहीं हुई। वैद्यों के द्वारा पूछे जाने पर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया कि मेरे परम प्रिय की चरण धूलि ही मेरी बीमारी को ठीक कर सकती है। रूक्मणि आदि रानियों ने अपने प्रिय को चरण धूलि देकर पाप का भागी बनने से इनकार कर दिया अंतत: राधा जी को यह बात कही गई तो उन्होंने यह कहकर अपनी चरण धूलि दी कि भले ही मुझे 100 नरकों का पाप भोगना पडे तो भी मैं अपने प्रिय के स्वास्थ्य लाभ के लिए चरण धूलि अवश्य दूंगी।
कृष्ण जी का राधा से इतना प्रेम था कि कमल के फूल में राधा जी की छवि की कल्पना मात्र से वो मूर्चिछत हो गये तभी तो विद्ववत जनों ने कहा
राधा तू बडभागिनी, कौन पुण्य तुम कीन।
तीन लोक तारन तरन सो तोरे आधीन।।
Thanks for reading...
Tags: प्रेम कहानी हिंदी में,प्रेम कहानी प्रेम कहानी,प्रेम कहानी.com,कहानी प्रेम कहानी,khoobsurat प्रेम कहानी,love प्रेम कहानी,प्रेम कहानी नई,www.प्रेम कहानी.com,w w w प्रेम कहानी,लव स्टोरी इन हिंदी रोमांटिक,hindi love story in short,hindi love story in hindi language,hindi love story india,love story in hindi,hindi love story later,l love story in hindi,Latest hindi prem kahani.
आपके लिए कुछ विशेष लेख
- 2017 आईपीएल नीलामी की प्रक्रिया कैसे होगी - IPL Nilami ki Prakriya kaise hogi
- सेक्सी वीडियो डाउनलोड कैसे करें - How to download sexy video
- रण्डी का मोबाइल व्हाट्सअप्प कांटेक्ट नंबर - Randi ka mobile whatsapp number
- जानिये पत्नी अपने पति का दिल कैसे जीत सकती है Janiye patni apne pati ka dil kaise jeet sakti hai
- इंडियन गांव लड़कियों के नंबर की लिस्ट - Ganv ki ladkiyon ke whatsapp mobile number
- Ghar Jamai rishta contact number - घर जमाई लड़का चाहिए
- शीघ्रपतन स्खलन को रोकने के लिए कुछ तरीके Shighr snkhalan ko rokne ke liye kuchh tarike
- धंधे वाली का मोबाइल नंबर चाहिए - Dhandha karne wali ladkiyon ke number chahiye
- भारतीय हीरोइन के नाम की सूची - List of names of Bollywood actresses
- नई रिलीज होने वाली फिल्मों की जानकारी और ट्रेलर, new bollywood movie trailer 2018
एक टिप्पणी भेजें
प्रिय दोस्त, आपने हमारा पोस्ट पढ़ा इसके लिए हम आपका धन्यवाद करते है. आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा और आप क्या नया चाहते है इस बारे में कमेंट करके जरुर बताएं. कमेंट बॉक्स में अपने विचार लिखें और Publish बटन को दबाएँ.