आचार्य चाणक्य का जीवन परिचय Aachary chanakya ka jivan parichay
आचार्य चाणक्य का जीवन परिचय Aachary chanakya ka jivan parichay, Acharya Chanakya's biography. चाणक्य जीवनी. कौन थे आचार्य चाणक्य ? चाणक्य का जीवन परिचय. biography of Chanakya in Hindi. आचार्य चाणक्य संपूर्ण जीवन परिचय. चाणक्य के जीवन का रहस्य. Chanakya Biography in Hindi आचार्य चाणक्य की जीवनी. महान विद्वान आचार्य चाणक्य की जीवनी ! Great Chanakya In Hindi. चाणक्य: एक संक्षिप्त परिचय. चाणक्य जीवन गाथा. आचार्य चाणक्य जीवन दर्शन के ज्ञाता थे.
इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना और चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके पिता का नाम चणक था, इसी कारण उन्हें ‘चाणक्य’ कहा जाता है। वैसे उनका वास्तविक नाम ‘विष्णुगुप्त’ था। कुटिल कुल में पैदा होने के कारण वे ‘कौटिल्य’ भी कहलाये।
चाणक्य के जीवन से जुड़ी हुई कई कहानियां
प्रचलित हैं। एक बार चाणक्य कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुशा नाम की कंटीली झाड़ी पर उनका पैर पड़ गया, जिससे पैर में घाव हो गया। चाणक्य को कुशा पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने वहीं संकल्प कर लिया कि जब तक कुशा को समूल नष्ट नहीं कर दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूँगा। वे उसी समय मट्ठा और कुदाली लेकर पहुंचे और कुशों को उखाड़-उखाड़ कर उनकी जड़ों में मट्ठा डालने लगे ताकि कुशा पुनः न उग आये। इस कहानी से पता चलता है कि चाणक्य कितने कठोर, दृढ संकल्प वाले और लगनशील व्यक्ति थे। जब वे किसी काम को करने का निश्चय कर लेते थे तब उसे पूरा किये बिना चैन से नहीं बैठते थे।
चाणक्य की शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला में हुई। तक्षशिला उस समय का विश्व-प्रसिद्ध विश्विद्यालय था। देश विदेश के विभिन्न छात्र वहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते थे। छात्रों को चरों वेद, धनुर्विद्या, हाथी और घोड़ों का सञ्चालन, अठारह कलाओं के साथ-साथ न्यायशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, सामाजिक कल्याण आदि के बारे में शिक्षा दी जाती थी। चाणक्य ने भी ऐसी ही उच्च शिक्षा प्राप्त की। फलतः बुद्धिमान चाणक्य का व्यक्तित्व तराशे हुए हीरे के समान चमक उठा। तक्षशिला में अपनी विद्वता और बुद्धिमत्ता का परचम फहराने के बाद वह वहीं राजनीतिशास्त्र के आचार्य बन गए। देश भर में उनकी विद्वत्ता की चर्चा होने लगी।
उस समय पाटलिपुत्र मगध राज्य की राजधानी थी और वहां घनानंद नाम का राजा राज्य करता था। मगध देश का सबसे बड़ा राज्य था और घनानंद उसका शक्तिशाली राजा। लेकिन घनानंद अत्यंत लोभी और भोगी-विलासी था। प्रजा उससे संतुष्ट नहीं थी। चाणक्य एक बार राजा से मिलने के लिए पाटलिपुत्र आये। वे देशहित में घनानंद को प्रेरित करने आये थे ताकि वे छोटे-छोटे राज्यों में बंटे देश को आपसी वैर-भावना भूलकर एकसूत्र में पिरो सकें। लेकिन घनानंद ने चाणक्य का प्रस्ताव ठुकरा दिया और उन्हें अपमानित करके दरबार से निकाल दिया। इससे चाणक्य के स्वाभिमान को गहरी चोट लगी और वे बहुत क्रोधित हुए।
अपने स्वभाव के अनुकूल उन्होंने चोटी खोलकर दृढ संकल्प किया कि जब तक वह घनानंद को अपदस्थ करके उसका समूल विनाश न कर देंगे तब तक चोटी में गांठ नहीं लगायेंगे। जब घनानंद को इस संकल्प की बात पता चली तो उसने क्रोधित होकर चाणक्य को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। लेकिन जब तक चाणक्य को बंदी बनाया जाता तब तक वे वहां से निकल चुके थे। महल से बाहर आते ही उन्होंने सन्यासी का वेश धारण किया और पाटलिपुत्र में ही छिपकर रहने लगे।
एक दिन चाणक्य की भेंट बालक चन्द्रगुप्त से हुई, जो उस समय अपने साथियों के साथ राजा और प्रजा का खेल खेल रहा था। राजा के रूप में चन्द्रगुप्त जिस कौशल से अपने संगी-साथियों की समस्या को सुलझा रहा था वह चाणक्य को भीतर तक प्रभावित कर गया। चाणक्य को चन्द्रगुप्त में भावी राजा की झलक दिखाई देने लगी। उन्होंने चन्द्रगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की और उसे अपने साथ तक्षशिला ले गए। वहां चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को वेद-शास्त्रों से लेकर युद्ध और राजनीति तक की शिक्षा दी।
लगभग आठ साल तक अपने संरक्षण में चन्द्रगुप्त को शिक्षित करके चाणक्य ने उसे एक शूरवीर बना दिया । उन्हीं दिनों विश्व विजय पर निकले यूनानी सम्राट सिकंदर विभिन्न देशों पर विजय प्राप्त करता हुआ भारत की ओर बढ़ा चला आ रहा था। गांधार का राजा आंभी सिकंदर का साथ देकर अपने पुराने शत्रु राजा पुरू को सबक सिखाना चाहता था।
चाणक्य को आंभी की यह योजना पता चली तो वे आंभी को समझाने के लिए गए। आंभी से चाणक्य ने इस सन्दर्भ में विस्तार पूर्वक बातचीत की, उसे समझाना चाहा, विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करने के लिए उसे प्रेरित करना चाहा; किन्तु आंभी ने चाणक्य की एक भी बात नहीं मानी। वह सिकंदर का साथ देने के लिए कटिबद्ध रहा। कुछ ही दिनों बाद जब सिकंदर गांधार प्रदेश में प्रविष्ट हुआ तो आंभी ने उसका जोरदार स्वागत किया। आंभी ने उसके सम्मान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया, जिसमें गांधार के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ-साथ तक्षशिला के आचार्य और छात्र भी आमंत्रित किये गए थे।
इस सभा में चाणक्य और उनके शिष्य चन्द्रगुप्त भी उपस्थित थे। सभा के दौरान सिकंदर के सम्मान में उसकी प्रशंसा के पुल बांधे गए। उसे महान बताते हुए देवताओं से उसकी तुलना की गयी सिकंदर ने अपने व्याख्यान में अप्रत्यक्षतः भारतीयों को धमकी-सी दी कि उनकी भलाई इसी में है कि वे उसकी सत्ता स्वीकार कर लें। चाणक्य ने सिकंदर की इस धमकी का खुलकर बड़ी ही संतुलित भाषा में विरोध किया। वे विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करना चाहते थे। चाणक्य के विचारों और नीतियों से सिकंदर प्रभावित अवश्य हुआ लेकिन विश्व विजय की लालसा के कारण वह युद्ध से विमुख नहीं होना चाहता था।
सभा विसर्जन के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सहयोग से तक्षशिला के पांच सौ छात्रों को संगठित किया और उन्हें लेकर राजा पुरु से भेंट की । चाणक्य को देशहित में पुरु का सहयोग मिलने में कोई कठिनाई नहीं हुई । जल्दी ही सिकंदर ने पुरु पर चढ़ाई कर दी। पुरु को चाणक्य और चन्द्रगुप्त का सहयोग प्राप्त था, इसलिए उसका मनोबल बढ़ा हुआ था । युद्ध में पुरु और उसकी सेना ने सिकंदर के छक्के छुड़ा दिए; लेकिन अचानक सेना के हाथी विचलित हो गए, जिससे पुरु की सेना में भगदड़ मच गई। सिकंदर ने उसका पूरा-पूरा लाभ उठाया और पुरु को बंदी बना लिया । बाद में उसने पुरु से संधि कर ली।
यह देखकर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर पुरु का साथ छोड़ने में ही भलाई समझी। इसके बाद चाणक्य अन्य राजाओं से मिले और उन्हें सिकंदर से युद्ध के लिए प्रेरित करते रहे । इसी बीच सिकंदर की सेना में फूट पड़ गयी। सैनिक लम्बे समय से अपने परिवारों से बिछुड़े हुए थे और युद्ध से ऊब चुके थे। इसलिए वे घर जाना चाहते थे । इधर बहरत में भी सिकंदर के विरुद्ध चाणक्य और चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में विभिन्न राजागण सिर उठाने लगे थे । यह देखकर सिकंदर ने यूनान लौटने का फैसला कर लिया। कुछ ही दिनों में बीमारी से उसकी मौत हो गई।
अब चाणक्य के समक्ष घनानंद को अपदस्थ करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने का लक्ष्य था। इस बीच चन्द्रगुप्त ने देश-प्रेमी क्षत्रियों की एक सेना संगठित कर ली थी । अतः चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर आक्रमण करने को प्रेरित किया। अपनी कूट नीति के बल पर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर विजय दिलवाई । इस युद्ध में राजा घनानंद की मौत हो गयी। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट घोषित कर दिया। बड़े जोर शोर से उसका स्वागत हुआ।
चन्द्रगुप्त अपने गुरु चाणक्य को महामंत्री बनाना चाहता था किन्तु चाणक्य ने यह पद स्वीकार नहीं किया । वह मगध के पूर्व महामंत्री ‘राक्षस’ को ही यह पद देना चाहते थे। किन्तु राक्षस पहले ही कहीं छिप गया था और अपने राजा घनानंद की मौत का बदला लेने का अवसर ढूँढ़ रहा था। चाणक्य यह बात जानते थे। उन्होंने राक्षस को खोजने के लिए गुप्तचर लगा दिए और एक कूटनीतिक चाल द्वारा राक्षस को बंदी बना लिया। चाणक्य ने राक्षस को कोई सजा नहीं दी, बल्कि चन्द्रगुप्त को सलाह दी कि वह उसके तमाम अपराध क्षमा करके उसे महामंत्री पद पर प्रतिष्ठित करे। चाणक्य खुद गंगा के तट पर एक आश्रम बनाकर रहने लगे। वहीं से वह राज्य की रीति-नीति का निर्धारण करते और चन्द्रगुप्त को यथायोग्य परामर्श देते रहते।
अपनी प्रखर कूटनीति के द्वारा आचार्य चाणक्य ने बिखरे हुए भारतीयों को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर महान राष्ट्र की स्थापना की। किन्तु विशाल मौर्य साम्राज्य के संस्थापक होते हुए भी वे अत्यंत निर्लोभी थे। पाटलिपुत्र के महलों में न रहकर वे गंगातट पर बनी एक साधारण-सी कुटिया में रहते थे और गोबर के उपलों पर अपना भोजन स्वयं तैयार करते थे। चाणक्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य कालांतर में एक महान साम्राज्य बना। चन्द्रगुप्त ने उनके मार्गदर्शन में लगभग चौबीस वर्ष राज्य किया और पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में बंगाल और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
आचार्य चाणक्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ एवं ‘नीतिशास्त्र’ नामक ग्रंथों की गणना विश्व की महान कृतियों में की जाती है। चाणक्य नीति में वर्णित सूत्र का उपयोग आज भी राजनीति के मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में किया जाता है।
*********************
Thanks for reading...
Tags: आचार्य चाणक्य का जीवन परिचय Aachary chanakya ka jivan parichay, Acharya Chanakya's biography. चाणक्य जीवनी. कौन थे आचार्य चाणक्य ? चाणक्य का जीवन परिचय. biography of Chanakya in Hindi. आचार्य चाणक्य संपूर्ण जीवन परिचय. चाणक्य के जीवन का रहस्य. Chanakya Biography in Hindi आचार्य चाणक्य की जीवनी. महान विद्वान आचार्य चाणक्य की जीवनी ! Great Chanakya In Hindi. चाणक्य: एक संक्षिप्त परिचय. चाणक्य जीवन गाथा. आचार्य चाणक्य जीवन दर्शन के ज्ञाता थे.
महान अर्थशाष्त्री और राजनीतिज्ञ चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व तीसरी या चौथी शताब्दी माना जाता है । वे एक महान कूटनीतिज्ञ एवं राजनीतिज्ञ थे।

इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना और चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके पिता का नाम चणक था, इसी कारण उन्हें ‘चाणक्य’ कहा जाता है। वैसे उनका वास्तविक नाम ‘विष्णुगुप्त’ था। कुटिल कुल में पैदा होने के कारण वे ‘कौटिल्य’ भी कहलाये।
चाणक्य के जीवन से जुड़ी हुई कई कहानियां
प्रचलित हैं। एक बार चाणक्य कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुशा नाम की कंटीली झाड़ी पर उनका पैर पड़ गया, जिससे पैर में घाव हो गया। चाणक्य को कुशा पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने वहीं संकल्प कर लिया कि जब तक कुशा को समूल नष्ट नहीं कर दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूँगा। वे उसी समय मट्ठा और कुदाली लेकर पहुंचे और कुशों को उखाड़-उखाड़ कर उनकी जड़ों में मट्ठा डालने लगे ताकि कुशा पुनः न उग आये। इस कहानी से पता चलता है कि चाणक्य कितने कठोर, दृढ संकल्प वाले और लगनशील व्यक्ति थे। जब वे किसी काम को करने का निश्चय कर लेते थे तब उसे पूरा किये बिना चैन से नहीं बैठते थे।
चाणक्य की शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला में हुई। तक्षशिला उस समय का विश्व-प्रसिद्ध विश्विद्यालय था। देश विदेश के विभिन्न छात्र वहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते थे। छात्रों को चरों वेद, धनुर्विद्या, हाथी और घोड़ों का सञ्चालन, अठारह कलाओं के साथ-साथ न्यायशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, सामाजिक कल्याण आदि के बारे में शिक्षा दी जाती थी। चाणक्य ने भी ऐसी ही उच्च शिक्षा प्राप्त की। फलतः बुद्धिमान चाणक्य का व्यक्तित्व तराशे हुए हीरे के समान चमक उठा। तक्षशिला में अपनी विद्वता और बुद्धिमत्ता का परचम फहराने के बाद वह वहीं राजनीतिशास्त्र के आचार्य बन गए। देश भर में उनकी विद्वत्ता की चर्चा होने लगी।
उस समय पाटलिपुत्र मगध राज्य की राजधानी थी और वहां घनानंद नाम का राजा राज्य करता था। मगध देश का सबसे बड़ा राज्य था और घनानंद उसका शक्तिशाली राजा। लेकिन घनानंद अत्यंत लोभी और भोगी-विलासी था। प्रजा उससे संतुष्ट नहीं थी। चाणक्य एक बार राजा से मिलने के लिए पाटलिपुत्र आये। वे देशहित में घनानंद को प्रेरित करने आये थे ताकि वे छोटे-छोटे राज्यों में बंटे देश को आपसी वैर-भावना भूलकर एकसूत्र में पिरो सकें। लेकिन घनानंद ने चाणक्य का प्रस्ताव ठुकरा दिया और उन्हें अपमानित करके दरबार से निकाल दिया। इससे चाणक्य के स्वाभिमान को गहरी चोट लगी और वे बहुत क्रोधित हुए।
अपने स्वभाव के अनुकूल उन्होंने चोटी खोलकर दृढ संकल्प किया कि जब तक वह घनानंद को अपदस्थ करके उसका समूल विनाश न कर देंगे तब तक चोटी में गांठ नहीं लगायेंगे। जब घनानंद को इस संकल्प की बात पता चली तो उसने क्रोधित होकर चाणक्य को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। लेकिन जब तक चाणक्य को बंदी बनाया जाता तब तक वे वहां से निकल चुके थे। महल से बाहर आते ही उन्होंने सन्यासी का वेश धारण किया और पाटलिपुत्र में ही छिपकर रहने लगे।
एक दिन चाणक्य की भेंट बालक चन्द्रगुप्त से हुई, जो उस समय अपने साथियों के साथ राजा और प्रजा का खेल खेल रहा था। राजा के रूप में चन्द्रगुप्त जिस कौशल से अपने संगी-साथियों की समस्या को सुलझा रहा था वह चाणक्य को भीतर तक प्रभावित कर गया। चाणक्य को चन्द्रगुप्त में भावी राजा की झलक दिखाई देने लगी। उन्होंने चन्द्रगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की और उसे अपने साथ तक्षशिला ले गए। वहां चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को वेद-शास्त्रों से लेकर युद्ध और राजनीति तक की शिक्षा दी।
लगभग आठ साल तक अपने संरक्षण में चन्द्रगुप्त को शिक्षित करके चाणक्य ने उसे एक शूरवीर बना दिया । उन्हीं दिनों विश्व विजय पर निकले यूनानी सम्राट सिकंदर विभिन्न देशों पर विजय प्राप्त करता हुआ भारत की ओर बढ़ा चला आ रहा था। गांधार का राजा आंभी सिकंदर का साथ देकर अपने पुराने शत्रु राजा पुरू को सबक सिखाना चाहता था।
चाणक्य को आंभी की यह योजना पता चली तो वे आंभी को समझाने के लिए गए। आंभी से चाणक्य ने इस सन्दर्भ में विस्तार पूर्वक बातचीत की, उसे समझाना चाहा, विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करने के लिए उसे प्रेरित करना चाहा; किन्तु आंभी ने चाणक्य की एक भी बात नहीं मानी। वह सिकंदर का साथ देने के लिए कटिबद्ध रहा। कुछ ही दिनों बाद जब सिकंदर गांधार प्रदेश में प्रविष्ट हुआ तो आंभी ने उसका जोरदार स्वागत किया। आंभी ने उसके सम्मान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया, जिसमें गांधार के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ-साथ तक्षशिला के आचार्य और छात्र भी आमंत्रित किये गए थे।
इस सभा में चाणक्य और उनके शिष्य चन्द्रगुप्त भी उपस्थित थे। सभा के दौरान सिकंदर के सम्मान में उसकी प्रशंसा के पुल बांधे गए। उसे महान बताते हुए देवताओं से उसकी तुलना की गयी सिकंदर ने अपने व्याख्यान में अप्रत्यक्षतः भारतीयों को धमकी-सी दी कि उनकी भलाई इसी में है कि वे उसकी सत्ता स्वीकार कर लें। चाणक्य ने सिकंदर की इस धमकी का खुलकर बड़ी ही संतुलित भाषा में विरोध किया। वे विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करना चाहते थे। चाणक्य के विचारों और नीतियों से सिकंदर प्रभावित अवश्य हुआ लेकिन विश्व विजय की लालसा के कारण वह युद्ध से विमुख नहीं होना चाहता था।
सभा विसर्जन के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सहयोग से तक्षशिला के पांच सौ छात्रों को संगठित किया और उन्हें लेकर राजा पुरु से भेंट की । चाणक्य को देशहित में पुरु का सहयोग मिलने में कोई कठिनाई नहीं हुई । जल्दी ही सिकंदर ने पुरु पर चढ़ाई कर दी। पुरु को चाणक्य और चन्द्रगुप्त का सहयोग प्राप्त था, इसलिए उसका मनोबल बढ़ा हुआ था । युद्ध में पुरु और उसकी सेना ने सिकंदर के छक्के छुड़ा दिए; लेकिन अचानक सेना के हाथी विचलित हो गए, जिससे पुरु की सेना में भगदड़ मच गई। सिकंदर ने उसका पूरा-पूरा लाभ उठाया और पुरु को बंदी बना लिया । बाद में उसने पुरु से संधि कर ली।
यह देखकर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर पुरु का साथ छोड़ने में ही भलाई समझी। इसके बाद चाणक्य अन्य राजाओं से मिले और उन्हें सिकंदर से युद्ध के लिए प्रेरित करते रहे । इसी बीच सिकंदर की सेना में फूट पड़ गयी। सैनिक लम्बे समय से अपने परिवारों से बिछुड़े हुए थे और युद्ध से ऊब चुके थे। इसलिए वे घर जाना चाहते थे । इधर बहरत में भी सिकंदर के विरुद्ध चाणक्य और चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में विभिन्न राजागण सिर उठाने लगे थे । यह देखकर सिकंदर ने यूनान लौटने का फैसला कर लिया। कुछ ही दिनों में बीमारी से उसकी मौत हो गई।
अब चाणक्य के समक्ष घनानंद को अपदस्थ करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने का लक्ष्य था। इस बीच चन्द्रगुप्त ने देश-प्रेमी क्षत्रियों की एक सेना संगठित कर ली थी । अतः चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर आक्रमण करने को प्रेरित किया। अपनी कूट नीति के बल पर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर विजय दिलवाई । इस युद्ध में राजा घनानंद की मौत हो गयी। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट घोषित कर दिया। बड़े जोर शोर से उसका स्वागत हुआ।
चन्द्रगुप्त अपने गुरु चाणक्य को महामंत्री बनाना चाहता था किन्तु चाणक्य ने यह पद स्वीकार नहीं किया । वह मगध के पूर्व महामंत्री ‘राक्षस’ को ही यह पद देना चाहते थे। किन्तु राक्षस पहले ही कहीं छिप गया था और अपने राजा घनानंद की मौत का बदला लेने का अवसर ढूँढ़ रहा था। चाणक्य यह बात जानते थे। उन्होंने राक्षस को खोजने के लिए गुप्तचर लगा दिए और एक कूटनीतिक चाल द्वारा राक्षस को बंदी बना लिया। चाणक्य ने राक्षस को कोई सजा नहीं दी, बल्कि चन्द्रगुप्त को सलाह दी कि वह उसके तमाम अपराध क्षमा करके उसे महामंत्री पद पर प्रतिष्ठित करे। चाणक्य खुद गंगा के तट पर एक आश्रम बनाकर रहने लगे। वहीं से वह राज्य की रीति-नीति का निर्धारण करते और चन्द्रगुप्त को यथायोग्य परामर्श देते रहते।
अपनी प्रखर कूटनीति के द्वारा आचार्य चाणक्य ने बिखरे हुए भारतीयों को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर महान राष्ट्र की स्थापना की। किन्तु विशाल मौर्य साम्राज्य के संस्थापक होते हुए भी वे अत्यंत निर्लोभी थे। पाटलिपुत्र के महलों में न रहकर वे गंगातट पर बनी एक साधारण-सी कुटिया में रहते थे और गोबर के उपलों पर अपना भोजन स्वयं तैयार करते थे। चाणक्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य कालांतर में एक महान साम्राज्य बना। चन्द्रगुप्त ने उनके मार्गदर्शन में लगभग चौबीस वर्ष राज्य किया और पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में बंगाल और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
आचार्य चाणक्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ एवं ‘नीतिशास्त्र’ नामक ग्रंथों की गणना विश्व की महान कृतियों में की जाती है। चाणक्य नीति में वर्णित सूत्र का उपयोग आज भी राजनीति के मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में किया जाता है।
*********************
Thanks for reading...
Tags: आचार्य चाणक्य का जीवन परिचय Aachary chanakya ka jivan parichay, Acharya Chanakya's biography. चाणक्य जीवनी. कौन थे आचार्य चाणक्य ? चाणक्य का जीवन परिचय. biography of Chanakya in Hindi. आचार्य चाणक्य संपूर्ण जीवन परिचय. चाणक्य के जीवन का रहस्य. Chanakya Biography in Hindi आचार्य चाणक्य की जीवनी. महान विद्वान आचार्य चाणक्य की जीवनी ! Great Chanakya In Hindi. चाणक्य: एक संक्षिप्त परिचय. चाणक्य जीवन गाथा. आचार्य चाणक्य जीवन दर्शन के ज्ञाता थे.
आपके लिए कुछ विशेष लेख
- इंडियन गांव लड़कियों के नंबर की लिस्ट - Ganv ki ladkiyon ke whatsapp mobile number
- Ghar Jamai rishta contact number - घर जमाई लड़का चाहिए
- रण्डी का मोबाइल व्हाट्सअप्प कांटेक्ट नंबर - Randi ka mobile whatsapp number
- धंधे वाली का मोबाइल नंबर चाहिए - Dhandha karne wali ladkiyon ke number chahiye
- नई रिलीज होने वाली फिल्मों की जानकारी और ट्रेलर, new bollywood movie trailer 2018
- अमीर घर की औरतों के मोबाइल नंबर - Rich female contact number free
- सेक्सी वीडियो डाउनलोड कैसे करें - How to download sexy video
- किन्नर व्हाट्सप्प मोबाइल नंबर फोन चाहिए - Kinner whatsapp mobile phone number
- सेक्स करने के लिए लड़की चाहिए - Sex karne ke liye sunder ladki chahiye
- अनाथ मुली विवाह संस्था फोन नंबर चाहिए - Anath aashram ka mobile number
एक टिप्पणी भेजें
प्रिय दोस्त, आपने हमारा पोस्ट पढ़ा इसके लिए हम आपका धन्यवाद करते है. आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा और आप क्या नया चाहते है इस बारे में कमेंट करके जरुर बताएं. कमेंट बॉक्स में अपने विचार लिखें और Publish बटन को दबाएँ.