प्रकृति हमारी संपत्ति है Prakriti hamari sampatti hai
प्रकृति हमारी संपत्ति है Prakriti hamari sampatti hai, Nature is our property प्रकृति क्या है? प्रकृति का महत्व? प्रकृति का सौंदर्य? प्रकृति की परिभाषा, प्रकृति par lekh, प्रकृति manushya ki mitra hai, प्रकृति रहस्य, प्रकृति speech in hindi प्रकृति पर हिंदी में निबंध.
हमारे ऋषि-मुनियों को प्रकृति की हर एक छोटी-मोटी चीजों पर उत्सुकता लगी रहती थी। उसी उत्सुकता के बल पर उन्हें प्रकृति के एक-एक नियम की जानकारी होने लगी। यह था विज्ञान का प्रारंभिक काल।
हमारे ऋषि-मुनियों को प्रकृति की हर एक छोटी-मोटी चीजों पर उत्सुकता लगी रहती थी। उसी उत्सुकता के बल पर उन्हें प्रकृति के एक-एक नियम की जानकारी होने लगी। यह था विज्ञान का प्रारंभिक काल।
इसी उत्सुकता के साथ निरीक्षण करते हुए पृथु नामक ऋषि जंगलों में घूमते रहे। पेड़-पौधों का जन्म कैसे होता है, वे कैसे बढ़ते हैं आदि बातें उसे ज्ञात हो गईं और उसने सर्वप्रथम धरती में बीज बोए। जंगली जीवन से स्थिर-प्रगत जीवन की ओर मानव का जो सफर शुरू हुआ, उसका यह प्रथम पडा़व था। इस पृथु के कारण ही हमारी धरती हरी-भरी फसल से लहलहाई। यही कारण है कि पृथु का स्मरण कर, हमारे ऋषि-मुनियों ने वसुंधरा को पृथ्वी नाम दिया। भारतीय संस्कृति को हम सदा से ही कृषि संस्कृति, प्राकृतिक संस्कृति कहते आए हैं।
वेदकाल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें यहां की धरती पर, पेड़-पौधों पर, प्राणिमात्र पर प्रेम करना ही सिखाया है। सारे जगत के अणु-रेणु में एक ही ईश्वर का वास रहता है, ऐसा संदेश उन्होंने दिया। साथ ही मानवी जीवन सुखी करनेवाली हर वस्तु का आदर तथा पूजन करना भी सिखाया। इसीलिए डरावने अंधकार को चीरकर उजाला देनेवाला सूरज, हमारा पहला देवता बना। जंगलों में लकड़ियों को घिसकर निर्माण हुई अग्नि हमारे लिए पूजनीय बन गई। हम सूरज के साथ-साथ अग्नि के भी पूजक हो गए।
जंगली जीवन से कृषिप्रधान नागरी जीवन में प्रवेश करने के बाद ऋषियों के ध्यान में आया कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ना नहीं चाहिए। इसी भूमिका को लेकर उन्होंने भारतीय त्योहार तथा उत्सवों का आयोजन किया। पेड़-पौधों को केवल जंगलों में ही नहीं, वरन नागरी जीवन में भी महत्त्वपूर्ण स्थान है, उन्होंने हर देवता के साथ एक वृक्ष की योजना की। इसी कारण शिवमंदिर के लिए बेल तथा सफेद चंपा के वृक्ष आवश्यक हो गए।
दत्तगुरू के साथ औदुंबर की योजना हुई। विष्णु की तुलसी से जोडी़ बन गई। साथ ही इन देवताओं पर चढा़ने के लिए फूल आए, पत्री आई। इसी कारण हर मंदिर के आंगन में फूलों के, पत्तियों के पेड़ लग गए। केवल पेड़-पौधों पर ही हमारे पूर्वज संतुष्ट नहीं रहे। उन्होंने हर देवता के लिए एक वाहन के रूप में प्राणी या पक्षी की योजना की। भयभीत करनेवाले बाघ-शेरों से लेकर चूहे तक का पूरा प्राणी जगत हमारे जीवन का अविच्छेद घटक बन गया। यही कारण था कि इन प्राणियों की हत्या न करने की सूचना देने की नौबत ही कभी किसी पर नहीं आई।
हमारे पूर्वजों ने दो नियम बनाए। एक नियम था राजा के लिए कि वह हर नए नगर में अच्छे उपवन तैयार करे, तो दूसरा नियम था गांवों के लिए कि गांव के बाहर स्थिर मंदिरों के चारों ओर घने पेड़-पौधे लगाए, जिसे देवराई कहा जाता था। जानवरों के लिए चराऊ जमीन भी छोड़ना जरूरी था, देवराई के वृक्ष तोड़ने के लिए मनाई थी और चराऊ जमीन बेचना मना था। इन दो नियमों के कारण देवराई की रक्षा होती थी और उनमें वृद्धि भी होती थी। आज भी कई मंदिरों के चारों ओर ऐसी देवराई देखी जाती है।
पूर्वजों की यह परंपरा हमारे संतों ने भी संभाली है। मानव, प्राणि तथा पेड़-पौधों का संतुलन रखना जरूरी है, इसका एहसास सभी संतों की रचनाओं में दिखाई देता है। प्रकृति में, बाग-बगीचों में, यहां तक कि फूल-सब्जी में भी विश्राम करनेवाला ईश्वर हर कोई देख सके, महसूस कर सके तो अपने चारों ओर प्रकृति का यह आभूषण सहजता से बन सकता है, किंतु ऐसा होते तो दिखाई नहीं देता। हमारी संस्कृति, हमारा विचार उच्च कोटि का है। प्रकृति का संतुलन कैसे रखें, यही समझाने वाला है, किंतु आज हमारा आचरण बिल्कुल इसके विपरीत है। हमारे पूर्वजों ने वटसावित्री की कथा सुनाई, पूजा सिखाई, वटवृक्ष की महिमा समझाने के लिए वटवृक्ष की शाखाओं से, जटाओं से संपन्न होता है, एक विशाल वन। वटवृक्ष की आयु दीर्घ तो है ही, साथ ही वह अपनी जडे़ं धरती में दूर तक ले जाकर धरती का क्षरण भी रोकता है अर्थात वटवृक्ष हमारा जीवन रक्षण करता है।
इसके ऐवज में हम वटवृक्ष को क्या देते हैं? कुछ नहीं। बल्कि हम तो उसका कत्ल करते हैं। जेठी पूनम के दिन वटसावित्री की पूजा होती है। हम वटवृक्ष की छोटी सी टहनी घर लाकर उसकी पूजा करते हैं। इन टहनियों के लिए उस दिन वटवृक्षों की बडी़ मात्रा में कटाई होती है। हम उसकी पूजा नहीं करते, वरन् उसकी शाखाएं काटकर उसे जख्मी करते हैं।
नागपंचमी के दिन नागपूजा करने का कारण, नाग किसानों का मित्र है, यह है। खेती में खडी़ फसल खानेवाले चूहों को खाकर नाग खेती की रक्षा करता हैं। यही कारण है नागपूजन का, किंतु शहरी नागरिकों को नागपूजन का मौका मिले, इसलिए नाग कैद कर लिए जाते हैं। उन पर अत्याचार किए जाते हैं। बैलों की पूजा आज भी गांव-गांव में होती है, लेकिन इस गोधन की भी हम उपेक्षा ही करते हैं। पेड़-पौधों की, पशु-पक्षियों का सरे आम कत्ल होता है, फिर भी हम उस ओर लापरवाह हैं। हममें से हर एक यही कहता रहता है कि इसमें मैं क्या कर सकता हूं? हर कोई अपनी, केवल अपनी बात सोचे और प्रकृति के लिए अपना कुछ करें, तो हमारी परंपरा आगे बढ़ने में कोई मुश्किल नहीं है।
Thanks for reading...
Tags: प्रकृति हमारी संपत्ति है Prakriti hamari sampatti hai, Nature is our property प्रकृति क्या है? प्रकृति का महत्व? प्रकृति का सौंदर्य? प्रकृति की परिभाषा, प्रकृति par lekh, प्रकृति manushya ki mitra hai, प्रकृति रहस्य, प्रकृति speech in hindi प्रकृति पर हिंदी में निबंध.
वेदकाल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें यहां की धरती पर, पेड़-पौधों पर, प्राणिमात्र पर प्रेम करना ही सिखाया है। सारे जगत के अणु-रेणु में एक ही ईश्वर का वास रहता है, ऐसा संदेश उन्होंने दिया। साथ ही मानवी जीवन सुखी करनेवाली हर वस्तु का आदर तथा पूजन करना भी सिखाया। इसीलिए डरावने अंधकार को चीरकर उजाला देनेवाला सूरज, हमारा पहला देवता बना। जंगलों में लकड़ियों को घिसकर निर्माण हुई अग्नि हमारे लिए पूजनीय बन गई। हम सूरज के साथ-साथ अग्नि के भी पूजक हो गए।
जंगली जीवन से कृषिप्रधान नागरी जीवन में प्रवेश करने के बाद ऋषियों के ध्यान में आया कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ना नहीं चाहिए। इसी भूमिका को लेकर उन्होंने भारतीय त्योहार तथा उत्सवों का आयोजन किया। पेड़-पौधों को केवल जंगलों में ही नहीं, वरन नागरी जीवन में भी महत्त्वपूर्ण स्थान है, उन्होंने हर देवता के साथ एक वृक्ष की योजना की। इसी कारण शिवमंदिर के लिए बेल तथा सफेद चंपा के वृक्ष आवश्यक हो गए।
दत्तगुरू के साथ औदुंबर की योजना हुई। विष्णु की तुलसी से जोडी़ बन गई। साथ ही इन देवताओं पर चढा़ने के लिए फूल आए, पत्री आई। इसी कारण हर मंदिर के आंगन में फूलों के, पत्तियों के पेड़ लग गए। केवल पेड़-पौधों पर ही हमारे पूर्वज संतुष्ट नहीं रहे। उन्होंने हर देवता के लिए एक वाहन के रूप में प्राणी या पक्षी की योजना की। भयभीत करनेवाले बाघ-शेरों से लेकर चूहे तक का पूरा प्राणी जगत हमारे जीवन का अविच्छेद घटक बन गया। यही कारण था कि इन प्राणियों की हत्या न करने की सूचना देने की नौबत ही कभी किसी पर नहीं आई।
हमारे पूर्वजों ने दो नियम बनाए। एक नियम था राजा के लिए कि वह हर नए नगर में अच्छे उपवन तैयार करे, तो दूसरा नियम था गांवों के लिए कि गांव के बाहर स्थिर मंदिरों के चारों ओर घने पेड़-पौधे लगाए, जिसे देवराई कहा जाता था। जानवरों के लिए चराऊ जमीन भी छोड़ना जरूरी था, देवराई के वृक्ष तोड़ने के लिए मनाई थी और चराऊ जमीन बेचना मना था। इन दो नियमों के कारण देवराई की रक्षा होती थी और उनमें वृद्धि भी होती थी। आज भी कई मंदिरों के चारों ओर ऐसी देवराई देखी जाती है।
पूर्वजों की यह परंपरा हमारे संतों ने भी संभाली है। मानव, प्राणि तथा पेड़-पौधों का संतुलन रखना जरूरी है, इसका एहसास सभी संतों की रचनाओं में दिखाई देता है। प्रकृति में, बाग-बगीचों में, यहां तक कि फूल-सब्जी में भी विश्राम करनेवाला ईश्वर हर कोई देख सके, महसूस कर सके तो अपने चारों ओर प्रकृति का यह आभूषण सहजता से बन सकता है, किंतु ऐसा होते तो दिखाई नहीं देता। हमारी संस्कृति, हमारा विचार उच्च कोटि का है। प्रकृति का संतुलन कैसे रखें, यही समझाने वाला है, किंतु आज हमारा आचरण बिल्कुल इसके विपरीत है। हमारे पूर्वजों ने वटसावित्री की कथा सुनाई, पूजा सिखाई, वटवृक्ष की महिमा समझाने के लिए वटवृक्ष की शाखाओं से, जटाओं से संपन्न होता है, एक विशाल वन। वटवृक्ष की आयु दीर्घ तो है ही, साथ ही वह अपनी जडे़ं धरती में दूर तक ले जाकर धरती का क्षरण भी रोकता है अर्थात वटवृक्ष हमारा जीवन रक्षण करता है।
इसके ऐवज में हम वटवृक्ष को क्या देते हैं? कुछ नहीं। बल्कि हम तो उसका कत्ल करते हैं। जेठी पूनम के दिन वटसावित्री की पूजा होती है। हम वटवृक्ष की छोटी सी टहनी घर लाकर उसकी पूजा करते हैं। इन टहनियों के लिए उस दिन वटवृक्षों की बडी़ मात्रा में कटाई होती है। हम उसकी पूजा नहीं करते, वरन् उसकी शाखाएं काटकर उसे जख्मी करते हैं।
नागपंचमी के दिन नागपूजा करने का कारण, नाग किसानों का मित्र है, यह है। खेती में खडी़ फसल खानेवाले चूहों को खाकर नाग खेती की रक्षा करता हैं। यही कारण है नागपूजन का, किंतु शहरी नागरिकों को नागपूजन का मौका मिले, इसलिए नाग कैद कर लिए जाते हैं। उन पर अत्याचार किए जाते हैं। बैलों की पूजा आज भी गांव-गांव में होती है, लेकिन इस गोधन की भी हम उपेक्षा ही करते हैं। पेड़-पौधों की, पशु-पक्षियों का सरे आम कत्ल होता है, फिर भी हम उस ओर लापरवाह हैं। हममें से हर एक यही कहता रहता है कि इसमें मैं क्या कर सकता हूं? हर कोई अपनी, केवल अपनी बात सोचे और प्रकृति के लिए अपना कुछ करें, तो हमारी परंपरा आगे बढ़ने में कोई मुश्किल नहीं है।
Thanks for reading...
Tags: प्रकृति हमारी संपत्ति है Prakriti hamari sampatti hai, Nature is our property प्रकृति क्या है? प्रकृति का महत्व? प्रकृति का सौंदर्य? प्रकृति की परिभाषा, प्रकृति par lekh, प्रकृति manushya ki mitra hai, प्रकृति रहस्य, प्रकृति speech in hindi प्रकृति पर हिंदी में निबंध.
आपके लिए कुछ विशेष लेख
- इंडियन गांव लड़कियों के नंबर की लिस्ट - Ganv ki ladkiyon ke whatsapp mobile number
- किन्नर व्हाट्सप्प मोबाइल नंबर फोन चाहिए - Kinner whatsapp mobile phone number
- अमीर घर की औरतों के मोबाइल नंबर - Rich female contact number free
- सेक्स करने के लिए लड़की चाहिए - Sex karne ke liye sunder ladki chahiye
- Ghar Jamai rishta contact number - घर जमाई लड़का चाहिए
- धंधे वाली का मोबाइल नंबर चाहिए - Dhandha karne wali ladkiyon ke number chahiye
- रण्डी का मोबाइल व्हाट्सअप्प कांटेक्ट नंबर - Randi ka mobile whatsapp number
- कैसे हुई सृष्टि की उत्पत्ति और कब होगा प्रलय Srishti ki utpatti aur parlya kab aur kaise
- नई रिलीज होने वाली फिल्मों की जानकारी और ट्रेलर, new bollywood movie trailer 2018
- अनाथ मुली विवाह संस्था फोन नंबर चाहिए - Anath aashram ka mobile number
एक टिप्पणी भेजें
प्रिय दोस्त, आपने हमारा पोस्ट पढ़ा इसके लिए हम आपका धन्यवाद करते है. आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा और आप क्या नया चाहते है इस बारे में कमेंट करके जरुर बताएं. कमेंट बॉक्स में अपने विचार लिखें और Publish बटन को दबाएँ.