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स्वार्थ में भला-बुरा भूल जाता है इंसान Swarath me bhala bura bhul jata hai insan
स्वार्थ में भला-बुरा भूल जाता है इंसान Swarath me bhala bura bhul jata hai insan, Pros and cons of self is forgotten man. स्वार्थ पूर्ति में हम भला-बुरा नहीं देखते। यदि मनुष्य में अच्छे-बुरे का विवेक नहीं रहेगा तो उसमें और पशु में अंतर क्या होगा. अच्छे आदमी की पहचान. स्वार्थी आदमी के नुकसान. कैसे पहचाने की आपकी बाहरी आँखें खुली है और अंदर की आँखें बंद है? भले बुरे की परख कैसे करें? क्या इन्सान का जन्म स्वार्थ के पीछे लगे रहने के लिए ही होता है?
एक संत के पास एक व्यक्ति आया और बोला, 'मैं स्वर्ग जाना चाहता हूं।' फिर भी संत ने पूछा- 'क्या तुम स्वर्ग में जाना चाहते हो?' उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- 'जी हां।'
संत ने फिर प्रश्न किया- 'क्या सचमुच जाना चाहते हो और उसकी तैयारी भी है तुम्हारी। सोच लो और सोचकर जवाब दो।' व्यक्ति ने कहा- 'जी हां, सोच विचार कर ही मैंने जवाब दिया है।' संत ने कहा- 'अच्छा, तो अपनी तिजोरियों की चाबी मुझे दे दो।' वह बोला- 'ऐसा तो मैं हरगिज नहीं कर सकता।' संत ने कहा- 'जब तुम इस संसार का मोह माया नहीं छोड़ सकते तो स्वर्ग जाने के पात्र नहीं हो सकते। अपने घर जा सकते हो, पर तुम स्वर्ग नहीं जा सकते। स्वर्ग में जानेवाले धन के लालची नहीं होते।'
यह समस्या स्वर्ग और नरक की नहीं, मनुष्य के भीतरी-बाहरी जीवन-संदर्भ की है। सब लोग सरलता पसंद करते हैं, गहराई में नहीं जाना चाहते। क्या गहरे में उतरे बिना किसी काम को सरल बनाया जा सकता है? जीवन को सफल और सार्थक हर व्यक्ति बनाना चाहता है, इसीलिए महापुरुष समझाते हैं कि अंदर की ओर ध्यान करो। स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करो। यह अनुभव कर लिया कि हम में से हर एक प्रभु का अंश है, तो फिर जिंदगी सुख-चैन और खुशी से ही गुजरेगी।
एक भाई शिव की मूर्ति पर रोज जल चढ़ाता था। जाड़ा हो, गर्मी हो, वर्षा हो, कभी नागा नहीं करता था। मंदिर के ठीक सामने एक घर था, जिसका मालिक नित्य दिन उस आदमी को आते और जल चढ़ाते देखता था। एक दिन उसने उस आदमी से पूछा, 'आपकी भक्ति से मैं मुग्ध हूं। प्रभु में इतनी लौ आपकी कैसे लगी?' उस आदमी ने कहा, 'मेरे पड़ोस में एक आदमी रहता था। मैंने उसकी थोड़ी-सी जमीन दबा ली। वह कोर्ट चला गया। मुकदमा चला। मैंने भोलेनाथ से प्रार्थना की कि अगर मैं मुकदमा जीत जाऊं तो आप पर नित्य जल चढ़ाया करूंगा। उनकी कृपा से मैं मुकदमा जीत गया। अब मैं अपने वचन का पालन कर रहा हूं।'
भक्ति का रहस्य समझ कर उस आदमी ने मन ही मन कहा, 'इसकी बाहरी आंखें खुली हैं, पर भीतरी बंद हैं।' हममें में जयादातर लोगों की स्थिति इसी प्रकार की है। हमारा स्वार्थ इतना प्रबल है कि उसकी पूर्ति में हम भला-बुरा कुछ भी नहीं देखते। यदि मनुष्य में अच्छे-बुरे का विवेक नहीं रहेगा तो उसमें और पशु में अंतर क्या होगा? इसी धर्म को जानने के लिए ऋषियों ने एक सूत्र दिया था- 'हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।' ये बातें तीन हैं, पर गहराई से देखें तो उनका तात्पर्य एक ही है और यही वास्तविक स्वर्ग का मार्ग है।
Thanks for reading...
Tags: स्वार्थ में भला-बुरा भूल जाता है इंसान Swarath me bhala bura bhul jata hai insan, Pros and cons of self is forgotten man. स्वार्थ पूर्ति में हम भला-बुरा नहीं देखते। यदि मनुष्य में अच्छे-बुरे का विवेक नहीं रहेगा तो उसमें और पशु में अंतर क्या होगा. अच्छे आदमी की पहचान. स्वार्थी आदमी के नुकसान. कैसे पहचाने की आपकी बाहरी आँखें खुली है और अंदर की आँखें बंद है? भले बुरे की परख कैसे करें? क्या इन्सान का जन्म स्वार्थ के पीछे लगे रहने के लिए ही होता है?
यह समस्या स्वर्ग और नरक की नहीं, मनुष्य के भीतरी-बाहरी जीवन-संदर्भ की है। सब लोग सरलता पसंद करते हैं, गहराई में नहीं जाना चाहते। क्या गहरे में उतरे बिना किसी काम को सरल बनाया जा सकता है? जीवन को सफल और सार्थक हर व्यक्ति बनाना चाहता है, इसीलिए महापुरुष समझाते हैं कि अंदर की ओर ध्यान करो। स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करो। यह अनुभव कर लिया कि हम में से हर एक प्रभु का अंश है, तो फिर जिंदगी सुख-चैन और खुशी से ही गुजरेगी।
एक भाई शिव की मूर्ति पर रोज जल चढ़ाता था। जाड़ा हो, गर्मी हो, वर्षा हो, कभी नागा नहीं करता था। मंदिर के ठीक सामने एक घर था, जिसका मालिक नित्य दिन उस आदमी को आते और जल चढ़ाते देखता था। एक दिन उसने उस आदमी से पूछा, 'आपकी भक्ति से मैं मुग्ध हूं। प्रभु में इतनी लौ आपकी कैसे लगी?' उस आदमी ने कहा, 'मेरे पड़ोस में एक आदमी रहता था। मैंने उसकी थोड़ी-सी जमीन दबा ली। वह कोर्ट चला गया। मुकदमा चला। मैंने भोलेनाथ से प्रार्थना की कि अगर मैं मुकदमा जीत जाऊं तो आप पर नित्य जल चढ़ाया करूंगा। उनकी कृपा से मैं मुकदमा जीत गया। अब मैं अपने वचन का पालन कर रहा हूं।'
भक्ति का रहस्य समझ कर उस आदमी ने मन ही मन कहा, 'इसकी बाहरी आंखें खुली हैं, पर भीतरी बंद हैं।' हममें में जयादातर लोगों की स्थिति इसी प्रकार की है। हमारा स्वार्थ इतना प्रबल है कि उसकी पूर्ति में हम भला-बुरा कुछ भी नहीं देखते। यदि मनुष्य में अच्छे-बुरे का विवेक नहीं रहेगा तो उसमें और पशु में अंतर क्या होगा? इसी धर्म को जानने के लिए ऋषियों ने एक सूत्र दिया था- 'हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।' ये बातें तीन हैं, पर गहराई से देखें तो उनका तात्पर्य एक ही है और यही वास्तविक स्वर्ग का मार्ग है।
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