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बच्चे कहीं कुंठा और तनाव में तो नहीं हैं Bachchen kahin kuntha aur tanav me to nahin hai
आपके बच्चे कहीं कुंठा और तनाव में तो नहीं जी रहे हैं? क्या आपके तनाव का भुक्तभोगी बन रहा है आपका बच्चा? यों नष्ट होती हैं शक्ति क्षमतायें. जानें क्यों होता है बच्चों को तनाव. बच्चों को तनाव परोस रही है स्कूली शिक्षा. क्या आपका बच्चा तनाव की स्थिति में है? Tanav Ko Karen Bye-Bye. तनाव में न आ जाए आपका बच्चा. इन कारणों से बच्चें और किशोर झेल रहे हैं तनाव. ये संकेत बताते हैं, तनाव की स्थिति से गुजर रहा है आपका बच्चा. बच्चों को दबाव और तनाव के इस दमघोंटू माहौल से बाहर निकालें. बच्चों में तनाव का मूल कारण. बच्चें की बातों में छिपा दर्द. बच्चे भी तनाव भरी जिंदगी जीते है. बच्चे की ज्यादा देखरेख करना जरूरी. बच्चों को तनाव मुक्त कैसे करें?

उस दिन अचानक तृप्ति को रोते देखकर मैं चौंक उठा रोते हुए वह बड़बड़ा रही थी, मम्मी आप गंदी हो मुझे प्यार नहीं करती जब देखो मुझे मारती रहती हो डांटती हो और वह फिर रोने लगी। मैंने देखा थोड़ी देर बाद वह चुप होकर मिठाई खाती हुई खेलने लगी। मगर उसकी बड़बड़ाहट मुझे व्यथित किये जा रही थी।

उस दिन अचानक तृप्ति को रोते देखकर मैं चौंक उठा रोते हुए वह बड़बड़ा रही थी, मम्मी आप गंदी हो मुझे प्यार नहीं करती जब देखो मुझे मारती रहती हो डांटती हो और वह फिर रोने लगी। मैंने देखा थोड़ी देर बाद वह चुप होकर मिठाई खाती हुई खेलने लगी। मगर उसकी बड़बड़ाहट मुझे व्यथित किये जा रही थी।
मुझे एक और घटना याद हो आयी। एक परिवार में मां बाप के अलावा तीन बच्चे थे। बड़े बच्चे प्रभात को मैं बचपन से देखता आ रहा हूँ। शुरू.शुरू में उसके पिता जी उसे पढ़ाते और थोड़ी सी गलती होने पर गाली देना और मारना शुरू कर देते। धीरे.धीरे प्रभात मार खाने का आदी हो गया। रटने की आदत ने उसे परीक्षा भवन में रटा हुआ पाठ भूलने की बीमारी लगा दी। बार - बार फेल होने से पढ़ाई के प्रति उसमें अरूचि पैदा हो गयी। इसमें मां के ताने और पिता की मार ने घी का काम किया। एक बार तो गजब हो गया पिटाई के जवाब में मैंने प्रभात को कहते पाया - तुम लोग मेरे मां.बाप नही हो न ही मेरा कोई भाई.बहन है। आज ठीक है मैं छोटा हूं इसलिए मुझे मार रहे हो जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मैं भी एक.एक को मारूंगा उसकी बातों में छिपे दर्द ने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया।
वास्तव में बच्चों का एक अलग संसार होता है। उनकी सोच मुस्कराहट और तोतली भाषा जहां उनके व्यक्तित्व को निखारती है वही मां.बाप भाई.बहन द्वारा दिया गया माहौल उन्हें नयी जिन्दगी शुरू करने के लिए संस्कारित करता है। यहां यह बात विचारणीय है कि हर कोई स्वस्थ सुंदर बच्चा चाहता है मगर वे इन बच्चों के प्रति सजग कितने होते है, आज सुंदरता का अर्थ केवल गोरी चमड़ी से लिया जाता है। वस्तुतः सुंदरता अपने आप में बड़ा विस्तृत अर्थ रखती है। एक स्वस्थ संस्कारित बच्चा ही सुंदर होता है शरीर का रंग उसमें एक निखार भर लाता है।
मेरा एक मित्र है सुब्रत समाजशास्त्र उनका विषय है। उनसे जब भी मेरी चर्चा होती है उनके सामाजिक.मनोवैज्ञानिक विश्लेषण मुझे सोचने की दिशा देते है। बच्चों में कुंठा और हमारा कर्तव्य पर उनका कहना था कि भौतिक सुख-सुविधाओं की दौड़ में जैसे हम तनावग्रस्त रहते हैं। वैसे ही ये बच्चे भी तनाव भरी जिंदगी जीते है। खिलखिलाती और अपनी तोतली बोली से सबको मोहित करने वाली तृप्ति जब रोती हुई उपरोक्त बातें कहने लगती है तो हमें लगता है कि तृप्ति अब बड़े.बुजुर्गो जैसी बातें करने लगी है। अगर हम कहें कि उसकी ये बातें प्रतिक्रियात्मक है तो आप या तो हंस कर टाल जायेंगे या कहने लगेंगे. कुंठा तनाव मानसिक दबाव आदि बातों से भला इन बच्चों का क्या वास्ता ! फिर ये बातें तो उम्र के साथ होती है। उन्हें किस बात का तनाव, उन्हें तो बस खाने खेलने हंसने और शरारत करने से मतलब होता है। हां उनके लिए हम जरूर तनाव और कुंठा की जिंदगी जीतें है।
ऐसा कहकर हम अपने को अंधेरे में तो रखते ही हैं हमसे कभी.कभी ऐसी भूल हो जाती है जिसका परिणाम बच्चे जिंदगी भर भुगतते हैं। असलियत यह है कि आज के बदलते परिवेश में जहां हिंसा रोज की खबर का एक साधारण हिस्सा बन गयी है। टूटते सबंध मजबूर सच बनाते जा रहे है। सुविधावादी संस्कृति हमारी परंपराओं और संस्कारों को निगलती जा रही है। प्रतियोगिता और स्पर्धा जीवन के हर निर्णय पर हावी होती जा रही है।
15 वर्षीया मुक्ता को डॉक्टर ने पूरी तरह चैक करके बताया कि इसे कोई बीमारी नहीं है। जब चिंतित मां कहने लगी डॉक्टर साहब इसे तो कुछ हजम नहीं होता। कुछ खाती पीती नहीं दिन भर शरीर तपता रहता है। ऐसे में परीक्षा कैसे देगी, कैसे पढ़ पायेगी, डॉक्टर ने गंभीर स्वर में कहां वास्तव में बहन जी मुक्ता को आपकी चिंता लग गयी है। आप इसकी पढ़ाई को ले कर इतनी अधिक परेशान हैं कि आपने इसे इसकी जिंदगी और मौत का सवाल बना दिया है। इसलिए यह मानसिक दबाव का शिकार हो गयी है। परीक्षा के दिनों में बच्चों को ऐसा प्रायः हो जाता है। लक्षण सबके अलग.अलग होते है.किसी को सिर में दर्द किसी को दस्त किसी को बुखार तो किसी को रात भर नींद नही आती। पर बीमारी सबकी एक जैसी होती है। बच्चे अपने मन की बातों को व्यक्त नहीं कर पाते या करते भी हैं तो हम या तो उसे समझते नही या नजर अंदाज कर देते हैं। पढ़ाई ही क्या बच्चों पर आज अनेक प्रकार के दबाव है जिनसे बच्चे भी बड़ों की तरह तनाव के शिकार हो रहे है। इतनी छोटी उम्र में जब टेंशन रहेगा तो बड़े होते.होते वही ब्लड प्रेशर हार्ट और नर्वस होने जैसी बीमारी में बदल जायेगा।
न्यूयार्क के मनोचिकित्सक और सोसाइटी आट एडोलेसेंट साइकिस्ट्री के नयूज लेटर के भूतपूर्व संपादक डा० जेण् लेफर का कहना है कि उपेक्षा से बच्चों का दिल टूट जाता है। बच्चे को अपनी जिज्ञासाए विकास या उपलब्धि का कोई भी सामान्य भावनात्मक पुरस्कार नहीं मिलता। जब कोई बच्चा पहली बार चलना सीखता है तो सामान्य माता.पिता की क्या प्रतिक्रिया होती है, वे प्रसन्न होते है और बच्चे की प्रशंसा करके उसे प्रोत्साहित करते है लेकिन जिस घर में प्यार और भावना नाम की कोई चीज नहीं होती वहां बच्चे की इस प्रगति पर कोई ध्यान नही दिया जाता। अगर मां.बाप में से किसी का ध्यान इस ओर जाता भी है तो उनमें से एक तरह की झुंझलाहट सी होती है। क्योंकि अब बच्चे की ज्यादा देखरेख करना जरूरी हो जाता है।
रचनाकार :- अश्विनी केशरवानी
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