Home
» Child-behaviors-by-age-in-india
» बच्चों में संस्कार कैसे डालें जिससे वो अच्छे बने Bachchon me sanskar kaise daale jisse vo achchhe bane
बच्चों में संस्कार कैसे डालें जिससे वो अच्छे बने Bachchon me sanskar kaise daale jisse vo achchhe bane
बच्चों में संस्कार कैसे डालें जिससे वो अच्छे बने Bachchon me sanskar kaise daale jisse vo achchhe bane. बच्चों को कैसे दें अच्छे संस्कार How to Teach Good Manners to Children? बच्चे में अच्छे संस्कार विकसित करना. बचपन से ही सिखाएं कि बड़ों से कैसे बात की जाए। बड़ों का अभिवादन करना, थैंक्यू और सॉरी कहना जरूर सिखाएं. संस्कारो को बचपन से ही उनके अंदर डालना चाहिए. च्चे को कैसे आएंगे संस्कार? बच्चों में अच्छे संस्कार का बीज रोपण. संस्कारी बच्चे. अच्छे संस्कार देना. संस्कार की बातें. बच्चों मे संस्कार. बच्चों को सिखाएं शिष्टाचार. बच्चों को कैसे दें अच्छे संस्कार?

उस दिन अचानक ही तृप्ति को रोते देखा मेरा ध्यान उसकी तरफ गया। रोते-रोते वह बड़बड़ा रही थी- ‘‘मम्मी, आप हमें कभी प्यार नहीं करतीं, हमेशा मारती रहती हैं...।’’ इसी तरह की एक और घटना मुझे याद आ रही है। उस परिवार में मां-बाप के अलावा तीन बच्चे हैं। बड़े लड़के प्रभात को मैं बचपन से जानता हूँ।

उस दिन अचानक ही तृप्ति को रोते देखा मेरा ध्यान उसकी तरफ गया। रोते-रोते वह बड़बड़ा रही थी- ‘‘मम्मी, आप हमें कभी प्यार नहीं करतीं, हमेशा मारती रहती हैं...।’’ इसी तरह की एक और घटना मुझे याद आ रही है। उस परिवार में मां-बाप के अलावा तीन बच्चे हैं। बड़े लड़के प्रभात को मैं बचपन से जानता हूँ।
शुरू में उसके पिता जी उसे पढ़ाते थे और थोड़ी सी भी गलती होने पर उसे डांटना और मारना शुरू कर देते थे। धीरे-धीरे प्रभात मार खाने के आदी हो गया। रटने की आदत ने जहां उसे परीक्षा भवन में रटा हुआ पाठ भूलने की बीमारी लगा दी, वहीं बार-बार फेल होने से पढ़ाई के प्रति उसमें अरूचि भी पैदा हो गयी। मां के ताने और पिता की मार ने उसे ढीठ बना दिया। एक बार मैंने उसे कहते सुना-’’तुम लोग मेरे मां-बांप नही हो न ही मेरे कोई भाई-बहन है। आज ठीक है कि मैं छोटा हूं, मुझे जितना चाहे मार लो, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मैं एक-एक को मारूंगा।’’
कुछ परिवारों में मां-बाप बच्चे को बुरा-भला कहने के लिए एक हो जाते हैं। साथ मिलकर उसे डांटते हैं। इससे बच्चे के मन पर बहुत गलत प्रभाव पड़ता है। अपनी उपलब्धियां उसे नगण्य लगने लगती है और वह कुंठाग्रस्त होता जाता है। कुछ परिवार ऐसे भी होते है। जहां मां-बांप में एक खूब डांटता-फटकारता है, तो दूसरा चुपचाप सुनता रहता है। नतीजा यह होता है कि परिवार का माहौल बच्चो के विकास के अनुकूल नहीं रह जाता।
22 वर्षीय सुजाता बताती है कि बचपन से दसियों बार उसने दिन में मां को कहते सुना था- ‘‘अरे काली-कलूटी, कितनी बार कहा कि काम करना सीख, इस तरह बैठे-बैठे कब तक खायेगी..फिर मोटे शरीर को लेकर ससुराल जायेगी और वहां मेरी नाक कटायेंगी...।’’ सुन-सुन कर वह इस हद तक कुंठित हो गयी कि अब जब भी कोई उसकी तारीफ करता है तो उसे लगने लगता है कि वह सब झूठ है, वह इसके लायक नहीं है।
मध्यमवर्ग के महत्वाकांक्षी परिवारों में बच्चों के मन को ठेस पहुंचाने का सबसे सामान्य तरीका है, ऐसी किसी भी सफलता की अवमानना करना, जिसे पूर्ण सफलता न कहा जा सके। ऐसे परिवारों में जब बच्चा परीक्षा में अच्छे अंग न ला कर सामान्य अंक लाता है, तब उसे खूब खरी-खोटी सुनायी जाती है। सानफ्रांसिस्को के जनरल अस्पताल के इन्फैंट पैरेंट प्रोग्राम की डाइरेक्टर जोरी पाॅल का कहना है कि ‘‘पूर्णतावादी मां-बाप अविवेकपूर्ण अपेक्षाएं करने लगते हैं।’’
मनोवैज्ञानिक और बाल-चिकित्सकों के अनुसार ‘‘बच्चे के मन को ठेस पहुंचाने का एक तरीका यह भी है कि उसकी स्वाभाविक जिज्ञासा को दबाने के लिए ऐसी धमकियां दी जायें जिससे वह कुंठा का शिकार हो जाये।’’
कुछ परिवारों में मां-बाप बच्चे को बुरा-भला कहने के लिए एक हो जाते हैं। साथ मिलकर उसे डांटते हैं। इससे बच्चे के मन पर बहुत गलत प्रभाव पड़ता है। अपनी उपलब्धियां उसे नगण्य लगने लगती है और वह कुंठाग्रस्त होता जाता है। कुछ परिवार ऐसे भी होते है। जहां मां-बांप में एक खूब डांटता-फटकारता है, तो दूसरा चुपचाप सुनता रहता है। नतीजा यह होता है कि परिवार का माहौल बच्चो के विकास के अनुकूल नहीं रह जाता।
22 वर्षीय सुजाता बताती है कि बचपन से दसियों बार उसने दिन में मां को कहते सुना था- ‘‘अरे काली-कलूटी, कितनी बार कहा कि काम करना सीख, इस तरह बैठे-बैठे कब तक खायेगी..फिर मोटे शरीर को लेकर ससुराल जायेगी और वहां मेरी नाक कटायेंगी...।’’ सुन-सुन कर वह इस हद तक कुंठित हो गयी कि अब जब भी कोई उसकी तारीफ करता है तो उसे लगने लगता है कि वह सब झूठ है, वह इसके लायक नहीं है।
मध्यमवर्ग के महत्वाकांक्षी परिवारों में बच्चों के मन को ठेस पहुंचाने का सबसे सामान्य तरीका है, ऐसी किसी भी सफलता की अवमानना करना, जिसे पूर्ण सफलता न कहा जा सके। ऐसे परिवारों में जब बच्चा परीक्षा में अच्छे अंग न ला कर सामान्य अंक लाता है, तब उसे खूब खरी-खोटी सुनायी जाती है। सानफ्रांसिस्को के जनरल अस्पताल के इन्फैंट पैरेंट प्रोग्राम की डाइरेक्टर जोरी पाॅल का कहना है कि ‘‘पूर्णतावादी मां-बाप अविवेकपूर्ण अपेक्षाएं करने लगते हैं।’’
मनोवैज्ञानिक और बाल-चिकित्सकों के अनुसार ‘‘बच्चे के मन को ठेस पहुंचाने का एक तरीका यह भी है कि उसकी स्वाभाविक जिज्ञासा को दबाने के लिए ऐसी धमकियां दी जायें जिससे वह कुंठा का शिकार हो जाये।’’
डा०. वाटकिस का कहना है कि ‘‘हम उस तरह के प्रभुत्व की बात कर रहे हैं, जिसमें मां-बाप बच्चे की हर हरकत पर नियंत्रण रखने का प्रयत्न करते हैं। बच्चे को सड़क या गली में जाने से रोकने के लिए घर के बाहर बाड़ जैसी कोई वास्तविक सीमा खड़ी करने के स्थान पर, मां-बाप ऐसी दीवारें खड़ी कर देते हैं, जो दिखाई नहीं देती। बच्चे से कहा जाता है कि यदि उसने अपने आप कोई खोज करने की कोशिश की, या मां-बाप की बातों का उल्लंघन किया, तो उसका परिणाम भयंकर होगा।’’
जिन युवाओं की भावनाओं को बचपन में ठेस पहुंची थी, उनमें से कुछ तो अच्छे मां-बांप बनने का संकल्प लेते हैं। लेकिन बच्चों को डांटने-फटकारने वाले दूसरी पीढ़ी के बहुत से लोगों की समस्याएं तब तक उभर कर सामने नहीं आती जब तक उनके अपने बच्चें नही हो जाते। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में सबसे अच्छा तरीका यही है कि परिवार के हर सदस्य का उपचार किया जाये।
मनोवैज्ञानिक पाल का कहना है कि मां-बाप द्वारा बुरी तरह डांटे-फटकारे जाने वाले बहुत से बच्चे समझते है कि वे इसी लायक है। बड़ी उम्र के अन्य लोगों की चुप्पी और निष्कियता से बच्चों को यह विश्वास हो जाता है कि वे वाकई निकम्मे बुरे या डरपोक हैं।
मिनियापोलिस की मिनिसोटा युनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक बायरन एगलैंड ने माता-पिता द्वारा बच्चों के पालन-पोषण और बच्चे के प्रारंभिक विकास के बारे में व्यापक अध्ययन किया है। उनका कहना है कि बच्चों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का परिणाम मारने-पीटने जैसा विनाशकारी हो सकता है। उन्होंने अपने खोजी रपट में कहा है कि जिन बच्चों की भावनाओं को बचपन में ठेस पहुंचती है, बड़े होने पर उनका विकास दूसरे बच्चों की अपेक्षा कम हो पाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भावनाओं को ठेस पहुंचाते रहने से बच्चों के स्वाभिमान में निरंतर कमी आ जाती है।
बच्चों के मन को ठेस पहुंचाने वाले लोग बच्चे के अनुचित व्यवहार के कारण नहीं, बल्कि अपनी मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण ऐसा करते है। डांटने-फटकारने वाले मां-बाप चाहे कम आमदनी वाले हो या समृद्ध, आम तौर पर ऐसे लोग होते है जिनको माता-पिता से पर्याप्त प्यार नहीं मिला होता है और जिनका ठीक से पालन-पोषण भी नहीं हुआ होता है। प्रायः वे सभी यह समझने में असमर्थ होते हैं कि बच्चों का जो व्यवहार होता है, उसका संबंध शायद ऐसी किसी बात से न हो, जो उनके माता-पिता ने की है, या जिसे करने में वे असमर्थ रहे हैं। उदाहरण के लिए गाली-गलौच करने वाले माता-पिता अकसर यह समझते हैं कि अगर कोई बच्चा रो रहा है तो उसका कारण भूख या डर नहीं, बल्कि वह ‘बिगड़ा हुआ’ है, या वह यह चाहता है कि उसे गोद में उठा लिया जाये।
सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा०. जे. लेफर मन को ठेस पहुंचाने वाली चार बातों का उल्लेख करते है -
जिन युवाओं की भावनाओं को बचपन में ठेस पहुंची थी, उनमें से कुछ तो अच्छे मां-बांप बनने का संकल्प लेते हैं। लेकिन बच्चों को डांटने-फटकारने वाले दूसरी पीढ़ी के बहुत से लोगों की समस्याएं तब तक उभर कर सामने नहीं आती जब तक उनके अपने बच्चें नही हो जाते। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में सबसे अच्छा तरीका यही है कि परिवार के हर सदस्य का उपचार किया जाये।
मनोवैज्ञानिक पाल का कहना है कि मां-बाप द्वारा बुरी तरह डांटे-फटकारे जाने वाले बहुत से बच्चे समझते है कि वे इसी लायक है। बड़ी उम्र के अन्य लोगों की चुप्पी और निष्कियता से बच्चों को यह विश्वास हो जाता है कि वे वाकई निकम्मे बुरे या डरपोक हैं।
मिनियापोलिस की मिनिसोटा युनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक बायरन एगलैंड ने माता-पिता द्वारा बच्चों के पालन-पोषण और बच्चे के प्रारंभिक विकास के बारे में व्यापक अध्ययन किया है। उनका कहना है कि बच्चों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का परिणाम मारने-पीटने जैसा विनाशकारी हो सकता है। उन्होंने अपने खोजी रपट में कहा है कि जिन बच्चों की भावनाओं को बचपन में ठेस पहुंचती है, बड़े होने पर उनका विकास दूसरे बच्चों की अपेक्षा कम हो पाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भावनाओं को ठेस पहुंचाते रहने से बच्चों के स्वाभिमान में निरंतर कमी आ जाती है।
बच्चों के मन को ठेस पहुंचाने वाले लोग बच्चे के अनुचित व्यवहार के कारण नहीं, बल्कि अपनी मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण ऐसा करते है। डांटने-फटकारने वाले मां-बाप चाहे कम आमदनी वाले हो या समृद्ध, आम तौर पर ऐसे लोग होते है जिनको माता-पिता से पर्याप्त प्यार नहीं मिला होता है और जिनका ठीक से पालन-पोषण भी नहीं हुआ होता है। प्रायः वे सभी यह समझने में असमर्थ होते हैं कि बच्चों का जो व्यवहार होता है, उसका संबंध शायद ऐसी किसी बात से न हो, जो उनके माता-पिता ने की है, या जिसे करने में वे असमर्थ रहे हैं। उदाहरण के लिए गाली-गलौच करने वाले माता-पिता अकसर यह समझते हैं कि अगर कोई बच्चा रो रहा है तो उसका कारण भूख या डर नहीं, बल्कि वह ‘बिगड़ा हुआ’ है, या वह यह चाहता है कि उसे गोद में उठा लिया जाये।
सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा०. जे. लेफर मन को ठेस पहुंचाने वाली चार बातों का उल्लेख करते है -
1. कोई चीज छीन लेना,
2. दूरी पैदा करना,
3. निंदा करना और
4. अधिकार जताना।
ऐसे माता-पिता अपने ही मानसिक द्वंद को प्रकट करते हैं और बच्चों के पालन-पोषण में उत्पन्न होने वाले वास्तविक दबावों का सामना करने से बचने के लिए इनमें से किसी एक या चारों विधियों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार जो मां-बाप मानसिक रूप से पीड़ित होते है, वे न तो अपने रोते बच्चे को गले लगाते हैं और न ही वे बच्चे के विकास में रूचि दिखाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि उनके बच्चों में सुरक्षा के लिए अपने माता-पिता के प्रति लगाव पैदा नहीं हो पाता। सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा० एगलैंड का कहना है कि ‘‘जिन बच्चों को मारा-पीटा जाता है वे इसी डर से अपने संरक्षक से कतराते हैं। मानसिक चोट खाये बच्चे भी तिरस्कार की संभावना के कारण अपने मां-बांप से कतराते हैं।’’
उपेक्षा से बच्चों का दिल टूट जाता है और यहीं उनका विकास रूक जाता है। जब कोई बच्चा पहली बार चलना सीखता है, तब माता-पिता प्रसन्न होते हैं। बच्चे की सराहना करके उसे प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन जिस घर में प्यार और भावना नाम की कोई चीज नहीं होती। वहां बच्चे की प्रगति पर कोई ध्यान नही दिया जाता, उसे दूर करना बहुत जरूरी है। क्योंकि बच्चों की स्वस्थ मानसिकता के लिए उन्हें घर पर भी स्वस्थ वातावरण मिलना जरूरी है।
उपेक्षा से बच्चों का दिल टूट जाता है और यहीं उनका विकास रूक जाता है। जब कोई बच्चा पहली बार चलना सीखता है, तब माता-पिता प्रसन्न होते हैं। बच्चे की सराहना करके उसे प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन जिस घर में प्यार और भावना नाम की कोई चीज नहीं होती। वहां बच्चे की प्रगति पर कोई ध्यान नही दिया जाता, उसे दूर करना बहुत जरूरी है। क्योंकि बच्चों की स्वस्थ मानसिकता के लिए उन्हें घर पर भी स्वस्थ वातावरण मिलना जरूरी है।
रचनाकार :- अश्विनी केशरवानी
Thanks for reading...
Tags: बच्चों में संस्कार कैसे डालें जिससे वो अच्छे बने Bachchon me sanskar kaise daale jisse vo achchhe bane. बच्चों को कैसे दें अच्छे संस्कार How to Teach Good Manners to Children? बच्चे में अच्छे संस्कार विकसित करना. बचपन से ही सिखाएं कि बड़ों से कैसे बात की जाए। बड़ों का अभिवादन करना, थैंक्यू और सॉरी कहना जरूर सिखाएं. संस्कारो को बचपन से ही उनके अंदर डालना चाहिए. च्चे को कैसे आएंगे संस्कार? बच्चों में अच्छे संस्कार का बीज रोपण. संस्कारी बच्चे. अच्छे संस्कार देना. संस्कार की बातें. बच्चों मे संस्कार. बच्चों को सिखाएं शिष्टाचार. बच्चों को कैसे दें अच्छे संस्कार?
Thanks for reading...
Tags: बच्चों में संस्कार कैसे डालें जिससे वो अच्छे बने Bachchon me sanskar kaise daale jisse vo achchhe bane. बच्चों को कैसे दें अच्छे संस्कार How to Teach Good Manners to Children? बच्चे में अच्छे संस्कार विकसित करना. बचपन से ही सिखाएं कि बड़ों से कैसे बात की जाए। बड़ों का अभिवादन करना, थैंक्यू और सॉरी कहना जरूर सिखाएं. संस्कारो को बचपन से ही उनके अंदर डालना चाहिए. च्चे को कैसे आएंगे संस्कार? बच्चों में अच्छे संस्कार का बीज रोपण. संस्कारी बच्चे. अच्छे संस्कार देना. संस्कार की बातें. बच्चों मे संस्कार. बच्चों को सिखाएं शिष्टाचार. बच्चों को कैसे दें अच्छे संस्कार?
आपके लिए कुछ विशेष लेख
- इंडियन गांव लड़कियों के नंबर की लिस्ट - Ganv ki ladkiyon ke whatsapp mobile number
- सेक्स करने के लिए लड़की चाहिए - Sex karne ke liye sunder ladki chahiye
- रण्डी का मोबाइल व्हाट्सअप्प कांटेक्ट नंबर - Randi ka mobile whatsapp number
- नई रिलीज होने वाली फिल्मों की जानकारी और ट्रेलर, new bollywood movie trailer 2018
- Ghar Jamai rishta contact number - घर जमाई लड़का चाहिए
- सेक्सी वीडियो डाउनलोड कैसे करें - How to download sexy video
- अनाथ मुली विवाह संस्था फोन नंबर चाहिए - Anath aashram ka mobile number
- UDISE + PLUS CODE, School Directory Management, School Data Capture
- किन्नर व्हाट्सप्प मोबाइल नंबर फोन चाहिए - Kinner whatsapp mobile phone number
- करकै घायल तड़फती छोड़ी - हरयाणवी रागनी Karke ghal tadapti chhodi - ragni
एक टिप्पणी भेजें
प्रिय दोस्त, आपने हमारा पोस्ट पढ़ा इसके लिए हम आपका धन्यवाद करते है. आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा और आप क्या नया चाहते है इस बारे में कमेंट करके जरुर बताएं. कमेंट बॉक्स में अपने विचार लिखें और Publish बटन को दबाएँ.