तरबूज की खेती करने का आधुनिक तरीका Tarbooj Ki Kheti Ka aadhunik tarika
तरबूज की खेती करने का आधुनिक तरीका Tarbooj Ki Kheti Ka aadhunik tarika तरबूज की उन्नत खेती कैसे करें Tarbooj (Watermelon) Ki Kheti Kaise Kare तरबूज की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Tarbooj ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. खेती मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा. अधिकतम उपज के लिए ध्यान रखने योग्य बातें. बेहतर फसल के लिए टिप्स सुझाव और उपाय. कम खर्च में ज्यादा पैदावार कैसे ले. अच्छी फसल तैयार करने के लिए अपनाए ये तरीके.
तरबूज एक कुकरविटेसी परिवार की गर्मियों की सब्जी तथा फल होता है जो कि गर्मी में पैदा किया जाता है। यह फसल उत्तरी भारत के भागों में अधिक पैदा की जाती है। सब्जी के रूप में कच्चे फल जिनमें बीज कम व गूदा ही प्रयोग किया जाता है। तरबूजे की फसल तराई व गंगा यमुना के क्षेत्रों में अधिक पैदा किये जाते हैं।

तरबूज एक कुकरविटेसी परिवार की गर्मियों की सब्जी तथा फल होता है जो कि गर्मी में पैदा किया जाता है। यह फसल उत्तरी भारत के भागों में अधिक पैदा की जाती है। सब्जी के रूप में कच्चे फल जिनमें बीज कम व गूदा ही प्रयोग किया जाता है। तरबूजे की फसल तराई व गंगा यमुना के क्षेत्रों में अधिक पैदा किये जाते हैं।
तरबूज एक गर्मियों का मुख्य फल है। जोकि मई-जून की तेज धूप व लू के लिये लाभदायक होता है। फल गर्मी में अधिक स्वादिष्ट होते हैं। फलों का सेवन स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है। तरबूजे में पोषक तत्व भी होते हैं जैसे- कैलोरीज, मैग्नीशियम, सल्फर, लोहा, आक्जौलिक अम्ल तथा पोटेशियम की अधिक मात्रा प्राप्त होती है तथा पानी की भी अधिक मात्रा होती है।
तरबूज की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु - तरबूजे के लिए अधिक तापमान वाली जलवायु सबसे अच्छी होती है। गर्म जलवायु अधिक होने से वृद्धि अच्छी होती है। ठण्डी व पाले वाली जलवायु उपयुक्त नहीं होती। अधिक तापमान से फलों की वृद्धि अधिक होती है। बीजों के अंकुरण के लिये 22-25 डी०से०ग्रेड तापमान सर्वोत्तम है तथा सन्तोषजनक अंकुरण होता है। नमी वाली जलवायु में पत्तियों में बीमारी आने लगती है।
तरबूज की खेती के लिए खेत की तैयारी - तरबूज के लिए रेतीली तथा रेतीली दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती गंगा, यमुना व नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर की जाती है। भूमि में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाना चाहिए। अधिक रेत होने पर ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए। इस प्रकार से भूमि का पी. एच. मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए। भूमि की तैयारी की आवश्यकता अनुसार जुताई कराकर खेत को ठीक प्रकार से तैयार कर लेना चाहिए तथा साथ-साथ छोटी-छोटी क्यारियां बना लेनी उचित रहती हैं। भारी मिट्टी को ढेले रहित कर बोना चाहिए। रेतीली भूमि के लिये अधिक जुताइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस प्रकार से 3-4 जुताई पर्याप्त होती हैं।
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग - तरबूज को खाद की आवश्यकता पड़ती है। गोबर की खाद 20-25 ट्रौली को रेतीली भूमि में भली-भांति मिला देना चाहिए। यह खाद क्यारियों में डालकर भूमि तैयारी के समय मिला देना चाहिए। 80 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर देना चाहिए तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 60-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से देनी चाहिए। फास्फेट व पोटाश तथा नत्रजन की आधी मात्रा को भूमि की तैयारी के समय मिलाना चाहिए तथा शेष नत्रजन की मात्रा को बुवाई के 25-30 दिन के बाद देना चाहिए। खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि की उर्वरा शक्ति के ऊपर निर्भर करती है। उर्वरा शक्ति भूमि में अधिक हो तो उर्वरक व खाद की मात्रा कम की जा सकती है। बगीचों के लिये तरबूजे की फसल के लिए खाद 5-6 टोकरी तथा यूरिया व फास्फेट 200 ग्राम व पोटाश 300 ग्राम मात्रा 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिए पर्याप्त होती है। फास्फेट, पोटाश तथा 300 ग्राम यूरिया को बोने से पहले भूमि तैयार करते समय मिला देना चाहिए। शेष यूरिया की मात्रा 20-25 दिनों के बाद तथा फूल बनने से पहले 1-2 चम्मच पौधों में डालते रहना चाहिए।
तरबूज की उन्नतशील जातियां - कुछ मुख्य जातियां, निम्न प्रकार से हैं :
1. आसाही-पामाटो (Asahi Pamato)- इस किस्म के फल मध्यम आकार के, छिलका हल्का हरा होता है। गूदा लाल, मीठा तथा फल के छोटे बीज होते है। फल 6-8 कि.ग्रा. वजन के होते हैं तथा 90-100 दिनों में तैयार हो जाते हैं।
2. शुगर बेबी (Sugar Baby)- यह किस्म भी 95-100 दिनों मे तैयार होती है जिनका छिलका ऊपर से गहरे रंग की हल्की गहरी धारियां लिये हुये होता है। गूदा गहरा लाल, मीठा तथा बीज भी छोटे होते हैं। फल छोटे व मध्यम आकार के होते हैं।
3. न्यू हेम्पसाइन मिडगेट (New Hampshine Midget)-यह किस्म गृह-वाटिका के लिये बहुत ही उपयुक्त होती है। इसके फल 2-3 किग्रा. के होते हैं। फल अधिक लगते हैं। छिलका हल्का हरा काली धारियों के साथ होता है। गूदा लाल, मीठा होता है।
अन्य जातियां- अर्का ज्योति, पूसा रसाल, कटागोलास आदि जातियां अच्छी उपज देती है।
बुवाई का समय एवं दूरी - तरबूज की बुवाई का समय नवम्बर से मार्च तक है। नवम्बर-दिसम्बर की बुवाई करके पौधों को पाले से बचाना चाहिए तथा अधिकतर बुवाई जनवरी-मार्च के शुरू तक की जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के महीनों में बोया जाता है। तरबूज की बुवाई के समय दूरी भी निश्चित होनी चाहिए। जाति व भूमि उर्वरा शक्ति के आधार पर दूरी रखते हैं। लम्बी जाति बढ़ने वाली के लिए 3 मी. कतारों की दूरी रखते हैं तथा थामरों की आपस की दूरी 1 मीटर रखते हैं। एक थामरे में 3-4 बीज लगाने चाहिए तथा बीज की गहराई 4-5 सेमी. से अधिक नहीं रखनी चाहिए। कम फैलने वाली जातियों की दूरी 1.5 मी. कतारों की तथा थामरों की दूरी 90 सेमी. रखनी चाहिए। बगीचों के लिये कम क्षेत्र होने पर कम दूरी रखने की सिफारिश की जाती है तथा न्यू हेम्पशाइन मिडगेट को बोना चाहिए।
बीज की मात्रा एवं बोने का ढंग व दूरी - बीज की मात्रा बुवाई के समय, जाति तथा बीज के आकार व दूरी पर निर्भर करती है। नवम्बर-दिसम्बर में बोई जाने वाली फसल में बीज अधिक, फरवरी-मार्च में बोई जाने वाली फसल में बीज कम लगते हैं। इसलिए औसतन बीज की मात्रा 3-4 किलो प्रति हेक्टर आवश्यकता पड़ती है। बीजों को अधिकतर हाथों द्वारा लगाना प्रचलित है। इससे अधिक बीज बेकार नहीं होता है तथा थामरों में हाथ से छेद करके बीज बो दिया जाता है। बगीचे के लिये थामरे में 2-3 लगाते हैं तथा इस प्रकार से बीज की मात्रा 20-25 ग्राम 8-10 वर्ग-मी. क्षेत्र के लिये पर्याप्त होती है। बीज को हाथ से छेद्ररोपण करके लगाना चाहिए।
सिंचाई एवं खरपतवार-नियन्त्रण - तरबूज की सिंचाई बुवाई के 10-15 दिन के बाद करनी चाहिए। यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो पहले कमी की जा सकती है। जाड़े की फसल के लिये पानी की कम आवश्यकता पड़ती है। लेकिन जायद की फसल के लिये अधिक पानी की जरूरत होती है, क्योंकि तापमान बढ़ने से गर्मी हो जाती है जिससे मिट्टी में नमी कम हो जाती है। फसल की सिंचाई नालियों से 8-10 दिन के अन्तर से करते रहना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि नमी समाप्त नहीं हो पाये। सिंचाई के बाद खरपतवार पनपने लगता है। इनको फसल से निकालना अति आवश्यक होता है अन्यथा इनका प्रभाव पैदावार पर पड़ता है। साथ-साथ अधिक पौधों को थामरे से निकाल देना चाहिए। 2 या 3 पौधे ही रखना चाहिए। इस प्रकार से पूरी फसल में 2 या 3 निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। यदि रोगी व कीटों पौधों हो तो फसल से निकाल देना चाहिए जिससे अन्य पौधों पर कीट व बीमारी नहीं लग सके।
फलों को तोड़ना - तरबूजे के फलों को बुवाई से 3 या 3½ महीने के बाद तोड़ना आरम्भ कर देते हैं। फलों को यदि दूर भेजना हो तो पहले ही तोड़ना चाहिए। प्रत्येक जाति के हिसाब से फलों के आकार व रंग पर निर्भर करता है कि फल अब परिपक्व हो चुका है। आमतौर से फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी पका है या कच्चा। दूर के बाजार में यदि भेजना हो तो पहले ही फलों को तोड़ना चाहिए। फलों को पौधों से अलग सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्योंकि फल बहुत बड़े यानी 10-15 किलो के जाति के अनुसार होते हैं। फलों को डंठल से अलग करने के लिये तेज चाकू का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा शाखा टूटने का भय रहता है।
उपज - तरबूजे की पैदावार किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है। साधारणत: तरबूजे की औसतन पैदावार 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टर फल प्राप्त हो जाते हैं।
भण्डारण - तरबूजे को तोड़ने के बाद 2-3 सप्ताह आराम से रखा जा सकता है। फलों को ध्यान से ले जाना चाहिए। हाथ से ले जाने में गिरकर टूटने का भी भय रहता है। फलों को 2 डी०सें०ग्रेड से 5 डी०सें०ग्रेड तापमान पर रखा जा सकता है। अधिक लम्बे समय के लिए रेफरीजरेटर में रखा जा सकता है।
रोगों से तरबूज के पौधों का बचाव - तरबूजे के लिये भी अन्य कुकरविटस की तरह रोग व कीट लगते हैं लेकिन बीमारी अधिकतर क्यूजैरीयम बिल्ट व एन थ्रेकनोज लगती है तथा कीट रेड बीटिल अधिक क्षति पहुंचाते हैं | बीमारी के लिए रोग-विरोधी जातियों को प्रयोग करना चाहिए तथा कीटों के लिए डी.टी.टी. पाउडर का छिड्काव करना चाहिए। ध्यान रहे कि रासायनिक दवाओं के प्रयोग के बाद 10-15 दिन तक फलों का प्रयोग न करें तथा बाद में धोकर प्रयोग करें।
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