आंवला की आधुनिक खेती करने की जानकारी Aanvala ki aadhunik kheti karne ki jankari
आंवला की आधुनिक खेती करने की जानकारी Aanvala ki aadhunik kheti karne ki jankari. आंवला की खेती कैसे करें. आंवला की खेती की जानकारी. आंवले की खेती करके एक अॉटो ड्राइवर बन गया करोड़पति. आंवले से लें भरपूर पैदावार. आंवला की उन्नत औषधिय खेती. इस प्रकार करें आंवले की खेती. पाएं आंवला की खेती पर जानकारी. कलमी पौध विधि से आंवले की खेती में ज्यादा लाभ. आंवला की खेती को लाभ का धंधा बना रहे. आंवले का पौधा. अमला की खेती इन हिंदी. Aanvala ki Kheti Kaise Kare आंवला की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Aanvala ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari.

आंवला एक अत्यधिक उत्पादनशील प्रचुर पोषक तत्वों वाला तथा अद्वितीय औषधि गुणों वाला पौधा है। आवंला का फल विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है, तथा शर्करा एवं अन्य पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसके फलो को ताजा एवं सुखाकर दोनों तरह से प्रयोग में लाया जाता है इसके साथ ही आयुर्वेदिक दवाओं में आंवला का प्रमुख स्थान है। यह भारत का ही देशज पौधा है।

आंवला एक अत्यधिक उत्पादनशील प्रचुर पोषक तत्वों वाला तथा अद्वितीय औषधि गुणों वाला पौधा है। आवंला का फल विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है, तथा शर्करा एवं अन्य पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसके फलो को ताजा एवं सुखाकर दोनों तरह से प्रयोग में लाया जाता है इसके साथ ही आयुर्वेदिक दवाओं में आंवला का प्रमुख स्थान है। यह भारत का ही देशज पौधा है।
जलवायु और भूमि - आंवला का पौधा जलवायु एवं भूमि दोनों के प्रति काफी सहिष्णु होता है इसके लिए शुष्क जलवायु उत्तम मानी जाती है। आंवला एक समशीतोष्ण पौधा है। सामान्य रूप से आंवला की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है उसरीली तथा अन्य प्रकार की बंजर भूमि जिसका पी एच मान 9.00 तक हो उसमे भी इसकी खेती की जा सकती है फिर भी उचित जल निकास के साथ बलुई दोमट से मटियार दोमट भूमि जो कैल्शियम युक्त हो सर्वोतम रहती है।
प्रजातियाँ - आंवला की व्यवसायिक प्रजातियाँ जैसे कि चकैईया, फ्रांसिस ,कृष्णा, कंचन ,बलवंत आंवला ,नरेन्द्र आंवला -4, 6 एवं 7 तथा गंगा बनारसी, प्रमुख प्रजातियाँ है इनमे से किसी एक प्रजाति का चुनाव कर सकते है।
खेत की तैयारी - उसर भूमि में गड्ढो की खुदाई 8 से 10 मीटर की दूरी पर 1.00 - 1.25 मीटर आकर के गड्ढे खोद लेना चाहिए यदि कड़ी परत कंकड़ की तह हो तो उसे खोदकर अलग कर देना चाहिए। अन्यथा बाद में पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है गड्ढो को बरसात में पानी से भर देना चाहिए प्रत्येक गड्ढे में 50 से 60 किलो गोबर की खाद 15 से 20 किलो ग्राम बालू 8 से 10 किलो ग्राम जिप्सम तथा 6 किलो ग्राम पाईराइट मिलाना चाहिए। गड्ढा भरते समय 50 से 100 ग्राम क्लोरोपाईरीफास धूल भी भरनी चाहिए गड्ढे भराई के 15 -20 दिन बाद ही पौधे का रोपण किया जाना चाहिए सामान्य भूमि में 40-50 किग्रा सड़ी गोबर की खाद 100 ग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का मिश्रण 15:15 में देना आवश्यक है इसके अलावा 250 से 500 ग्राम नीम की खली तथा साथ में 100 -150 ग्राम क्लोरोपाईरिफास डस्ट मिलाना अनिवार्य है। गड्ढे जमीन की सतह से 15-20 सेमी० ऊँचाई तक भरना चाहिए।
पौधों की रोपाई - भूमि की दशा के अनुसार गड्ढो की तैयारी करके सीधे 3 से 4 आंवले का बीज अथवा पालीथीन में तैयार बीजू पौधो को रोपित करना चाहिए।
पोषण प्रबंधन - आवंला की फसल में प्रति वर्ष 100 ग्राम नाइट्रोजन 60 ग्राम फास्फोरस तथा 75 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ के हिसाब से देते रहना चाहिए। इसी तरह से प्रतेक वर्ष पर 100 ग्राम नाइट्रोजन 60 ग्राम फास्फोरस तथा 75 ग्राम पोटाश बढ़ाकर प्रति पेड़ देते रहना चाहिए। इसके साथ ही ऊसर भूमि में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई पड़ते है अत:2-3 वर्ष उर्वरको के साथ 250 से 500 ग्राम जिंक सल्फेट फलत वाले पौधो में देना चाहिए।
सिचाई, निराई और गुड़ाई - आंवला के नव रोपित बागो में गर्मिया में 10 दिन के अन्तराल पर तथा जाड़े में एक माह के अन्तराल पर पेंड़ो की सिचाई करते रहना चाहिए पौधों के बड़े हो जाने पर बागो में मई जून माह में एक बार पानी देना आवश्यक है फूल आते समय बागो में किसी भी तरह से पानी नहीं देना चाहिए टपक विधि (ड्राप इरीगेशन) से बंजर भूमि में सिचाई करनी चाहिए शुरू में आवंला के बगीचों में बीच की जगह में कोई फसल ली जा सकती है सिचाई के बाद निराई गुड़ाई करना अति आवश्यक रहता है जिससे भूमि मुलायम रहे तथा खरपतवार न उग सके पेड़ बड़े होने पर कुदाल से गुड़ाई करनी चाहिए और घास एवं खरपतवार से साफ रखना चाहिए।
रोग प्रबंधन - आवंला में उतक क्षय रोग तथा रस्ट बीमारी लगती है। इनके नियंत्रण के लिए 0.4 -0.5 % बोरेक्स का छिडकाव प्रथम अप्रैल में द्वितीय जुलाई एवं तृतीय सितम्बर में उतक क्षय हेतु करना चाहिए तथा रस्ट नियंत्रण हेतु 0.2% डाईथेन जेड 78 या मैनकोजेब का छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
कीट प्रबंधन - आंवला में छाल खाने वाले पत्ती खाने वाले तथा शूटगाल मेकर कीट प्रमुख है। इनके नियंत्रण हेतु छाल वाले कीट के लिए मेटासिसटाक्स या डाईमिथोएट तथा 10 भाग मिटटी का तेल मिलकर रुई भोगोकर तना के छिद्रों में डालकर चिकनी मिटटी से बन्द कर देना चाहिए। पत्ती कीट हेतु 0.5 मिली लीटर फ़स्फ़ोमिडान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। तथा शूटगाल मेकर हेतु 1.25 मिली० मोनोक्रोटोफास या 0.6 मिली० फ़स्फ़ोमिडान प्रति लीटर पानी मिलकर छिडकाव करना चाहिए।
फसल कटाई - आंवला की कलामी बाग में पौधों से तीसरे चौथे साल से फलत शुरू हो जाती है आंवला का फल नवम्वर -दिसंबर में पककर तैयार होता शुरू में पौधों में फल कम आते है जब पौधा विकसित हो जाता है तो फल अच्छी तरह से अधिक आते है फल पूरे बढकर तैयार होने पर उनका रंग हल्का पीला हो जाता है तब फल तोड़ने लाइक हो जाते है फलो को हाथ से या रस्सी की जाली बनाकर डंडे में बाधकर तोड़ते है फल जमीन पर नही गिरने देना चाहिए और किसी भी तरह से फल चोटल न ही होने चाहिए चोट लगाने पर फल सड़ जाता है इन बातो का ध्यान फलों की तुडाई में रखना अति आवश्यक है।
पैदावार - पूर्ण रूप से विकसित एक पौधे से 2.5 से 3.00 कुंतल फल प्राप्त होते है, तथा 150 से 200 कुंतल प्रति हैक्टर फल प्राप्त होते है।
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