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प्रतिदिन सूर्योदय से एक घंटा पहले जागकर मनुष्य धर्म और अर्थ के विषय में विचार करे - Jaruri baten
सूर्योदय के समय और दिन में सोने से आयु क्षीण होती है। प्रतिदिन सूर्योदय से एक घंटा पहले जागकर मनुष्य धर्म और अर्थ के विषय में विचार करे। सूर्योदय तक कभी न सोये। यदि किसी दिन ऐसा हो जाये तो प्रायश्चित करे, गायत्री मंत्र का जप करे, उपवास करे या फलादि पर ही रहे। (महाभारत, अनुशासन पर्व)
सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीना स्वास्थ्य के लिए उत्तम है।
सुबह जागने पर हथेलियों के दर्शन करने का मंत्र
कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमध्ये सरस्वति । करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि दोनों हाथों में कुछ 'तीर्थ' भी होते हैं. चारों उंगलियों के सबसे आगे के भाग में 'देवतीर्थ', तर्जनी के मूल भाग में 'पितृतीर्थ', कनिष्ठा के मूल भाग में 'प्रजापतितीर्थ' और अंगूठे के मूल भाग में 'ब्रह्मतीर्थ' माना जाता है. इसी तरह दाहिने हाथ के बीच में 'अग्नितीर्थ' और बाएं हाथ के बीच में 'सोमतीर्थ' और उंगलियों के सभी पोरों और संधियों में 'ऋषितीर्थ' है. इनका दर्शन भी कल्याणकारी माना गया है.
सुबह जागने पर जमीन पर पैर रखते ही इस मंत्र का ध्यान रख कदम आगे बढ़ाएं -
समुद्र वसने देवी पर्वतस्तन मण्डले। विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे।
स्नान मंत्र
1.गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।
2.ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।। इस मंत्र का अर्थ है - कोई भी मनुष्य जो पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो, जो भगवान पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष पवित्र करें।
3. गंगा माता का कथन है कि स्नान करते वक्त कोई चाहे जहां भी मेरा स्मरण करेगा, मैं वहां के जल में आ जाऊंगी. स्नान करते वक्त गंगा के उन कथनों को इस श्लोक के रूप में पढ़ना चाहिए:
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय।
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्।। (आचारप्रकाश से)
सूर्योदय के समय ताँबे के लोटे में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देना चाहिए। इस समय आँखें बंद करके भ्रूमध्य में सूर्य की भावना करनी चाहिए।
'ब्रह्म पुराण' के अनुसार जो विशुद्ध मन से प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं,वे अभिलषित भोगों को भोगकर उत्कृष्ट गति को प्राप्त करते हैं। इसलिए प्रतिदिन पवित्र होकर सुन्दर पुष्प-गंध आदि से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देने से रोगी रोग से मुक्त हो जाता है, धनार्थी धन, विद्यार्थी विद्या एवं पुत्रार्थी पुत्र प्राप्त करता है। जो विद्वान पुरुष मन में जिस इच्छा को रखकर सूर्य को अर्घ्य देता है, उसकी वह इच्छा भलीभाँति पूर्ण होती है।
सूर्य को अर्घ्य देने से 'सूर्यकिरण युक्त' जल चिकित्सा का भी लाभ मिलता है।
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय मौन होकर संध्योपासना करनी चाहिए। संध्योपासना के अंतर्गत शुद्ध व स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम व जप किये जाते हैं। दोपहर में बारह बजे के पूर्व व पश्चात 15-15 मिनट के काल में मध्याह्न संध्या की जाती है। इस प्रकार नियमित त्रिकाल संध्या करने वाले को रोजी रोटी के लिए कभी हाथ फैलाना नहीं पड़ता-ऐसा शास्त्रवचन है।
ऋषि लोग प्रतिदिन संध्योपासना करने से ही दीर्घजीवी हुए हैं। (महाभारत, अनुशासन पर्व)
उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसका प्रतिबिम्ब न देखें।
प्रतिदिन 30 मिनट टहलने की आदत बनायें. टहलते समय मन मे श्रेष्ठ विचारों का सृजन करें।
प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट अन्दर से शान्त होकर बैठें।
सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीना स्वास्थ्य के लिए उत्तम है।
सुबह जागने पर हथेलियों के दर्शन करने का मंत्र
कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमध्ये सरस्वति । करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि दोनों हाथों में कुछ 'तीर्थ' भी होते हैं. चारों उंगलियों के सबसे आगे के भाग में 'देवतीर्थ', तर्जनी के मूल भाग में 'पितृतीर्थ', कनिष्ठा के मूल भाग में 'प्रजापतितीर्थ' और अंगूठे के मूल भाग में 'ब्रह्मतीर्थ' माना जाता है. इसी तरह दाहिने हाथ के बीच में 'अग्नितीर्थ' और बाएं हाथ के बीच में 'सोमतीर्थ' और उंगलियों के सभी पोरों और संधियों में 'ऋषितीर्थ' है. इनका दर्शन भी कल्याणकारी माना गया है.
सुबह जागने पर जमीन पर पैर रखते ही इस मंत्र का ध्यान रख कदम आगे बढ़ाएं -
समुद्र वसने देवी पर्वतस्तन मण्डले। विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे।
स्नान मंत्र
1.गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।
2.ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।। इस मंत्र का अर्थ है - कोई भी मनुष्य जो पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो, जो भगवान पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष पवित्र करें।
3. गंगा माता का कथन है कि स्नान करते वक्त कोई चाहे जहां भी मेरा स्मरण करेगा, मैं वहां के जल में आ जाऊंगी. स्नान करते वक्त गंगा के उन कथनों को इस श्लोक के रूप में पढ़ना चाहिए:
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय।
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्।। (आचारप्रकाश से)
सूर्योदय के समय ताँबे के लोटे में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देना चाहिए। इस समय आँखें बंद करके भ्रूमध्य में सूर्य की भावना करनी चाहिए।
'ब्रह्म पुराण' के अनुसार जो विशुद्ध मन से प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं,वे अभिलषित भोगों को भोगकर उत्कृष्ट गति को प्राप्त करते हैं। इसलिए प्रतिदिन पवित्र होकर सुन्दर पुष्प-गंध आदि से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देने से रोगी रोग से मुक्त हो जाता है, धनार्थी धन, विद्यार्थी विद्या एवं पुत्रार्थी पुत्र प्राप्त करता है। जो विद्वान पुरुष मन में जिस इच्छा को रखकर सूर्य को अर्घ्य देता है, उसकी वह इच्छा भलीभाँति पूर्ण होती है।
सूर्य को अर्घ्य देने से 'सूर्यकिरण युक्त' जल चिकित्सा का भी लाभ मिलता है।
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय मौन होकर संध्योपासना करनी चाहिए। संध्योपासना के अंतर्गत शुद्ध व स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम व जप किये जाते हैं। दोपहर में बारह बजे के पूर्व व पश्चात 15-15 मिनट के काल में मध्याह्न संध्या की जाती है। इस प्रकार नियमित त्रिकाल संध्या करने वाले को रोजी रोटी के लिए कभी हाथ फैलाना नहीं पड़ता-ऐसा शास्त्रवचन है।
ऋषि लोग प्रतिदिन संध्योपासना करने से ही दीर्घजीवी हुए हैं। (महाभारत, अनुशासन पर्व)
उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसका प्रतिबिम्ब न देखें।
प्रतिदिन 30 मिनट टहलने की आदत बनायें. टहलते समय मन मे श्रेष्ठ विचारों का सृजन करें।
प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट अन्दर से शान्त होकर बैठें।
सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
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