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आइये जाने कि दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बैठाते है? Dulhe ko ghodi par kyo baithaya jata hai?
दूल्हा घोड़ी पर क्यों बैठता है? विवाह में घोड़ी पर ही क्यों बैठता है दूल्हा? इस वजह से शादी के दिन घोड़ी पर बैठकर अपनी दुल्हन लेने जाते हैं लड़के, आइये जाने कि दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बैठाते है? Dulhe ko ghodi par kyo baithaya jata hai? शादी के अवसर पर हमेशा वर को घोड़ी पर ही क्यों बैठाया जाता है?
दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बैठाते हैं किसी और सवारी पर क्यों नहीं? पुराने समय में कई बार शादियों के समय लड़ाइयां लड़ी जाती थी... लड़ाई दुल्हन के लिए और दूल्हे द्वारा अपनी वीरता दिखाने के लिए।
ग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग आते हैं जब दूल्हे को दुल्हन के लिए रणभूमि में युद्ध करना पड़ा। श्रीराम और सीता के स्वयंवर के समय भी ऐसा प्रसंग हुआ था।
जब श्रीराम के गले में वरमाला डालने सीता जा रही थी तो वहां मौजूद सभी विरोधी राजाओं ने अपनी-अपनी तलवार निकाल ली थी और श्रीराम से युद्ध करने की तैयारी कर ली थी।
परंतु परशुराम के आने के बाद सभी को ज्ञात हो गया कि श्रीराम से युद्ध साक्षात् मृत्यु से युद्ध होगा और वहां युद्ध टल गया। वहीं श्रीकृष्ण और रुकमणि के विवाह के समय भी युद्ध हुआ था। ऐसे कई प्रसंग हैं।
इन्हीं कारणों से दूल्हे को घोड़े पर बैठाने की परंपरा शुरू की गई। वैसे उस समय हाथी की सवारी भी चलन में थी परंतु घोड़ा वीरता और शौर्य का प्रतिक माना जाता है और युद्ध के मैदान में घोड़े की ही अहम भूमिका होती है।
दूल्हे का रूप भी किसी रणवीर के समान रहता है उसकी भी यही वजह है। आधुनिक युग में जब स्वयंवर और लड़ाइयों से जैसी परंपरा बंद हो गई तब दूल्हे को बतौर शगुन घोड़ी पर बैठाना शुरू कर दिया।
Thanks for reading...
Tags: दूल्हा घोड़ी पर क्यों बैठता है? विवाह में घोड़ी पर ही क्यों बैठता है दूल्हा? इस वजह से शादी के दिन घोड़ी पर बैठकर अपनी दुल्हन लेने जाते हैं लड़के, आइये जाने कि दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बैठाते है? Dulhe ko ghodi par kyo baithaya jata hai? शादी के अवसर पर हमेशा वर को घोड़ी पर ही क्यों बैठाया जाता है?
दूल्हे को घोड़ी पर ही क्यों बैठाते हैं किसी और सवारी पर क्यों नहीं? पुराने समय में कई बार शादियों के समय लड़ाइयां लड़ी जाती थी... लड़ाई दुल्हन के लिए और दूल्हे द्वारा अपनी वीरता दिखाने के लिए।

ग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग आते हैं जब दूल्हे को दुल्हन के लिए रणभूमि में युद्ध करना पड़ा। श्रीराम और सीता के स्वयंवर के समय भी ऐसा प्रसंग हुआ था।
जब श्रीराम के गले में वरमाला डालने सीता जा रही थी तो वहां मौजूद सभी विरोधी राजाओं ने अपनी-अपनी तलवार निकाल ली थी और श्रीराम से युद्ध करने की तैयारी कर ली थी।
परंतु परशुराम के आने के बाद सभी को ज्ञात हो गया कि श्रीराम से युद्ध साक्षात् मृत्यु से युद्ध होगा और वहां युद्ध टल गया। वहीं श्रीकृष्ण और रुकमणि के विवाह के समय भी युद्ध हुआ था। ऐसे कई प्रसंग हैं।
इन्हीं कारणों से दूल्हे को घोड़े पर बैठाने की परंपरा शुरू की गई। वैसे उस समय हाथी की सवारी भी चलन में थी परंतु घोड़ा वीरता और शौर्य का प्रतिक माना जाता है और युद्ध के मैदान में घोड़े की ही अहम भूमिका होती है।
दूल्हे का रूप भी किसी रणवीर के समान रहता है उसकी भी यही वजह है। आधुनिक युग में जब स्वयंवर और लड़ाइयों से जैसी परंपरा बंद हो गई तब दूल्हे को बतौर शगुन घोड़ी पर बैठाना शुरू कर दिया।
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