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कन्यादान किसे कहते है? यह कैसे करते है? Kanyadan kya hai aur kyo karte hai?
कन्यादान किसे कहते है? यह कैसे करते है? Kanyadan kya hai aur kyo karte hai? शादी में कन्यादान का क्या महत्त्व है? शादी में क्यों निभाई जाती है कन्यादान की रस्म? कन्यादान के बाद कन्या का वास कहाँ होता है? कन्यादान कौन करता है? कन्यादान को शास्त्रों में क्या माना जाता है?
बेटियां माता-पिता के घर की रौनक होती हैं। कहते हैं जिस घर में बेटिया नहीं होती वहां शादी ब्याह हो या कोई तीज त्यौहार कुछ खालीपन सा लगता हैं।
हर व्यक्ति इतना भाग्यशाली नहीं होता कि उसे कन्यादान का सुख प्राप्त हो सके क्योंकि कन्यादान का शास्त्रों में बहुत अधिक पूण्यकार्य माना गया है। कन्यादान का अर्थ है कन्या की जिम्मेदारी योग्य हाथों में सौंपना।
कन्यादान के बाद कन्या नये घर में जाकर परायेपन का अनुभव न करे, उसे भरपूर प्यार और अपनापन मिले। सहयोग की कमी अनुभव न हो, इसका पूरा ध्यान रखना चाहिये।
कन्या के हाथ हल्दी से पीले करके माता-पिता अपने हाथ में कन्या के हाथ, गुप्तदान का धन और पुष्प रखकर संकल्प बोलते हैं और उन हाथों को वर के हाथों में सौंप देते हैं।
वर इन हाथों को गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ अपने हाथों में पकड़कर, इस जिम्मेदारी को स्वीकार करता है।
कन्या के रूप में अपनी पुत्री, वर को सौंपते हुए उसके माता-पिता अपने सारे अधिकार और उत्तरदायित्व भी को सौंपते हैं। कन्या के कुल गोत्र अब पितृ परम्परा से नहीं, पति परम्परा के अनुसार होंगे।
कन्या को यह भावनात्मक पुरुषार्थ करने तथा पति को उसे स्वीकार करने या निभाने की शक्ति देवशक्तियाँ प्रदान कर रही हैं ।
इस भावना के साथ कन्यादान का संकल्प बोला जाता है। संकल्प पूरा होने पर संकल्प करने वाला कन्या के हाथ वर के हाथ में सौंप देता है, यही परंपरा कन्यादान कहलाती है।
Thanks for reading...
Tags: कन्यादान किसे कहते है? यह कैसे करते है? Kanyadan kya hai aur kyo karte hai? शादी में कन्यादान का क्या महत्त्व है? शादी में क्यों निभाई जाती है कन्यादान की रस्म? कन्यादान के बाद कन्या का वास कहाँ होता है? कन्यादान कौन करता है? कन्यादान को शास्त्रों में क्या माना जाता है?
बेटियां माता-पिता के घर की रौनक होती हैं। कहते हैं जिस घर में बेटिया नहीं होती वहां शादी ब्याह हो या कोई तीज त्यौहार कुछ खालीपन सा लगता हैं।

हर व्यक्ति इतना भाग्यशाली नहीं होता कि उसे कन्यादान का सुख प्राप्त हो सके क्योंकि कन्यादान का शास्त्रों में बहुत अधिक पूण्यकार्य माना गया है। कन्यादान का अर्थ है कन्या की जिम्मेदारी योग्य हाथों में सौंपना।
कन्यादान के बाद कन्या नये घर में जाकर परायेपन का अनुभव न करे, उसे भरपूर प्यार और अपनापन मिले। सहयोग की कमी अनुभव न हो, इसका पूरा ध्यान रखना चाहिये।
कन्या के हाथ हल्दी से पीले करके माता-पिता अपने हाथ में कन्या के हाथ, गुप्तदान का धन और पुष्प रखकर संकल्प बोलते हैं और उन हाथों को वर के हाथों में सौंप देते हैं।
वर इन हाथों को गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ अपने हाथों में पकड़कर, इस जिम्मेदारी को स्वीकार करता है।
कन्या के रूप में अपनी पुत्री, वर को सौंपते हुए उसके माता-पिता अपने सारे अधिकार और उत्तरदायित्व भी को सौंपते हैं। कन्या के कुल गोत्र अब पितृ परम्परा से नहीं, पति परम्परा के अनुसार होंगे।
कन्या को यह भावनात्मक पुरुषार्थ करने तथा पति को उसे स्वीकार करने या निभाने की शक्ति देवशक्तियाँ प्रदान कर रही हैं ।
इस भावना के साथ कन्यादान का संकल्प बोला जाता है। संकल्प पूरा होने पर संकल्प करने वाला कन्या के हाथ वर के हाथ में सौंप देता है, यही परंपरा कन्यादान कहलाती है।
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