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जो स्त्री प्रेम में पड़ जाती है वो सुन्दर क्यों हो जाती है? - Love me padne ke baad aurat sunder kyo ho jati hai?
जो स्त्री प्रेम में पड़ जाती है वो सुन्दर क्यों हो जाती है? - Love me padne ke baad aurat sunder kyo ho jati hai? क्या आप मानते है कि प्रेम से रूप में निखार आता है? यदि आप नहीं जानते है तो आज के इस पोस्ट में पढ़ लीजिये.
आपने देखा होगा कि प्रेम में पड़ चुके लोगों का देखने का नजरीया बिलकुल बदल जाता है और जो लोग प्रेम में नहीं पड़े है वो उस तरह से बिलकुल नहीं देख पाते है।
एक साधारण स्त्री प्रेम में पड़ जाने के कारण अति सुन्दर हो जाती है और वहीं व्यक्ति कुरूप् भी हो सकता है, यदि हम धृणा से भरे है। इंद्रिया भरोसे के योग्य नहीं होती है वे तो केवल एक उपकरण मात्र है।
प्रत्यक्ष बोध क्या है?
प्रत्यक्ष बोध केवल तब हो सकता है, जब कोई भी मधस्थ नही होता है। इन्द्रीयाँ भी नहीं होती है। महर्षि पतंजली कहते है तब वह सम्यक ज्ञान (प्रत्यक्ष बोध) होता है। यही बुनियादी श्रोत है सम्यक ज्ञान का।
हम जब बिना किसी पर निर्भर हुए जो कुछ सीधे-सीधे जानते है वहीं प्रत्यक्ष बोध होता है। गहरे ध्यान में ही हम इन्द्रीयो का अतिक्रमण कर पाते है। तब प्रत्यक्ष बोध संभव हो पाता है।
जब बुद्ध अपने अंतरतम अस्तित्व को जानते है, वही अंतरतम सत्ता प्रत्यक्ष है। वही प्रत्यक्ष बोध है। उसमें इन्द्रिया भागीदार नहीं है। ज्ञाता और ज्ञात आमने-सामने हो जाते है।
पहला सम्यक ज्ञान आंतरिक सत्ता का होता हैं। हम सारे संसार को जान सकता है लेकिन बिना स्वयं को जाने सब असंगत है।
Thanks for reading...
Tags: जो स्त्री प्रेम में पड़ जाती है वो सुन्दर क्यों हो जाती है? - Love me padne ke baad aurat sunder kyo ho jati hai? क्या आप मानते है कि प्रेम से रूप में निखार आता है? यदि आप नहीं जानते है तो आज के इस पोस्ट में पढ़ लीजिये.
आपने देखा होगा कि प्रेम में पड़ चुके लोगों का देखने का नजरीया बिलकुल बदल जाता है और जो लोग प्रेम में नहीं पड़े है वो उस तरह से बिलकुल नहीं देख पाते है।

एक साधारण स्त्री प्रेम में पड़ जाने के कारण अति सुन्दर हो जाती है और वहीं व्यक्ति कुरूप् भी हो सकता है, यदि हम धृणा से भरे है। इंद्रिया भरोसे के योग्य नहीं होती है वे तो केवल एक उपकरण मात्र है।
प्रत्यक्ष बोध क्या है?
प्रत्यक्ष बोध केवल तब हो सकता है, जब कोई भी मधस्थ नही होता है। इन्द्रीयाँ भी नहीं होती है। महर्षि पतंजली कहते है तब वह सम्यक ज्ञान (प्रत्यक्ष बोध) होता है। यही बुनियादी श्रोत है सम्यक ज्ञान का।
हम जब बिना किसी पर निर्भर हुए जो कुछ सीधे-सीधे जानते है वहीं प्रत्यक्ष बोध होता है। गहरे ध्यान में ही हम इन्द्रीयो का अतिक्रमण कर पाते है। तब प्रत्यक्ष बोध संभव हो पाता है।
जब बुद्ध अपने अंतरतम अस्तित्व को जानते है, वही अंतरतम सत्ता प्रत्यक्ष है। वही प्रत्यक्ष बोध है। उसमें इन्द्रिया भागीदार नहीं है। ज्ञाता और ज्ञात आमने-सामने हो जाते है।
पहला सम्यक ज्ञान आंतरिक सत्ता का होता हैं। हम सारे संसार को जान सकता है लेकिन बिना स्वयं को जाने सब असंगत है।
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