नवरात्रि में कन्याओं के पैरों का पूजन क्यों होता है? Navratri me kanya ke pair pujne ka kya karan hai? क्यों करना चाहिए नवरात्रि में कन्याओं के पैर का पूजन? कन्या पूजन से क्या लाभ मिलता है? कन्या पूजन क्यों किया जाता है? कन्या पूजन का क्या कारण है? आइये जानकारी लेते है.
हमारी भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। नवरात्रि के त्यौहार से जुड़ी भी कई परंपराएं हैं। उन्ही में से एक परंपरा है कन्याओं के पैरों का पूजन कर उन्हें भोजन करवाने की। इसका धार्मिक कारण यह है कि कुमारी कन्याएं माता के समान ही पवित्र व पूजनीय होती हैं।
दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजी से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य की, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का विधान है।
इससे अधिक उम्र की कन्याओं को देवी पूजन में वर्जित माना गया है। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छ: वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शांभवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की सुभद्रा स्वरूप होती है।
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हमारी भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। नवरात्रि के त्यौहार से जुड़ी भी कई परंपराएं हैं। उन्ही में से एक परंपरा है कन्याओं के पैरों का पूजन कर उन्हें भोजन करवाने की। इसका धार्मिक कारण यह है कि कुमारी कन्याएं माता के समान ही पवित्र व पूजनीय होती हैं।
दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजी से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य की, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का विधान है।
इससे अधिक उम्र की कन्याओं को देवी पूजन में वर्जित माना गया है। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छ: वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शांभवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की सुभद्रा स्वरूप होती है।
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