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पूजा के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा क्यों दी जाती है? Puja ke baad Brahman ko dakshina kyo dete hai?
दक्षिणा का महत्व, पूजा पाठ या हवन के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा देने का प्रावधान, अनुष्ठान का फल ब्राह्मण को दक्षिणा दिए बिना पूरा नहीं होता, पूजा के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा क्यों दी जाती है? Puja ke baad Brahman ko dakshina kyo dete hai? दक्षिणा के बिना नहीं मिलता यज्ञ का फल, क्या दान दक्षिणा ब्राह्मण को ही देनी चाहिए?
पूजन की महिमा को भारतीय सभ्यता में बड़े ही धार्मिक रूप में स्वीकार किया गया है। दान को मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति का एक माध्यम माना गया है। पूजन के बाद दक्षिणा की देना हमारे धर्म में आवश्यक माना गया है।। दान के विषय में शास्त्र कहते हैं कि सद्पात्र को दिया गया दान ही फलदायी होता है।
प्राचीन काल में ब्राह्मण को ही दान का सद्पात्र माना जाता था क्योंकि ब्राह्मण संपूर्ण समाज को शिक्षित करता था तथा धर्ममय आचरण करता था। ऐसी स्थिति में उनके जीवनव्यापन का भार समाज के ऊपर हुआ करता था।
सद्पात्र को दान के रूप में कुछ प्रदान कर समाज स्वयं को सम्मानित हुआ मानता था।घर में किसी भी तरह के पूजन के बाद यदि आपके समर्पण का आदर करते हुए किसी ने आपके द्वारा दिया गया दान स्वीकार कर लिया जाए तो आपको उसे धन्यवाद तो देना ही चाहिए।
पूजन के बाद दी जाने वाली दक्षिणा, दान की स्वीकृति का धन्यवाद है। इसीलिए पूजन के बाद दी जाने वाली दक्षिणा का विशेष महत्व बताया गया है। इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है कि दान देने वाले व्यक्ति की इच्छाओं का दान लेने वाले व्यक्ति ने आदर किया है। इसीलिए वह धन्यवाद और कृतज्ञता ज्ञापित करने का पात्र भी है।
Thanks for reading...
Tags: दक्षिणा का महत्व, पूजा पाठ या हवन के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा देने का प्रावधान, अनुष्ठान का फल ब्राह्मण को दक्षिणा दिए बिना पूरा नहीं होता, पूजा के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा क्यों दी जाती है? Puja ke baad Brahman ko dakshina kyo dete hai? दक्षिणा के बिना नहीं मिलता यज्ञ का फल, क्या दान दक्षिणा ब्राह्मण को ही देनी चाहिए?
पूजन की महिमा को भारतीय सभ्यता में बड़े ही धार्मिक रूप में स्वीकार किया गया है। दान को मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति का एक माध्यम माना गया है। पूजन के बाद दक्षिणा की देना हमारे धर्म में आवश्यक माना गया है।। दान के विषय में शास्त्र कहते हैं कि सद्पात्र को दिया गया दान ही फलदायी होता है।

प्राचीन काल में ब्राह्मण को ही दान का सद्पात्र माना जाता था क्योंकि ब्राह्मण संपूर्ण समाज को शिक्षित करता था तथा धर्ममय आचरण करता था। ऐसी स्थिति में उनके जीवनव्यापन का भार समाज के ऊपर हुआ करता था।
सद्पात्र को दान के रूप में कुछ प्रदान कर समाज स्वयं को सम्मानित हुआ मानता था।घर में किसी भी तरह के पूजन के बाद यदि आपके समर्पण का आदर करते हुए किसी ने आपके द्वारा दिया गया दान स्वीकार कर लिया जाए तो आपको उसे धन्यवाद तो देना ही चाहिए।
पूजन के बाद दी जाने वाली दक्षिणा, दान की स्वीकृति का धन्यवाद है। इसीलिए पूजन के बाद दी जाने वाली दक्षिणा का विशेष महत्व बताया गया है। इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है कि दान देने वाले व्यक्ति की इच्छाओं का दान लेने वाले व्यक्ति ने आदर किया है। इसीलिए वह धन्यवाद और कृतज्ञता ज्ञापित करने का पात्र भी है।
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