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आखिर बहू लक्ष्मी का अवतार जो है - बहू रानी हिंदी कहानी - Hindi Kahani or Story Collection
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सावित्री रोज़ का सौदा लेने बाजार गयी तो सदानंद को परेशान खड़ा देखा , सब्जी वाले के पास। उसको देखते ही वो बोला, " भाभी जी समझ नहीं आ रहा कौन से आलू लूं, यहां तीन तरह के रखें हैं ? गलत चलें गये तो राधा रानी का मूड़ ओफ हो जाएगा।"
सदानंद अपनी बीवी से बहुत डरता था लेकिन और मर्दों की तरह छुपाता नहीं था। मुहल्ले की औरतें मिसाल देती थी कि पति हो तो सद्दू जैसा वरना बेकार।सबको शक था रात को बीवी के पैर भी दबाता होगा , आदमियों को लगता सद्दू मर्दों के नाम पर कलंक है लेकिन सावित्री जब भी देखती सदानंद को तो सोचती काश हमारी विम्मो के लिए सद्दू छाप कोई लड़का मिल जाए ,छोरी की जिंदगी बन जाएंगी।
विमला ज़रा धाकड़ किस्म की लड़की थी। तिवारी जी ने लड़के की चाहत में चार चार लड़कियों की फौज खड़ी कर दी लेकिन लड़का भाग्य में नहीं था। सबसे बड़ी लड़की विम्मो को ही बेटा बेटा कहकर कुछ ज्यादा ही छूट दे दी।उसको या उसकी बहनों को कोई छेड़ दें तो उसपर हाथ साफ करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।दो चार गालियां उसकी जुबान की नोंक पर धरी रहती थी। आसपास कुछ ग़लत होता तो उसे ठीक करने का ठेका भी उसने अपने माथे ओढ़ रखा था | मुहल्ले वालों को तो विम्मो से जन्मों की दुश्मनी थी वो तो तिवारी जी के लिहाज में मुंह पर कुछ नहीं बोलते थे।
लेकिन एक डेढ़ साल से जहां भी उसके रिश्ते की बात चलती,लड़के वालों से विम्मो के गुणों का ऐसा बखान करते कि कोई पलटकर झांकता भी नहीं। वैसे लड़की सुंदर थी, लड़कियां चारों ही सुन्दर थी , सावित्री पर थी अगर तिवारी जी की शक्ल ले लेती तो एक और चिंता का विषय सावित्री के सिर पर सवार हो जाता। बनने ठनने का भी शौक था, ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर रही थी एक साल से,बीए करने के बाद। रसोई के काम में थोड़ी कच्ची थी।
ऊपर वाला फुर्सत में बैठा था उस दिन, अगले दिन ही सद्दू छाप छोरा सावित्री के घर पधार गया। पहले तो सावित्री का ध्यान नहीं गया लेकिन जब छोरे को आंखें फाड़े मुंह बाए विम्मो को निहारते देखा तो सावित्री के दिमाग़ की घंटी बज गई।' है प्रभू कल ही अर्जी डाली और आज ही डिलीवरी भी कर दी।' प्रभू की इस माया पर आंखों में आसूं आ गए ।
छोरा , तिवारी जी के दोस्त शर्मा जी का बेटा बन्सी था। तिवारी जी नौकरी के कारण शहर आ गए थे और शर्मा जी गांव ही रह गए थे। गांव तो नाम का था शहर से अधिक सुविधा उपलब्ध थी। लोगों ने कारखाने लगा लिए थे अच्छा पैसा कमा रहे थे। एक से एक कोठी बनाली थी लोगों ने, गाड़ी पैरों के नीचे रहती, बात बात पर शहर आ जाते। बन्सी बाप दादा के जमाने से चली आ रही दुकान पर बैठता है, औरतों से सम्बंधित सामग्री बिकती है दुकान पर। पहले शर्मा जी स्वयं आतें थे शहर दुकान के लिए सामान खरीदने,तब तिवारी जी के यहां ही रुकते थे। साथ में उनकी पत्नी पार्वती भी आती थी जिससे सावित्री की ज़रा कम ही बनती थी। पांच छः साल पहले शर्मा जी का देहांत हो गया था उसके बाद आना-जाना नहीं रहा।बस फोन या चिट्ठी पत्री से हाल चाल जान लेते थे। छोरा देखने में बुरा नहीं था और बहुत सीधा साधा लग रहा था।बस तिवारी जी के भेजें में यह बात घुसानी टेढ़ी खीर थी।
तिवारी जी को वाकई यह रिश्ता अटपटा लगा। शहर की पढ़ी-लिखी लड़की को गांव में ब्याह ना ठीक नहीं लग रहा था। फिर लड़का बहुत भोला और कुछ कम पढ़ा-लिखा, जोड़ी पता नहीं सही रहेगी या नहीं। उनका ज़मीर भी आड़े आ रहा था, दोस्त की आत्मा पर क्या बीतेगी अगर विम्मो और बन्सी में नहीं पटी ,विम्मो ने वहां सब की नाक में दम कर दिया तो। लेकिन सावित्री के आगे एक न चली। बात टालने के लिए कह दिया अच्छा जब कल जाने लगेगा तब पूछ लेंगे। सावित्री ने विम्मो से इस बारे में बात की तो उसने सीधे इन्कार कर दिया " बारहवीं पास भी नहीं है हम ऐसे भोन्दू लड़के से ब्याह कतई नहीं करेंगे।
बस सावित्री के नथुने फूल गए, " अरे ! कैसे ब्याह नहीं करेगी ,अबू कान के निच्चे ऐसे बजावेंगे के तुम्हार फरिस्ते भी यह ब्याह करेंगे। बाप मर गया था इसलिए बारहवीं नहीं कर सका दुकान पर जो बैठना था।" मां के तेवर देख वह इतना तो समझ गई अब तो यह ब्याह होकर रहेगा। फिर लड़का जिस तरह से उसे देख रहा था पेट में कुछ गुदगुदी का एहसास उसे हुआ था। पहली बार ऐसा अनुभव हुआ था।
अगले दिन जब बन्सी अपना बाजार का काम करके लौटा तो सावित्री ने सात बजे ही उसका खाना परोस दिया।आठ बजे की बस पकड़ेगा तो दस साढ़े दस तक अपने घर पहुंच पाएगा। किसी तरह धकेल कर तिवारी जी को उसके आगे बिठा दिया।कई तरह के पकवान बनाए थे खाने में,सब पर ' मेड बाय विम्मो 'का टैग लगाया था ,भले ही विम्मो ने एक पापड़ भी नहीं भूना था। तिवारी जी थोड़ा झिझकते हुए बोलें ," बेटा तुमने विम्मो को तो दे ख ही लिया है अगर तुम्हें पसंद हो तो तुम दोनों के ब्याह की बात चलावे।" बन्सी को तो कानों पर विश्वास नहीं हुआ, एक तो इतना अच्छा खाना दूसरे इतनी अच्छी बात ,वह तो बावला सा हो गया।चाह तो वह भी यही रहा था बस हिम्मत नहीं हो रही थी। आवाज को नियंत्रित करते हुए बोला," चाचाजी आप तो पिता समान है जो निर्णय लेंगे ठीक ही रहेगा।" छोरे ने बाप समान बताकर धर्म सन्कट में डाल दिया । सावित्री की तरफ देखा तो उसकी भृकुटी तनी हुई थी, दोस्त से तो पता नहीं कितने साल बाद पाला पड़े , सावित्री ने तो आधे घंटे बाद जीना हराम कर देना है।छोरी गई तो बिल्कुल मां पर है।
"ठीक है" निर्णायक स्वर में तिवारी जी बोले," बेटा तुम पार्वती भाभी से बात कर लेंना,हम दो तीन दिन में आकर रिश्ता पक्का कर जाएंगे।" तिवारी जी को एक और चिंता सता रही थी, पार्वती भाभी भी कम नहीं है उनसे विम्मो की नहीं जमीं तो बहुत मुश्किल हो जाएगी।
लेकिन सावित्री निश्चित थी विम्मो शर्माइन को तो सम्भाल ही लेगी। वैसे तो उसकी नाक में दम हो तो अच्छा ही है।जब आखिरी बार आई थी तो कितना इतरा रही थी।" हमने तो एक ही जना वह भी छोरा , सावित्री तू तो चार चार बच्चे जन कर भी भाई साहब को एक छोरे का मुंह न दिखा पाई।"
इधर बन्सी का हाल बेहाल था। तिवारी जोड़े के पैर अवश्य छू रहा था लेकिन नजरें विम्मो को ढूंढने में लगी थी। दरवाजे की ओट में खड़ी विम्मो को देखकर सारे शरीर में झनझनाहट सी हो गई ।न जाने कितने फिल्मी गाने और बारिश में भीगती हिरोइनें आन्चल हिलाती हुई मन की आंखों के सामने से गुजर गईं।
घर पहुंच कर मां को शुभ समाचार सुनाया तो मां ने माथा पीट लिया | तुरंत शर्मा जी की बड़ी सी तस्वीर के आगे बैठ गई शिकायत लेकर , " देखा तुम्हार दोस्त कितना निकम्मा निकला।दो दिन के लिए गऊ से छोरे को क्या भेजा अपनी फूलन देवी के लिए फान्स लिया। ऊपर बैठ कर भी तुमने कुछ नहीं किया , लगें होंगे अप्सराओं को कच्छिया बेचने में।हे भगवान हमारे भोले भाले छोरे की तो जिन्दगी बर्बाद हो गई।"
पार्वती ने सोचा छोरे को ही समझाने की कोशिश करूं।पर छोरा तो न जाने किस दुनिया में था हां हूं करता रहा पर सुन कुछ नहीं रहा था।या तो जवानी की आग में झुलस रहा था या फिर तिवारिन ने जादू टोना कर दिया छोरे पर।
पार्वती की एक न चली,एक महीने बाद गाजे-बाजे के साथ विम्मो की डोली घर के आंगन में पधार गई। उसके बीस दिन बाद से खटपट भी शुरू हो गई । जैसे ही पार्वती को पता चला विम्मो रसोई के मामले में कच्ची है उसने ताने मारने शुरू कर दिये । चार-पांच दिन तो विम्मो ने सहन कर लिया , सास को भी उसका हक मिलना चाहिए लेकिन छटे दिन करछी ज़ोर से ज़मीन पर फ़ेंकी और तन कर खड़ी हो गई । " देख माई , हम तुमको पहले ही बता दिये थे कि रसोई का काम हमें कम आता है , हम पूरी कोशिश कर रहे हैं सीखने की और सीख भी लेंगे । लेकिन अब तुमने एक भी ताना मारा तो हम रसोई में आएंगे ही नहीं, करलो तुम क्या करोगी । अगर तुम फिर भी हम से फालतू बोली तो हम दरोगा के धौरे रपट लिखा देंगे ।" कहकर विम्मो तो तनतनाती हुई अपने कमरे में चली गई लेकिन पार्वती की सिट्टी-पिट्टी गुम।
भागी शर्मा जी की तस्वीर के पास " देखा तुम्हार छोरे को , बुढ़ापे में क्या क्या दिखाएग,डायन लाकर बैठा दी सर पर।" बहुत देर तक बिसुरती रही लेकिन शर्मा जी पहले कब कुछ बोलते थे जो आज बोलेंगे, अब तो बहाना था न बोलने का। पार्वती रोधोकर समझ गई कि आगे जिंदगी बितानी है तो मुंह पर ताला लगाकर रहना होगा , बोलने का उसका हक छिन गया है।
विम्मो को अभी भी चैन नहीं था, चार रोटी सुबह शाम बना कर और झाड़ू पोंछा लगाकर उसकी अन्दर की उर्जा शान्त नहीं हो रही थी। खाली वह बैठ नहीं सकती थी। एक पिंजरे में कैद शेर की तरह वह बैचेन सी इधर उधर घर में भटकती रहती।
दो तीन बार बन्सी की दुकान में तांका झांकी की तो बन्सी ने बड़े प्यार से यह कहकर भगा दिया," यहां औरतें दुकान पर काम नहीं करती तुम बस घर सम्भालो।" विम्मो को लगा यह कौन सी किताब में लिखा है कि घर का काम औरतें ही करेंगी, और बाहर का मर्द। उसके हिसाब से जिस को जो काम अच्छा लगे,जिस काम की समझ अधिक हो उसे वह काम करना चहिए। तभी गृहस्थी अच्छी चलती है इसमें लड़का लड़की वाली बात कहां से आ गई। उसे गुस्सा भी आया लेकिन अधिक पन्गे लेना उसे उचित नहीं लगा। कहीं बन्सी ने घर से बाहर निकल दिया तो कहां जाएगी। मां ने साफ कहकर भेजा था " बिना बात घर वापसी आयी तो पैर तोड़कर हाथ पर धर देंगे। तीन लड़कियों की और जिम्मेदारी है हम पर ।"
एक महीना उसने और सब्र किया लेकिन अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने मन बना लिया था कि अब बन्सी से बात करनी पड़ेगी लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था। जैसे ही बन्सी ने नीचे उतरने के लिए पहली सीढ़ी पर पैर रखा वह ऐसा फिसला की धम्म से अपने आप को आखिरी सीढ़ी पर बैठा पाया। दो चार हड्डियां तो चटकनी ही थी, उसे तीन महीने तक पलंग न छोड़ने की ताकीद दी गई |
अब बन्सी का चिन्ता के कारण बुरा हाल हो गया। तीन महीने में ग्राहकी तो टूटेगी ही घर का खर्चा कैसे चलेगा। आखिर मजबूरन उसे विमला से कहना पड़ा कि वह दुकान सम्भाल ले लेकिन बिना उससे पूछे कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी दुकान में।
विमला ने अगले दिन दुकान खोली तो उसने निश्चय किया कि उसके पास तीन महीने है इस दुकान की काया पलट करने के लिए। जहां पांच दिन दुकान बंद थी वहां दो तीन दिन और दुकान बंद करने से क्या फर्क पड़ेगा।
दुकान में समान बेतरतीब से लगा हुआ था। उसने सब समान निकलवाया, जबरदस्त सफाई करवाई, शीशे चमकाएं कि बाहर से नज़र आए दुकान में क्या क्या रखा है। बढई को बुलाया कुछ लकड़ी का काम कराया जिससे समान क़रीने से रखा जा सके। बहुत से सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री एक्सपायर हो गई थी उन्हें फेंक दिया जो होने वाली थी उनकी सेल लगवा दी। जो सामग्री अधिक चलन में थी उनका आर्डर दे दिया। विम्मो को लगा दुकान बहुत बड़ी है क्यों न दुकान आधी करके आधे हिस्से में ब्यूटी पार्लर खोल ले। तीन महीने बाद बन्सी दुकान सम्भाल लेगा वह पार्लर चलाती रहेगी। और अगर बन्सी न माना तो , तब की तब देखी जाएगी।
जब लड़कियां और महिलाएं उससे प्रसाधन सामग्री खरीदने आती और वह उन्हें उनके चेहरे के हिसाब से राय देती की उन्हें कौन सी चीज कैसे इस्तेमाल करनी है तो प्रभाव देखकर वे दन्ग रह जाती। विमला का पार्लर जोरों से चलने लगा। इधर पार्वती खुश थी पहले जैसे दिन लौट आए थे।सारा दिन बहू सिर पर नहीं मन्डराती थी और वह छोरे से मन की बात बिना हिचक करती,बहू की बुराई भी करती तो छोरा बेचारा पड़ा पड़ा सुनता रहता।
दो महीनों में ही बन्सी को अहसास होने लगा कि दुकान की कमाई में काफी बढ़ोतरी हो रही है। जब वह ठीक होकर दुकान गया तो दन्ग रह गया विमला ने दुकान की धीरे धीरे साज सज्जा और लाईटें भी बदल दी थी। उसे वैसे तो परिवर्तन बहुत अच्छा लगा लेकिन विम्मो का पार्लर चलाना कुछ कम ठीक लग रहा था। उधर पार्वती के कानों में इधर-उधर से औरतों की बातें पहुंचीं," वाह, क्या होशियार बहू है ,हाथ में हुनर है। कैसी भी लड़की हो मिनटों में हिरोइन बना दे।" और फिर घर में आती माया किसे बुरी लगे ,बस छोरे की एक न सुनी , इस बार बहू का साथ दिया।
आखिर बहू लक्ष्मी का अवतार जो है।
लेखक - अज्ञात
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सावित्री रोज़ का सौदा लेने बाजार गयी तो सदानंद को परेशान खड़ा देखा , सब्जी वाले के पास। उसको देखते ही वो बोला, " भाभी जी समझ नहीं आ रहा कौन से आलू लूं, यहां तीन तरह के रखें हैं ? गलत चलें गये तो राधा रानी का मूड़ ओफ हो जाएगा।"
सदानंद अपनी बीवी से बहुत डरता था लेकिन और मर्दों की तरह छुपाता नहीं था। मुहल्ले की औरतें मिसाल देती थी कि पति हो तो सद्दू जैसा वरना बेकार।सबको शक था रात को बीवी के पैर भी दबाता होगा , आदमियों को लगता सद्दू मर्दों के नाम पर कलंक है लेकिन सावित्री जब भी देखती सदानंद को तो सोचती काश हमारी विम्मो के लिए सद्दू छाप कोई लड़का मिल जाए ,छोरी की जिंदगी बन जाएंगी।
विमला ज़रा धाकड़ किस्म की लड़की थी। तिवारी जी ने लड़के की चाहत में चार चार लड़कियों की फौज खड़ी कर दी लेकिन लड़का भाग्य में नहीं था। सबसे बड़ी लड़की विम्मो को ही बेटा बेटा कहकर कुछ ज्यादा ही छूट दे दी।उसको या उसकी बहनों को कोई छेड़ दें तो उसपर हाथ साफ करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।दो चार गालियां उसकी जुबान की नोंक पर धरी रहती थी। आसपास कुछ ग़लत होता तो उसे ठीक करने का ठेका भी उसने अपने माथे ओढ़ रखा था | मुहल्ले वालों को तो विम्मो से जन्मों की दुश्मनी थी वो तो तिवारी जी के लिहाज में मुंह पर कुछ नहीं बोलते थे।
लेकिन एक डेढ़ साल से जहां भी उसके रिश्ते की बात चलती,लड़के वालों से विम्मो के गुणों का ऐसा बखान करते कि कोई पलटकर झांकता भी नहीं। वैसे लड़की सुंदर थी, लड़कियां चारों ही सुन्दर थी , सावित्री पर थी अगर तिवारी जी की शक्ल ले लेती तो एक और चिंता का विषय सावित्री के सिर पर सवार हो जाता। बनने ठनने का भी शौक था, ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर रही थी एक साल से,बीए करने के बाद। रसोई के काम में थोड़ी कच्ची थी।
ऊपर वाला फुर्सत में बैठा था उस दिन, अगले दिन ही सद्दू छाप छोरा सावित्री के घर पधार गया। पहले तो सावित्री का ध्यान नहीं गया लेकिन जब छोरे को आंखें फाड़े मुंह बाए विम्मो को निहारते देखा तो सावित्री के दिमाग़ की घंटी बज गई।' है प्रभू कल ही अर्जी डाली और आज ही डिलीवरी भी कर दी।' प्रभू की इस माया पर आंखों में आसूं आ गए ।
छोरा , तिवारी जी के दोस्त शर्मा जी का बेटा बन्सी था। तिवारी जी नौकरी के कारण शहर आ गए थे और शर्मा जी गांव ही रह गए थे। गांव तो नाम का था शहर से अधिक सुविधा उपलब्ध थी। लोगों ने कारखाने लगा लिए थे अच्छा पैसा कमा रहे थे। एक से एक कोठी बनाली थी लोगों ने, गाड़ी पैरों के नीचे रहती, बात बात पर शहर आ जाते। बन्सी बाप दादा के जमाने से चली आ रही दुकान पर बैठता है, औरतों से सम्बंधित सामग्री बिकती है दुकान पर। पहले शर्मा जी स्वयं आतें थे शहर दुकान के लिए सामान खरीदने,तब तिवारी जी के यहां ही रुकते थे। साथ में उनकी पत्नी पार्वती भी आती थी जिससे सावित्री की ज़रा कम ही बनती थी। पांच छः साल पहले शर्मा जी का देहांत हो गया था उसके बाद आना-जाना नहीं रहा।बस फोन या चिट्ठी पत्री से हाल चाल जान लेते थे। छोरा देखने में बुरा नहीं था और बहुत सीधा साधा लग रहा था।बस तिवारी जी के भेजें में यह बात घुसानी टेढ़ी खीर थी।
तिवारी जी को वाकई यह रिश्ता अटपटा लगा। शहर की पढ़ी-लिखी लड़की को गांव में ब्याह ना ठीक नहीं लग रहा था। फिर लड़का बहुत भोला और कुछ कम पढ़ा-लिखा, जोड़ी पता नहीं सही रहेगी या नहीं। उनका ज़मीर भी आड़े आ रहा था, दोस्त की आत्मा पर क्या बीतेगी अगर विम्मो और बन्सी में नहीं पटी ,विम्मो ने वहां सब की नाक में दम कर दिया तो। लेकिन सावित्री के आगे एक न चली। बात टालने के लिए कह दिया अच्छा जब कल जाने लगेगा तब पूछ लेंगे। सावित्री ने विम्मो से इस बारे में बात की तो उसने सीधे इन्कार कर दिया " बारहवीं पास भी नहीं है हम ऐसे भोन्दू लड़के से ब्याह कतई नहीं करेंगे।
बस सावित्री के नथुने फूल गए, " अरे ! कैसे ब्याह नहीं करेगी ,अबू कान के निच्चे ऐसे बजावेंगे के तुम्हार फरिस्ते भी यह ब्याह करेंगे। बाप मर गया था इसलिए बारहवीं नहीं कर सका दुकान पर जो बैठना था।" मां के तेवर देख वह इतना तो समझ गई अब तो यह ब्याह होकर रहेगा। फिर लड़का जिस तरह से उसे देख रहा था पेट में कुछ गुदगुदी का एहसास उसे हुआ था। पहली बार ऐसा अनुभव हुआ था।
अगले दिन जब बन्सी अपना बाजार का काम करके लौटा तो सावित्री ने सात बजे ही उसका खाना परोस दिया।आठ बजे की बस पकड़ेगा तो दस साढ़े दस तक अपने घर पहुंच पाएगा। किसी तरह धकेल कर तिवारी जी को उसके आगे बिठा दिया।कई तरह के पकवान बनाए थे खाने में,सब पर ' मेड बाय विम्मो 'का टैग लगाया था ,भले ही विम्मो ने एक पापड़ भी नहीं भूना था। तिवारी जी थोड़ा झिझकते हुए बोलें ," बेटा तुमने विम्मो को तो दे ख ही लिया है अगर तुम्हें पसंद हो तो तुम दोनों के ब्याह की बात चलावे।" बन्सी को तो कानों पर विश्वास नहीं हुआ, एक तो इतना अच्छा खाना दूसरे इतनी अच्छी बात ,वह तो बावला सा हो गया।चाह तो वह भी यही रहा था बस हिम्मत नहीं हो रही थी। आवाज को नियंत्रित करते हुए बोला," चाचाजी आप तो पिता समान है जो निर्णय लेंगे ठीक ही रहेगा।" छोरे ने बाप समान बताकर धर्म सन्कट में डाल दिया । सावित्री की तरफ देखा तो उसकी भृकुटी तनी हुई थी, दोस्त से तो पता नहीं कितने साल बाद पाला पड़े , सावित्री ने तो आधे घंटे बाद जीना हराम कर देना है।छोरी गई तो बिल्कुल मां पर है।
"ठीक है" निर्णायक स्वर में तिवारी जी बोले," बेटा तुम पार्वती भाभी से बात कर लेंना,हम दो तीन दिन में आकर रिश्ता पक्का कर जाएंगे।" तिवारी जी को एक और चिंता सता रही थी, पार्वती भाभी भी कम नहीं है उनसे विम्मो की नहीं जमीं तो बहुत मुश्किल हो जाएगी।
लेकिन सावित्री निश्चित थी विम्मो शर्माइन को तो सम्भाल ही लेगी। वैसे तो उसकी नाक में दम हो तो अच्छा ही है।जब आखिरी बार आई थी तो कितना इतरा रही थी।" हमने तो एक ही जना वह भी छोरा , सावित्री तू तो चार चार बच्चे जन कर भी भाई साहब को एक छोरे का मुंह न दिखा पाई।"
इधर बन्सी का हाल बेहाल था। तिवारी जोड़े के पैर अवश्य छू रहा था लेकिन नजरें विम्मो को ढूंढने में लगी थी। दरवाजे की ओट में खड़ी विम्मो को देखकर सारे शरीर में झनझनाहट सी हो गई ।न जाने कितने फिल्मी गाने और बारिश में भीगती हिरोइनें आन्चल हिलाती हुई मन की आंखों के सामने से गुजर गईं।
घर पहुंच कर मां को शुभ समाचार सुनाया तो मां ने माथा पीट लिया | तुरंत शर्मा जी की बड़ी सी तस्वीर के आगे बैठ गई शिकायत लेकर , " देखा तुम्हार दोस्त कितना निकम्मा निकला।दो दिन के लिए गऊ से छोरे को क्या भेजा अपनी फूलन देवी के लिए फान्स लिया। ऊपर बैठ कर भी तुमने कुछ नहीं किया , लगें होंगे अप्सराओं को कच्छिया बेचने में।हे भगवान हमारे भोले भाले छोरे की तो जिन्दगी बर्बाद हो गई।"
पार्वती ने सोचा छोरे को ही समझाने की कोशिश करूं।पर छोरा तो न जाने किस दुनिया में था हां हूं करता रहा पर सुन कुछ नहीं रहा था।या तो जवानी की आग में झुलस रहा था या फिर तिवारिन ने जादू टोना कर दिया छोरे पर।
पार्वती की एक न चली,एक महीने बाद गाजे-बाजे के साथ विम्मो की डोली घर के आंगन में पधार गई। उसके बीस दिन बाद से खटपट भी शुरू हो गई । जैसे ही पार्वती को पता चला विम्मो रसोई के मामले में कच्ची है उसने ताने मारने शुरू कर दिये । चार-पांच दिन तो विम्मो ने सहन कर लिया , सास को भी उसका हक मिलना चाहिए लेकिन छटे दिन करछी ज़ोर से ज़मीन पर फ़ेंकी और तन कर खड़ी हो गई । " देख माई , हम तुमको पहले ही बता दिये थे कि रसोई का काम हमें कम आता है , हम पूरी कोशिश कर रहे हैं सीखने की और सीख भी लेंगे । लेकिन अब तुमने एक भी ताना मारा तो हम रसोई में आएंगे ही नहीं, करलो तुम क्या करोगी । अगर तुम फिर भी हम से फालतू बोली तो हम दरोगा के धौरे रपट लिखा देंगे ।" कहकर विम्मो तो तनतनाती हुई अपने कमरे में चली गई लेकिन पार्वती की सिट्टी-पिट्टी गुम।
भागी शर्मा जी की तस्वीर के पास " देखा तुम्हार छोरे को , बुढ़ापे में क्या क्या दिखाएग,डायन लाकर बैठा दी सर पर।" बहुत देर तक बिसुरती रही लेकिन शर्मा जी पहले कब कुछ बोलते थे जो आज बोलेंगे, अब तो बहाना था न बोलने का। पार्वती रोधोकर समझ गई कि आगे जिंदगी बितानी है तो मुंह पर ताला लगाकर रहना होगा , बोलने का उसका हक छिन गया है।
विम्मो को अभी भी चैन नहीं था, चार रोटी सुबह शाम बना कर और झाड़ू पोंछा लगाकर उसकी अन्दर की उर्जा शान्त नहीं हो रही थी। खाली वह बैठ नहीं सकती थी। एक पिंजरे में कैद शेर की तरह वह बैचेन सी इधर उधर घर में भटकती रहती।
दो तीन बार बन्सी की दुकान में तांका झांकी की तो बन्सी ने बड़े प्यार से यह कहकर भगा दिया," यहां औरतें दुकान पर काम नहीं करती तुम बस घर सम्भालो।" विम्मो को लगा यह कौन सी किताब में लिखा है कि घर का काम औरतें ही करेंगी, और बाहर का मर्द। उसके हिसाब से जिस को जो काम अच्छा लगे,जिस काम की समझ अधिक हो उसे वह काम करना चहिए। तभी गृहस्थी अच्छी चलती है इसमें लड़का लड़की वाली बात कहां से आ गई। उसे गुस्सा भी आया लेकिन अधिक पन्गे लेना उसे उचित नहीं लगा। कहीं बन्सी ने घर से बाहर निकल दिया तो कहां जाएगी। मां ने साफ कहकर भेजा था " बिना बात घर वापसी आयी तो पैर तोड़कर हाथ पर धर देंगे। तीन लड़कियों की और जिम्मेदारी है हम पर ।"
एक महीना उसने और सब्र किया लेकिन अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने मन बना लिया था कि अब बन्सी से बात करनी पड़ेगी लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था। जैसे ही बन्सी ने नीचे उतरने के लिए पहली सीढ़ी पर पैर रखा वह ऐसा फिसला की धम्म से अपने आप को आखिरी सीढ़ी पर बैठा पाया। दो चार हड्डियां तो चटकनी ही थी, उसे तीन महीने तक पलंग न छोड़ने की ताकीद दी गई |
अब बन्सी का चिन्ता के कारण बुरा हाल हो गया। तीन महीने में ग्राहकी तो टूटेगी ही घर का खर्चा कैसे चलेगा। आखिर मजबूरन उसे विमला से कहना पड़ा कि वह दुकान सम्भाल ले लेकिन बिना उससे पूछे कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी दुकान में।
विमला ने अगले दिन दुकान खोली तो उसने निश्चय किया कि उसके पास तीन महीने है इस दुकान की काया पलट करने के लिए। जहां पांच दिन दुकान बंद थी वहां दो तीन दिन और दुकान बंद करने से क्या फर्क पड़ेगा।
दुकान में समान बेतरतीब से लगा हुआ था। उसने सब समान निकलवाया, जबरदस्त सफाई करवाई, शीशे चमकाएं कि बाहर से नज़र आए दुकान में क्या क्या रखा है। बढई को बुलाया कुछ लकड़ी का काम कराया जिससे समान क़रीने से रखा जा सके। बहुत से सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री एक्सपायर हो गई थी उन्हें फेंक दिया जो होने वाली थी उनकी सेल लगवा दी। जो सामग्री अधिक चलन में थी उनका आर्डर दे दिया। विम्मो को लगा दुकान बहुत बड़ी है क्यों न दुकान आधी करके आधे हिस्से में ब्यूटी पार्लर खोल ले। तीन महीने बाद बन्सी दुकान सम्भाल लेगा वह पार्लर चलाती रहेगी। और अगर बन्सी न माना तो , तब की तब देखी जाएगी।
जब लड़कियां और महिलाएं उससे प्रसाधन सामग्री खरीदने आती और वह उन्हें उनके चेहरे के हिसाब से राय देती की उन्हें कौन सी चीज कैसे इस्तेमाल करनी है तो प्रभाव देखकर वे दन्ग रह जाती। विमला का पार्लर जोरों से चलने लगा। इधर पार्वती खुश थी पहले जैसे दिन लौट आए थे।सारा दिन बहू सिर पर नहीं मन्डराती थी और वह छोरे से मन की बात बिना हिचक करती,बहू की बुराई भी करती तो छोरा बेचारा पड़ा पड़ा सुनता रहता।
दो महीनों में ही बन्सी को अहसास होने लगा कि दुकान की कमाई में काफी बढ़ोतरी हो रही है। जब वह ठीक होकर दुकान गया तो दन्ग रह गया विमला ने दुकान की धीरे धीरे साज सज्जा और लाईटें भी बदल दी थी। उसे वैसे तो परिवर्तन बहुत अच्छा लगा लेकिन विम्मो का पार्लर चलाना कुछ कम ठीक लग रहा था। उधर पार्वती के कानों में इधर-उधर से औरतों की बातें पहुंचीं," वाह, क्या होशियार बहू है ,हाथ में हुनर है। कैसी भी लड़की हो मिनटों में हिरोइन बना दे।" और फिर घर में आती माया किसे बुरी लगे ,बस छोरे की एक न सुनी , इस बार बहू का साथ दिया।
आखिर बहू लक्ष्मी का अवतार जो है।
लेखक - अज्ञात
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