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Hindi kahaniyan full episode - मैं तो हमेशा आपकी नन्ही ही रहूंगी, आज आपका प्यार ही तो मेरी ताकत है
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शनिवार का दिन था युगांतर छुट्टी का आनंद लेते हुए घर के बाहर बरामदे में बैठा, अपने लैपटॉप में व्यस्त था। तभी फोन की घंटी बजने लगी, देखा शीना का फ़ोन हैं, शीना उसकी करीबी दोस्त हैं बचपन से जानता है लेकिन फोन वोन नहीं करते थे एक-दूसरे को।
युगांतर :" हेलो,बोल क्या परेशानी है ?"
शीना :" हां युग मेरी गाड़ी वो जो राम मंदिर है न उसके पास पेड़ से टकरा गई है, तू मुझे लेने आजा।"
युग घबरा गया, तुरंत बोला :" क्या ! क्या हुआ ,सब ठीक तो है न ?"
शीना संयत स्वर में बोली :" घबरा मत मैं बिल्कुल ठीक हूं,बस गाड़ी ठुक गई है।"
युग :" अबे, तेरे लिए कौन घबरा रहा है, मैं तो गाड़ी की चिंता कर रहा हूं उसे ज्यादा चोट तो नहीं आईं।"
शीना :" अब तू हिलेगा भी , वहीं बैठा बैठा नाटक करता रहेगा।"
युग अब तक अंदर से चाबी लेकर गाड़ी तक पहुंच चुका था, गाड़ी में बैठते हुए बोला," तू ध्यान रख अपना ,एक तरफ खड़ी हो जा मैं बस बीस मिनट में पहुंच जाऊंगा।"
बोलने को कुछ भी बोल दे , लेकिन युग को शीना की बहुत चिन्ता हो रही थी। उसके पिता और शीना के पिता कालेज के समय से दोस्त थे घर भी पास पास थे इसलिए दोनों परिवारों का एक दूसरे के यहां रोज़ का आना-जाना था। शीना के दो बड़े भाई थे वीरेंद्र और हेमंत,युग और हेमंत हमउम्र थे इसलिए गहरे मित्र थे।
युग को आश्चर्य हुआ कि शीना ने उसको सहायता के लिए बुलाया,वह आजादी पसंद , आत्मनिर्भर लड़की थी , दूसरों से सहायता लेने में कम ही विश्वास रखतीं थी | एक बार जब वह शीना के घर गया था तब उसकी बड़े भाई वीरेंद्र से बहस हो रही थी।वह बारहवीं में थी और उसकी सहेली जन्मदिन की पार्टी किसी फार्म-हाउस में दे रही थी जो काफी दूर था।वीर थोड़ा अड़ियल क़िस्म का बंदा था ,एक बार उसके दिमाग में जो बात घुस जाए उसे निकालना थोड़ा मुश्किल काम था। शीना से पांच छः साल बड़ा था और अपनी बड़े भाई की जिम्मेदारी बहुत गंभीरता से लेता था।
उसकी सुरक्षा को लेकर वह अपने पिता की तरह बहुत सतर्क और कठोर था। छः फुट दो इंच का वीर बहुत लंबा चौड़ा दिखता था , जिसके कारण शीना को छेड़ने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। शायद इस लिए इस तरह के ख़तरों से वह कुछ अनजान थी । लंबे चौड़े तो हेम और युग भी थे लेकिन वीर से दो तीन इंच छोटे। शीना तो बिल्कुल ही उन लोगों के कंधे तक आतीं थी ,दुबली पतली , नाजुक सी इसलिए दोनों भाइयों को लगता वह बहुत कमजोर है और उसका अधिक ध्यान रखतें ।वीर ने साफ मना कर दिया था शीना इस पार्टी में इतनी दूर नहीं जाएगी। शीना बहुत भुनभुना रही थी , पैर पटकते हुए एक बार फिर वीर के सामने खड़ी हो गई।
शीना :" भाई यह आपकी ज्यादती है , मेरी सब सहेलियां जा रही है और आप मुझे फालतू में मना कर रहे हो।"
वीर :" नन्ही तू समझती क्यों नहीं है एक बार मना कर दिया तो कर दिया,तू वहां इतनी दूर जाएगी कुछ हो गया तो क्या करेंगे।"
शीना :" भाई हर समय इस डर से क्या मैं कहीं आऊंगी जाऊंगी नहीं । वहां निशा के पापा मम्मी ने सुरक्षा के सब इंतजाम कर रखे हैं , उन्हें भी तो अपनी बेटी की चिंता है ।"
वीर :" नहीं नन्ही हम कोई रिस्क नहीं ले सकते , हादसा होने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता , हमें पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए ।नन्ही तू परेशान मत हो मैं तुझे कहीं और घुमाने ले जाऊंगा।"
शीना :" भाई रहने दो , और आप मुझे नन्ही मत बुलाया करो , मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं है यह नाम "
घर में सब ने उसे नन्ही कहकर बुलाना बंद कर दिया था लेकिन वीर के मुंह पर अभी भी यही नाम चढ़ा था।
गुस्से से भरी शीना जब वीर के कमरे से बाहर आई तो लाबी में उसकी मां ललिता उसका इंतजार कर रही थी।एक तरफ हेम बैठा पापकार्न खा रहा था,वह इन पचड़ों में कम ही पड़ता था लेकिन युग की जिज्ञासा चरम पर थी अब आगे क्या होगा।
ललिता :" देख शीना गुस्सा मत हो बेटा,हम सब बहुत प्यार करते हैं तुझे इसलिए इतनी चिंता करते हैं तेरी।"
शीना :" माम ऐसा कैसा दमघोंटू प्यार है आप सबका , कुछ भी करने की इजाजत ही नहीं।आप लोग मुझे बिल्कुल स्पेस नहीं देते हैं।जब तक अनुभव नहीं करूंगी तो सीखूंगी कैसे,स्थिती को हेंडल करना कैसे आएगा । मैं जीवन को जीना चाहती हूं , महसूस करना चाहती हूं।"
ललिता :" हम अपने अनुभव से तुझे समझाते हैं किस स्थिति में खतरा हो सकता है, तू उसे मान कर चुपचाप अपने आप को उस स्थिति से दूर रख।हम सब तुझे इतना प्यार करते हैं और तूझे इसकी कोई कद्र नहीं "
शीना को लग रहा था कोई उसकी बात नहीं समझ रहा और वह पत्थर पर सिर मार रहीं हैं।वह झल्ला कर बोली :"नहीं चाहिए मुझे इतना प्यार।"
युग को हंसी आ गई ," लोग प्यार को तरसते हैं और तू प्यार तोल कर बताएगी तुझे कितना चाहिए।"
शीना युग पर बरस पड़ी ," तुझे समझ भी आ रहा है मैं क्या कह रही हूं। रात दिन सुरक्षा के नाम पर इतनी रोक टोक बर्दाश्त करना कितना मुश्किल है तुझे क्या पता। सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन हूं तो सोने के पिंजरे में कैद। कैसा लगेगा तुझे अगर दूर से खूबसूरत पहाड़ दिखा दे और बोले देखो कितना सुन्दर है लेकिन पास मत जाना , चढ़ना मत गिर जाओगे तो।"
शीना से आगे नहीं बोला गया , बेबसी में उसके आंसू आ गए।वह रोते हुए अपने कमरे में चली गई। युग को महसूस हुआ कि उसने मुद्दे की गंभीरता को समझा ही नहीं। स्वयं बिना रोक-टोक का जीवन जीते हुए उसने यह कभी सोचा ही नहीं लड़कियों के लिए असुरक्षित समाज में उनके अपने उन पर कितनी बंदिशें लगाते हैं और इसका उनके मन पर क्या प्रभाव पड़ता है।उसका रोना सुनकर ललिता और हेम उसके पीछे भागे लेकिन तब तक शीना ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था। छोटी होने के कारण इतनी लाडली थी कि किसी से उसका रोना बर्दाश्त नहीं था , दोनों दरवाजा पीट रहे थे और उसे मनाने में लगे थे। उधर शोर सुनकर वीर भी कमरे से बाहर आ गया और तुरंत गाड़ी लेकर कहीं चला गया। दस मिनट बाद जब आया तो उसके हाथ में शीना की मनपसंद आईसक्रीम और चाकलेट थी।तब तक ललिता और हेम दरवाजा खुलवा चुके थे। वीर अपने हाथों से शीना को आइसक्रीम खिलाते हुए बोला :" ठीक है तू तैयार हो जाना छोड़कर मैं आऊंगा और तू फोन रखना अपने पास जब तुम्हे वापस आना हो या कुछ ठीक न लगे मुझे फ़ोन कर देना मैं लेने आ जाऊंगा।"
शाम को युग और हेमंत फुटबॉल खेल रहे थे जब शीना तैयार होकर बाहर निकली गजब की सुंदर लग रही थी और पार्टी में जाने के कारण खुश इतनी थी कि चेहरा दमक रहा था। युग तो देखता ही रह गया , उसे लगता था शीना सुंदर है लेकिन उसने कभी खास ध्यान नहीं दिया था। रात के साढ़े बारह बजे थे, युग ने अपने घर की खिड़की से झांका तो देखा ललिता और हेम घर के बाहर बैचेनी से घूम रहे थे ,अंकल कहीं बाहर गए हुए थे नहीं तो वे भी उनके साथ होते। युग को भी चिंता होने लगी इतनी देर हो गई शीना आईं नहीं क्या अभी तक। वह भी बाहर आ गया तभी वीर की गाड़ी आती दिखाई दी। जैसे ही हेम ने गाड़ी का दरवाजा खोला और शीना को रोते देखा तो उसके और ललिता के हाथ पैर फूल गए।
दूसरी तरफ से जब वीर गाड़ी से उतर कर आया तो वह भी बहुत घबराया हुआ था बोला :" पता नहीं क्या हुआ गाड़ी में बैठे बैठे एकदम से रोने लगी।"
ललिता तो किसी अनहोनी के डर से ऐसी घबरा गई कि स्वयं रोने को आ गई। शीना को पानी पिलाया आराम से बिठाया तब पता चला वह क्यों रो रही थी। वीर ने कहा था वह शीना को पार्टी में छोड़ कर घर वापस आ जायेगा और तीन घंटे बाद लेने जाएंगा। लेकिन शीना के फोन करते ही दस मिनट में वीर को दरवाजे पर देखकर वह समझ गई वीर घर गया ही नहीं। तीन घंटे वह बाहर ठंड में भूखा प्यासा शीना के इंतजार में ही खड़ा रहा। यह समझते ही भावुक शीना बहुत रोई , उसे लगा अगर उसे पता होता वीर बाहर ही खड़ा है तो वह और एक घंटा पहले निकल जाती पार्टी में से। लेकिन वीर ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा :" पगली तू खुश हैं और सुरक्षित भी , मेरे लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है।"
अब शीना के जीवन में दो तरह की समस्याएं मुंह बाए खड़ी रहती एक तरफ उसका मन था जो उड़ना चाहता था,नये नये अनुभव अपनी झोली में समेटना चाहता था दूसरी तरफ घर वालों का निश्छल प्रेम था जो अधिक उड़ने की इजाजत नहीं देता। इधर युग की दिलचस्पी और जिज्ञासा शीना के प्रति बढ़ती जा रही थी , आखिर लड़कियां सारे दिन करती क्या हैं ।कभी रंग-बिरंगी नेलपॉलिश लगाएंगी फिर फोटो खींच कर सहेली को भेजेंगी और न जाने क्यों मिटा देंगी। कभी किसी कोने में बैठी फोन पर धीरे धीरे बात करेंगी और मुंह पर हाथ रख कर हंस हंस कर दोहरी होती रहेगी। वह पूछता इतना क्यों हंस रही है तो वह सिर झटक कर कहती " तू जा यहां से , तेरी समझ में नहीं आएगा।"
वीर तो सारा दिन अपने पिता के साथ काम में व्यस्त रहता और हेम को पढ़ाई तथा मैच खेलने और देखने से फुर्सत नहीं मिलती। युग शीना से दो साल बड़ा था और हेम के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। वैसे तो खेलकूद का उसे भी बहुत शौक था लेकिन अब उसे शीना की क्रियाकलापों पर नजर रखने में अधिक आनंद आता । उसका जन्मदिन आने वाला था, और किसी के तोहफों से उसे इतनी तकलीफ़ नहीं होती जितनी वीर के तोहफे से होती। उसके डैड हर साल पैसे दे देते ,माम पसंद और जरूरत की कोई वस्तु दिलवा देती ,हेम बचपन से चाकलेट देता था अब कुछ सालों से टेडीबियर देने शुरू कर दिये। वीर सरप्राइज के चक्कर में कुछ ऐसा तोहफा देता कि शीना से न इस्तेमाल करते बनता न इधर उधर करते बनता। वह अधिकतर जींस शार्टस और स्कर्ट पहनना पसंद करती थी और वीर को लगा कुछ अलग देना चाहिए । इसलिए पिछली बार वह सलवार कमीज़ लाया ,रंग स्टाइल सब उम्र दराज औरतों के हिसाब से।अब अगर शीना वह पोषक पहनती तो उसकी सहेलियां मुंह पर हाथ रख कर मुंडी नीचे करके खीं खीं करती और अगर नहीं पहनती तो वीर का मुंह उतर जाता। इस बार ऐसी नौबत न आए ,वीर को भी दुख न पहुंचे , उसने एक महीने पहले से ही वीर के सामने अपनी मनपसंद ड्रेस के फोटो छोड़ने शुरू कर दिये । लेकिन जब वीर को कुछ समझ नहीं आया तो एक दिन उसे जबरदस्ती बाजार ले गईं और अपनी पसंद की पोशाक ले कर आई। अब वीर भी खुश जब भी शीना वह ड्रेस पहनती उसका चेहरा खिल जाता और शीना भी बड़े चाव से उसे पहनती।
अब वह अपने मन की करने के लिए ऐसे ही बीच के रास्ते निकालती। कालेज में आ गई थी ,सारी सहेलियों को मिलकर नये नये प्रयोग करने में बड़ा मज़ा आता। वह जब भी अपनी सहेलियों से बात करती अगर युग वहीं होता तो कान लगा कर अवश्य सुनता। ऐसे ही एक दिन उसे पता चला ये सब लड़कियां किसी दिन चुपके से सिगरेट पीने की योजना बना रही है। जिस दिन ललिता की किटी थी वे सब लड़कियां शीना के घर इक्ट्ठी हो गई और खूब धमाल किया।उस दिन युग जल्दी आ गया था शीना पर नजर रखने के लिए ,वह क्या करेगी जानने की उसे बड़ी उत्सुकता थी।वह उसके घर के आसपास घूमता रहा , जोर जोर से संगीत की और लड़कियों के चीखने कीआवाजें आ रही थी । अंदर बहुत मस्ती की जा रही थी ,पिज्जा बर्गर मंगवाए जा रहें थे।मन तो उसका भी कर रहा था अंदर जाकर देखें ये सब कर क्या रही हैं, लेकिन पता था पिट जाएगा बुरी तरह। जब दो तीन घंटे बाद दरवाजा खुला और एक दो करके लड़कियों ने जाना शुरू किया तो वह अंदर घुस गया।
युग :" तू सिगरेट पी रही थी न ?"
शीना कुछ सकपका गई फिर अकड़ कर बोली :" तुझे क्या?"
युग :" तुझे सिगरेट नहीं पीना चाहिए।"
शीना :" मुझे पता है तुने और हेम ने ग्यारहवी में सिगरेट ट्राई की थी और तू अभी भी अंकल से छुप छुप कर पीता है , फिर मुझे क्यों मना कर रहा है।"
युग :" लड़कियों को नहीं पीना चाहिए नुकसान देती है।"
शीना :" बहुत खूब सिगरेट को तो पता है न लड़के के मुंह में लगीं है या लड़की के। वैसे मुझे सिगरेट पीना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा इसलिए मैं आगे से कभी हाथ नहीं लगाउंगी। ऐसी चीज नहीं है जिसके लिए अपनी सेहत ख़राब करूं।"
युग चैन की सांस लेते हुए :" वही तो मैं कह रहा हूं तुझे सिगरेट नहीं पीना चाहिए।"
शीना :" देख मैं अपनी समझ से इस काम को ग़लत समझकर नहीं करूंगी इसलिए नहीं की कोई अपना निर्णय मुझ पर थोप रहा है।"
युग असमंजस में :" तू न जाने क्या सोचती है और क्या बोलती है, खुद भी कंफ्यूज रहती है औरों को भी कर देती है।"
शीना :" अगर तू लड़कियों को गंभीरता से लेगा और समझने की कोशिश करेगा तो शायद समझ जाएंगा मैं क्या कह रही हूं।"
युग समझ रहा था शीना क्या कहना चाह रही थी,यह इस पिद्दी सी लड़की की अपने अस्तित्व की लड़ाई थी।
एक दिन युग घर के बाहर खड़ा था तभी शीना मोटरसाइकिल पर किसी युवक के साथ आती दिखाई दी। शीना को उतार कर वह युवक तुरंत वापस चला गया। युग शीना की तरफ देखते हुए कुछ सख्ती से बोला :" यह लड़का कौन है ?"
शीना :" वह मीता का भाई विकास है मुझे कोई ओटो नहीं मिल रही थी वो इधर ही आ रहें थे तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया।"
युग :" तुझे ऐसे किसी से लिफ्ट नहीं लेनी चाहिए।"
शीना :" मैं उन्हें तब से जानती हूं जब से मीता से मेरी दोस्ती हुई है। वह मुझे मीता की तरह छोटी बहन मानते हैं। अपनी सुरक्षा की मुझे भी उतनी ही चिंता है जितनी तुम सब को।किसकी कैसी नजर इसका मुझे भी अंदाजा है इतना तो विश्वास करो मुझ पर और मेरी बुद्धि पर ।"
युग को लगा वह सही कह रही है ,हर समय शीना को कमजोर और लाचार समझना बंद करना पड़ेगा। उसकी समझ पर भरोसा करना सीखना होगा।
आज कल वीर शीना को गाड़ी और स्कूटी चलाना सीखा रहा था।जितनी देर गाड़ी चलाने की प्रेक्टिस कराता था उतनी ही देर गाड़ी के कलपुर्जों की जानकारी देता था तो कभी टायर बदलना सिखाता था। एक दिन ललिता झुंझलाती हुई बोली :" क्या वीर गाड़ी चलाना सीखा रहा है वही बहुत है ,क्यों लड़की के हाथ पैर काले करने पर तुला है ।टायर वगैरह तो किसी से भी बदलवा लेगी।"
वीर :" नहीं मां कभी रास्ते में जरूरत पड़ी तो किसी अजनबी की मदद न लेनी पड़े इसलिए इसे अधिक से अधिक जानकारी होनी चाहिए। अगर इसे उड़ने देना है तो इसके पंखों को सशक्त बनाना बहुत आवश्यक है।"
युग का बड़ा भाई अपनी दस साल पुरानी प्रेमिका से शादी कर रहा था । घर में बहुत धूमधाम, नाच गाना चल रहा था । शीना को इस तरह के आयोजन में बहुत मज़ा आता था। हर कार्यक्रम के लिए नई पोशाक पहनकर खूब बन-ठन कर वह भाग लेती। नाचती तो समां बंध जाता। युग ने शीना के साथ शादी में बहुत मस्ती की , उसके दिल में अब शीना के प्रति प्रेम-भाव उमड़ने लगें थे। लेकिन उसने महसूस किया शीना के दिल में उसके लिए इस तरह की कोई भावनाएं नहीं थी ।बचपन से जानती थी इसलिए शीना ने उसकी तरफ इस भाव से कभी ध्यान ही नहीं दिया। वैसे भी बहुत व्यस्त रहती , कुछ न कुछ सीखती रहती ,इन दिनों सैल्फ डिफेंस और जूडो-कराटे की कक्षा में जाती थी। पढ़ाई का अंतिम वर्ष था उसमें भी पूरा ध्यान रहता था। युग की पढ़ाई हो गई थी , नौकरी ढूंढ रहा था।
बड़े भाई की शादी के तीन महीने बाद ही घर में किट किट शुरू हो गई,सास बहू में नहीं, पति पत्नी में रात दिन बहस रहती थी । दोनों को एक दूसरे से शिकायत थी की शादी से पहले जितना प्रेम जताते थे अब उतने ही खडूस हो गए हैं। सपनों की दुनिया से निकल कर अब हकीकत के धरातल पर दोनों को सामंजस्य स्थापित करने में थोड़ी परेशानी हो रही थी। युग और उसके माता-पिता को कोफ्त हो रही थी इस अशांति से, इतनी तेज आवाज , बे-सिर-पैर की बहस उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। बहुत पहले शहर के आखिरी छोर पर एक फ्लेट बुक कराया था जो अब बनके तैयार हो गया था । जैसे ही वह उनके नाम हुआ वे तीनों वहां जाकर रहने लगे ,इस बीच युग की नौकरी भी लग गई। अब वह व्यस्त रहता शीना के घर की तरफ जाना नहीं होता , तो उसको शीना के बारे में कोई जानकारी नहीं रहती । एक दिन हेम से पता चला उसकी पढ़ाई खत्म हो गई थी और वह नौकरी करने लगीं थीं। उसने सोचा समय निकाल कर शीना के घर जाएगा ,बधाई देकर उसके मन को टटोलने की कोशिश करेगा। लेकिन ऐसी नौबत ही नहीं आई कुछ समय बाद ही पता चला शीना की सगाई हो गई है उसकी बुआ की दूर की किसी रिश्तेदारी में। मन तो ख़ुश नहीं हुआ लेकिन शीना को जबरदस्ती चाहने के लिए कैसे मजबूर कर सकता था , इसलिए जब शीना का फ़ोन आया तो वह चौंक गया।
शीना गाड़ी के पास आराम से खड़ी थी उसको देखते ही बोली :" जहां तुम गाड़ी ठीक कराते हो वहां फोन कर दे , मेरी गाड़ी ले जाएगा। मम्मी पापा और दोनों भाई मौसी के यहां शादी में गए हैं , मुझे आफिस से दो दिन सोमवार और मंगलवार की छुट्टी नहीं मिली इसलिए नहीं गई। अपने मेकेनिक को फोन करूंगी तो वह तुरंत वीर भाई को फोन करके बता देगा और वे सब बीच में ही कार्यक्रम छोड़ कर यहां आ जाएंगे। "
युग समझ गया शीना ने उसे क्यों फोन करके बुलाया वह नहीं चाहती वीर को पता चले उसने गाड़ी ठोक दी है , बेकार सब परेशान होंगे। रास्ते में युग को लगा शीना कुछ खामोश और परेशान सी दिख रही है। वह उसको लेकर अपने घर पहुंचा तो उसकी मां सविता ने बड़े प्यार से शीना को बिठाया, खाना खिलाया और और पूछा क्या हुआ था।
शीना :" अपनी सहेली के घर जा रही थी रास्ते में गाड़ी पेड़ से टकरा गई। "
सविता यह कहकर " बेटा गाड़ी ध्यान से चलाया करो" अपने कमरे में चली गई।
युग :"मां चली गई अब सच सच बता क्या हुआ था? तेरी गाड़ी की दिशा तेरे घर की तरफ थी ,तू जा नहीं रही थी आ रही थी कहीं से । दूसरे तू इतनी कुशल चालक है , ट्रैफिक भी अधिक नहीं था ऐसे कैसे गाड़ी टकरा गई।"
शीना :" तू बाल की खाल क्यों निकाल रहा है , जो मैंने कहा दिया उसे मान क्यों नहीं लेता।?"
युग :" तू सब बातें बता रही हैं या मैं वीर भाई को फोन करूं।"
शीना :" यह मेरा व्यक्तिगत मामला है और तू ब्लेकमेलिंग जैसा ओछा काम कर रहा है।"
युग को लगा शीना कह तो सही रहीं हैं लेकिन उसकी जिज्ञासा उसे बैचेन कर रहीं थीं ।
युग :" तुझे जो समझना है समझ ,अब बता बात क्या है।"
शीना :" मेरी अमन से सगाई को तीन महीने हो गए हैं , फिर भी मैं उसके साथ सहज नहीं हो पाती हूं। उससे बात तक करने मैं संकोच होता है इसलिए वह थोड़ा नाराज़ रहने लगा है। आज मेरी छुट्टी थी सोचा उसके घर जाकर आज सारा दिन उसके साथ बिताती हूं शायद हम एक दूसरे को कुछ समझ सकें। लेकिन वहां जाकर देखा वह किसी और लड़की के साथ था, दरवाजा तक बंद करना भूल गया था।"
युग :" तू क्या चाहती है तुझसे सगाई हो गई तो वह किसी और लड़की से बात भी न करें .....
लेकिन शीना के आंखों में आंसू देखकर स्थिती की गंभीरता को समझते हुए वह बोला " तेरा मतलब है वह उस लड़की के साथ ...….नीच धोखेबाज । क्या उसे पता है तुने उसे यह सब करते हुए देखा है।"
शीना ने सिर हिला कर हामी भरी" वह मेरे पीछे आता लेकिन इस स्थिति में नहीं था कि एक दम मेरे .... । लौटते वक्त मैंने रास्ता दूसरा लिया था मैं अब उससे अकेले नहीं मिलना चाहतीं हूं।"
युग :" वह अब तेरे घर आएगा माफी मांगेगा , फिर अकेले देखकर बदतमीजी भी कर सकता है। तुझे बहुत बुरा लगा होगा अमन की इस ओछी हरकत से ,तू क्या उसको माफ़ कर देगी।"
शीना :" जब मैं अमन के घर से लौट रही थी तब बहुत अपसेट थी,रो रही थी इसलिए गाड़ी टकरा गई। लेकिन अब कुछ नोर्मल हो गई हूं , अंगूठी तो मैं उसी समय वही छोड़ आईं थीं। माफ़ करने का तो सवाल ही नहीं , जो अभी ऐसी हरकत कर रहा है वह शादी के बाद इमानदारी से रिश्ता निभाएगा इसकी क्या गारंटी।"
युग :" तू ऐसा कर जब तक सब शादी के समारोह से आ नहीं जाते तू यहीं रहना। तीन दिन की तो बात है । शाम को तेरे घर जाकर तीन दिन के लिए तुझे जो समान चाहिए ले आएंगे।"
शीना मान गई , उसके बाद दोनों बात करते रहे बचपन से लेकर अब तक की। रविवार भी कैसे निकल गया पता ही नहीं चला, एक दो फिल्में देखी या इधर-उधर घूमते रहे। शीना को महसूस हुआ वह युग के साथ कितनी सहज और खुश थी, युग हमेशा भाइयों और दोस्तों की भीड़ में खड़ा होता , उसने उसकी तरफ कभी अलग से ध्यान ही नहीं दिया।वह कितना मजाकिया और हेंडसम है और सबसे बड़ी बात वह उसको समझता है।
युग :" ऐसे क्यों घूर रही है क्या हुआ?"
शीना :" सोच रही हूं तू देखने में इतना बुरा भी नहीं है।"
युग :" शुक्र है तुने नोटिस तो किया , हमेशा अपने भाइयों और सहेलियों में ही उलझी रहती थी। "
शीना शर्माकर :" तू कहना क्या चाह रहा है?"
युग :" मैं तो तुझे बड़े भाई की शादी में ही प्यार करने लगा था लेकिन तेरी आंखों में ऐसी कोई चाहत न देख चुप रहा। सोचा जब तेरा ध्यान इस ओर जाने लगेगा तब सबसे पहले अपनी अर्जी लगा दूंगा, लेकिन तू तो सीधे ही शादी के मैदान में कूद पड़ी। "
शीना :" हां तू ठीक कह रहा है , अभी मेरे दिमाग में ऐसा कोई विचार नहीं था लेकिन जब अमन का रिश्ता आया तो पापा ने मिलने पर जोर दिया ।अरेंज मैरिज में जैसा होता है ,हम दोनों ने बात की ।वह बात करने में बहुत सलीके दार लगा , दिखने मैं बहुत स्मार्ट था , मैं ने हां कर दी , बाकी सब बातें मम्मी-पापा को ठीक लगी । लेकिन धीरे-धीरे उससे बात करके मैंने महसूस किया कि उसके और मेरे विचारों में बहुत अंतर है ,वह अपने लिए जितना आजादी पसंद था अपनी होने वाली पत्नी के लिए उतने ही कठोर कायदे कानून थे उसके। उसने मुझे बातों बातों में जताना शुरू कर दिया था उसे मुझसे क्या उम्मीदें हैं , मुझे कैसे रहना होगा , क्या पहनना होगा। मैं कल सुबह उसके पास गईं थीं जिससे सारा दिन उसके साथ बिताकर हम दोनों एक दूसरे को ठीक से समझ सकें। लेकिन उसकी इस हरकत से साफ जाहिर है कि वह मुझे और इस रिश्ते को गम्भीरता से नहीं ले रहा है। उसके मन में मेरे लिए कोई इज्जत नहीं प्यार तो दूर की बात है। वैसे तो मैं उसकी अंगुठी वहां छोड़ आईं थीं तो अब मैं इस सगाई को नहीं मानती लेकिन मम्मी-पापा के आने के बाद वे उसे और उसके माता-पिता को स्थिती से अवगत करा देंगे "
युग :" वीर भाई को पता चलेगा तो वे न जाने क्या करेंगे। कहीं अमन का सिर न फोड़ दें।"
शीना :" इसलिए तो जब तक वो सब आएंगे मैं बिल्कुल शांत हो जाऊंगी। उन्हें लगना नहीं चाहिए मैं परेशान या दुखी हूं उसकी इस हरकत से। शांति से दोनों परिवार बैठ कर बातें कर लेंगे,अब मेरे मन में कोई मलाल नहीं है । शादी के बाद पता चलता तो ज्यादा बुरा लगता।अमन जैसे भी जीना चाहता है उसकी जिंदगी है , लेकिन मैं धोखा देने में विश्वास नहीं रखती इसलिए दूसरे से भी ईमानदारी की उम्मीद करतीं हूं।"
इस बीच अमन के कईं फोन आए ,बार बार पूछ रहा था शीना कहां है ,वह उससे मिलकर माफी मांगना चाहता था। लेकिन शीना ने एक दो बार फोन उठाया, उसे साफ़ तौर पर बता दिया वह माफ़ नहीं कर सकतीं और अब दोनों इस रिश्ते से आजाद हैं।
वह फिर भी फोन करता रहा तो शीना ने उठाना ही बंद कर दिया। सोमवार और मंगलवार वह युग के घर से ही आफिस चली गई। मंगलवार की शाम जब वह आफिस से युग के घर पहुंची तो पता चला मैकेनिक उसकी गाड़ी ठीक करके उसके घर ले कर चला गया। अपना सब सामान युग की गाड़ी में रखकर वह युग के साथ अपने घर की ओर चल दी। उसके माता-पिता और दोनों भाई भी आने वाले होंगे। ताला खोलकर वह अपने कमरे में अपना सामान रखने चली गई। और युग बाहर लाबी में बैठ गया। तभी अमन दनदनाते हुए घर में घुसा और शीना शीना आवाज लगाता हुआ उसे कमरों में ढूंढने लगा । युग को बीच में पड़ना उचित नहीं लगा , उसे लगा इन दोनों को आपस में एक बार खुल कर बात कर लेनी चाहिए।
अमन :" शीना कहां थी तुम , मैं तीन दिन से तुम्हारे घर के चक्कर लगा रहा हूं । मुझे माफ़ कर दो मुझसे गलती हो गई।"
शीना :" अमन जो मैं ने उस दिन देखा उसके बाद मैं आपसे शादी नहीं कर सकती हूं । बेहतर होगा हम इस बात को और इस रिश्ते को यहीं खत्म कर दें।"
अमन :" तुम जरा सी बात का बतंगड़ बना रहीं हों। मैं माफी मांग रहा हूं और वादा कर रहा हूं आगे ऐसा बिल्कुल नहीं होगा।"
शीना :" नहीं अमन अपने मेरा विश्वास तोड़ा है इसलिए अब मैं आपसे शादी बिल्कुल नहीं कर सकती।"
अमन चीखते हुए :" तुम अपने आप को समझती क्या हो ? इस तरह से जरा सी बात पर क्या अकड़ दिखा रही हो।"
शीना :" अमन चिल्लाने से कोई लाभ नही, वैसे भी बहुत देर हो गई है आप जाइए,कल पापा आकर आप को फैसला सुना देंगे।" और शीना बाहर जाने लगी। बाहर शीना का परिवार आ चुका था ,अमन का चीखना सुनकर वीर अंदर की ओर भागा तो युग ने उसका हाथ पकड़ लिया।
युग :" भाई शीना को स्थिती से अपने आप निपटने दो।"
अमन ने जोर से शीना का हाथ पकड़ लिया" मेरी बात पूरी नहीं हुई है,जब मैं तुम्हें छूने की कोशिश करता था तो तुम छुईमुई बनकर मुझे झटक देती थी और किसी और के साथ देखकर जलन हो रही है।यह क्यों नहीं कहती सीने में आग लग रही है। " शीना :" मेरा हाथ छोड़ो बहुत हो गया । अब आप बदतमीजी कर रहे हैं।"
अमन :" यह क्यों नहीं कहती किसी और को मेरी बांहों में देखकर तड़प रही हो, लाओ मैं तुम्हारी इच्छा भी पूरी कर देता हूं।"
और अमन ने शीना को किस करने के लिए अपना मुंह आगे कर दिया। तभी शीना ने जोर से अपना घुटना उसके पेट में मारा , उसने शीना का हाथ छोड़कर अपना पेट पकड़ लिया।
अमन करहाते हुए,: अभी मजा चखाता हूं ,समझती क्या है अपने आप को। आज तो बचाने के लिए तेरा वह सांड भाई भी नहीं है।"
अमन जैसे ही लपका शीना की ओर उसने एक जोरदार थप्पड़ उसके मुंह पर मारा और मुड़ कर बाहर जाने लगी।अमन ने लपक कर उसके बाल पकड़ लिए। शीना को इतना तेज गुस्सा आया उसने पलटकर एक मुक्का जोर से अमन की नाक पर मारा। उसकी नाक से खून बहने लगा।एक हाथ से नाक पकड़ कर उसने दुबारा जैसे ही हाथ घुमाया शीना को मारने के लिए ,शीना ने उसका हाथ बीच हवा में पकड़ कर पटकनी दे दी। वह फर्श पर औंधे मुंह गिर गया।
शीना :" तुझ जैसों से निपटने के लिए मुझे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है। मैं अकेली ही काफी हूं तुझे सबक सिखाने के लिए।"
वीर का खून खौल रहा था , जैसे ही सब अंदर कमरे में आएं वह अमन को मारने के लिए झुका लेकिन उसके पिता ने रोक दिया :" नहीं बेटा अब इसकी जरूरत नहीं है , शीना ने अच्छा पाठ पढ़ा दिया है। इसको इसकी गाड़ी में बैठा दो जब सम्भल जाएगा अपने आप चला जाएगा।" फिर बेटी को गले लगाते हुए बोले :" मुझे तुम पर गर्व है बेटा।"
थोड़ी देर बाद सबसे विदा लेकर जब युग जाने लगा तो शीना उसे बाहर छोड़ने आई। युग ने सोचा अपने मन की बात करने का इससे अच्छा मौका फिर कहां मिलेगा। उसने शीना का हाथ अपने हाथ में लेते हुए आंखों में आंखें डालते हुए कहा :" शीना मैंने अपने मन की बात तुम्हें बता दीं हैं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं। अगर तुम्हारे मन में भी मेरे लिए कुछ भावनाऐं हैं तो मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।" शीना ने मुस्कुराते हुए जब हां कर दी तो वह इस वादे के साथ कि अगले दिन अपने मम्मी पापा के साथ आएगा शादी की बात करने ,वह चला गया।
शीना जब अंदर आईं तो वीर बोला :"यह युग क्या कह रहा था?"
शीना :" वह मुझसे शादी करना चाहता है और मैं ने हां कर दी।"
वीर :" तू अब सच में बड़ी हो गई है ,अब से तुझे नन्ही नहीं कहा करूंगा। तूने मेरे दम घोंटू प्यार से छुटकारा पाने का रास्ता भी ढूंढ लिया।"
शीना झेंपते हुए वीर के गले लग कर बोली :" उस दिन अपने मेरी बात सुन ली थी। नहीं भाई मैं तो हमेशा आपकी नन्ही ही रहूंगी, और आज आपका प्यार ही तो मेरी ताकत है ।"
लेखक - अज्ञात
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शनिवार का दिन था युगांतर छुट्टी का आनंद लेते हुए घर के बाहर बरामदे में बैठा, अपने लैपटॉप में व्यस्त था। तभी फोन की घंटी बजने लगी, देखा शीना का फ़ोन हैं, शीना उसकी करीबी दोस्त हैं बचपन से जानता है लेकिन फोन वोन नहीं करते थे एक-दूसरे को।
युगांतर :" हेलो,बोल क्या परेशानी है ?"
शीना :" हां युग मेरी गाड़ी वो जो राम मंदिर है न उसके पास पेड़ से टकरा गई है, तू मुझे लेने आजा।"
युग घबरा गया, तुरंत बोला :" क्या ! क्या हुआ ,सब ठीक तो है न ?"
शीना संयत स्वर में बोली :" घबरा मत मैं बिल्कुल ठीक हूं,बस गाड़ी ठुक गई है।"
युग :" अबे, तेरे लिए कौन घबरा रहा है, मैं तो गाड़ी की चिंता कर रहा हूं उसे ज्यादा चोट तो नहीं आईं।"
शीना :" अब तू हिलेगा भी , वहीं बैठा बैठा नाटक करता रहेगा।"
युग अब तक अंदर से चाबी लेकर गाड़ी तक पहुंच चुका था, गाड़ी में बैठते हुए बोला," तू ध्यान रख अपना ,एक तरफ खड़ी हो जा मैं बस बीस मिनट में पहुंच जाऊंगा।"
बोलने को कुछ भी बोल दे , लेकिन युग को शीना की बहुत चिन्ता हो रही थी। उसके पिता और शीना के पिता कालेज के समय से दोस्त थे घर भी पास पास थे इसलिए दोनों परिवारों का एक दूसरे के यहां रोज़ का आना-जाना था। शीना के दो बड़े भाई थे वीरेंद्र और हेमंत,युग और हेमंत हमउम्र थे इसलिए गहरे मित्र थे।
युग को आश्चर्य हुआ कि शीना ने उसको सहायता के लिए बुलाया,वह आजादी पसंद , आत्मनिर्भर लड़की थी , दूसरों से सहायता लेने में कम ही विश्वास रखतीं थी | एक बार जब वह शीना के घर गया था तब उसकी बड़े भाई वीरेंद्र से बहस हो रही थी।वह बारहवीं में थी और उसकी सहेली जन्मदिन की पार्टी किसी फार्म-हाउस में दे रही थी जो काफी दूर था।वीर थोड़ा अड़ियल क़िस्म का बंदा था ,एक बार उसके दिमाग में जो बात घुस जाए उसे निकालना थोड़ा मुश्किल काम था। शीना से पांच छः साल बड़ा था और अपनी बड़े भाई की जिम्मेदारी बहुत गंभीरता से लेता था।
उसकी सुरक्षा को लेकर वह अपने पिता की तरह बहुत सतर्क और कठोर था। छः फुट दो इंच का वीर बहुत लंबा चौड़ा दिखता था , जिसके कारण शीना को छेड़ने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। शायद इस लिए इस तरह के ख़तरों से वह कुछ अनजान थी । लंबे चौड़े तो हेम और युग भी थे लेकिन वीर से दो तीन इंच छोटे। शीना तो बिल्कुल ही उन लोगों के कंधे तक आतीं थी ,दुबली पतली , नाजुक सी इसलिए दोनों भाइयों को लगता वह बहुत कमजोर है और उसका अधिक ध्यान रखतें ।वीर ने साफ मना कर दिया था शीना इस पार्टी में इतनी दूर नहीं जाएगी। शीना बहुत भुनभुना रही थी , पैर पटकते हुए एक बार फिर वीर के सामने खड़ी हो गई।
शीना :" भाई यह आपकी ज्यादती है , मेरी सब सहेलियां जा रही है और आप मुझे फालतू में मना कर रहे हो।"
वीर :" नन्ही तू समझती क्यों नहीं है एक बार मना कर दिया तो कर दिया,तू वहां इतनी दूर जाएगी कुछ हो गया तो क्या करेंगे।"
शीना :" भाई हर समय इस डर से क्या मैं कहीं आऊंगी जाऊंगी नहीं । वहां निशा के पापा मम्मी ने सुरक्षा के सब इंतजाम कर रखे हैं , उन्हें भी तो अपनी बेटी की चिंता है ।"
वीर :" नहीं नन्ही हम कोई रिस्क नहीं ले सकते , हादसा होने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता , हमें पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए ।नन्ही तू परेशान मत हो मैं तुझे कहीं और घुमाने ले जाऊंगा।"
शीना :" भाई रहने दो , और आप मुझे नन्ही मत बुलाया करो , मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं है यह नाम "
घर में सब ने उसे नन्ही कहकर बुलाना बंद कर दिया था लेकिन वीर के मुंह पर अभी भी यही नाम चढ़ा था।
गुस्से से भरी शीना जब वीर के कमरे से बाहर आई तो लाबी में उसकी मां ललिता उसका इंतजार कर रही थी।एक तरफ हेम बैठा पापकार्न खा रहा था,वह इन पचड़ों में कम ही पड़ता था लेकिन युग की जिज्ञासा चरम पर थी अब आगे क्या होगा।
ललिता :" देख शीना गुस्सा मत हो बेटा,हम सब बहुत प्यार करते हैं तुझे इसलिए इतनी चिंता करते हैं तेरी।"
शीना :" माम ऐसा कैसा दमघोंटू प्यार है आप सबका , कुछ भी करने की इजाजत ही नहीं।आप लोग मुझे बिल्कुल स्पेस नहीं देते हैं।जब तक अनुभव नहीं करूंगी तो सीखूंगी कैसे,स्थिती को हेंडल करना कैसे आएगा । मैं जीवन को जीना चाहती हूं , महसूस करना चाहती हूं।"
ललिता :" हम अपने अनुभव से तुझे समझाते हैं किस स्थिति में खतरा हो सकता है, तू उसे मान कर चुपचाप अपने आप को उस स्थिति से दूर रख।हम सब तुझे इतना प्यार करते हैं और तूझे इसकी कोई कद्र नहीं "
शीना को लग रहा था कोई उसकी बात नहीं समझ रहा और वह पत्थर पर सिर मार रहीं हैं।वह झल्ला कर बोली :"नहीं चाहिए मुझे इतना प्यार।"
युग को हंसी आ गई ," लोग प्यार को तरसते हैं और तू प्यार तोल कर बताएगी तुझे कितना चाहिए।"
शीना युग पर बरस पड़ी ," तुझे समझ भी आ रहा है मैं क्या कह रही हूं। रात दिन सुरक्षा के नाम पर इतनी रोक टोक बर्दाश्त करना कितना मुश्किल है तुझे क्या पता। सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन हूं तो सोने के पिंजरे में कैद। कैसा लगेगा तुझे अगर दूर से खूबसूरत पहाड़ दिखा दे और बोले देखो कितना सुन्दर है लेकिन पास मत जाना , चढ़ना मत गिर जाओगे तो।"
शीना से आगे नहीं बोला गया , बेबसी में उसके आंसू आ गए।वह रोते हुए अपने कमरे में चली गई। युग को महसूस हुआ कि उसने मुद्दे की गंभीरता को समझा ही नहीं। स्वयं बिना रोक-टोक का जीवन जीते हुए उसने यह कभी सोचा ही नहीं लड़कियों के लिए असुरक्षित समाज में उनके अपने उन पर कितनी बंदिशें लगाते हैं और इसका उनके मन पर क्या प्रभाव पड़ता है।उसका रोना सुनकर ललिता और हेम उसके पीछे भागे लेकिन तब तक शीना ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था। छोटी होने के कारण इतनी लाडली थी कि किसी से उसका रोना बर्दाश्त नहीं था , दोनों दरवाजा पीट रहे थे और उसे मनाने में लगे थे। उधर शोर सुनकर वीर भी कमरे से बाहर आ गया और तुरंत गाड़ी लेकर कहीं चला गया। दस मिनट बाद जब आया तो उसके हाथ में शीना की मनपसंद आईसक्रीम और चाकलेट थी।तब तक ललिता और हेम दरवाजा खुलवा चुके थे। वीर अपने हाथों से शीना को आइसक्रीम खिलाते हुए बोला :" ठीक है तू तैयार हो जाना छोड़कर मैं आऊंगा और तू फोन रखना अपने पास जब तुम्हे वापस आना हो या कुछ ठीक न लगे मुझे फ़ोन कर देना मैं लेने आ जाऊंगा।"
शाम को युग और हेमंत फुटबॉल खेल रहे थे जब शीना तैयार होकर बाहर निकली गजब की सुंदर लग रही थी और पार्टी में जाने के कारण खुश इतनी थी कि चेहरा दमक रहा था। युग तो देखता ही रह गया , उसे लगता था शीना सुंदर है लेकिन उसने कभी खास ध्यान नहीं दिया था। रात के साढ़े बारह बजे थे, युग ने अपने घर की खिड़की से झांका तो देखा ललिता और हेम घर के बाहर बैचेनी से घूम रहे थे ,अंकल कहीं बाहर गए हुए थे नहीं तो वे भी उनके साथ होते। युग को भी चिंता होने लगी इतनी देर हो गई शीना आईं नहीं क्या अभी तक। वह भी बाहर आ गया तभी वीर की गाड़ी आती दिखाई दी। जैसे ही हेम ने गाड़ी का दरवाजा खोला और शीना को रोते देखा तो उसके और ललिता के हाथ पैर फूल गए।
दूसरी तरफ से जब वीर गाड़ी से उतर कर आया तो वह भी बहुत घबराया हुआ था बोला :" पता नहीं क्या हुआ गाड़ी में बैठे बैठे एकदम से रोने लगी।"
ललिता तो किसी अनहोनी के डर से ऐसी घबरा गई कि स्वयं रोने को आ गई। शीना को पानी पिलाया आराम से बिठाया तब पता चला वह क्यों रो रही थी। वीर ने कहा था वह शीना को पार्टी में छोड़ कर घर वापस आ जायेगा और तीन घंटे बाद लेने जाएंगा। लेकिन शीना के फोन करते ही दस मिनट में वीर को दरवाजे पर देखकर वह समझ गई वीर घर गया ही नहीं। तीन घंटे वह बाहर ठंड में भूखा प्यासा शीना के इंतजार में ही खड़ा रहा। यह समझते ही भावुक शीना बहुत रोई , उसे लगा अगर उसे पता होता वीर बाहर ही खड़ा है तो वह और एक घंटा पहले निकल जाती पार्टी में से। लेकिन वीर ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा :" पगली तू खुश हैं और सुरक्षित भी , मेरे लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है।"
अब शीना के जीवन में दो तरह की समस्याएं मुंह बाए खड़ी रहती एक तरफ उसका मन था जो उड़ना चाहता था,नये नये अनुभव अपनी झोली में समेटना चाहता था दूसरी तरफ घर वालों का निश्छल प्रेम था जो अधिक उड़ने की इजाजत नहीं देता। इधर युग की दिलचस्पी और जिज्ञासा शीना के प्रति बढ़ती जा रही थी , आखिर लड़कियां सारे दिन करती क्या हैं ।कभी रंग-बिरंगी नेलपॉलिश लगाएंगी फिर फोटो खींच कर सहेली को भेजेंगी और न जाने क्यों मिटा देंगी। कभी किसी कोने में बैठी फोन पर धीरे धीरे बात करेंगी और मुंह पर हाथ रख कर हंस हंस कर दोहरी होती रहेगी। वह पूछता इतना क्यों हंस रही है तो वह सिर झटक कर कहती " तू जा यहां से , तेरी समझ में नहीं आएगा।"
वीर तो सारा दिन अपने पिता के साथ काम में व्यस्त रहता और हेम को पढ़ाई तथा मैच खेलने और देखने से फुर्सत नहीं मिलती। युग शीना से दो साल बड़ा था और हेम के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। वैसे तो खेलकूद का उसे भी बहुत शौक था लेकिन अब उसे शीना की क्रियाकलापों पर नजर रखने में अधिक आनंद आता । उसका जन्मदिन आने वाला था, और किसी के तोहफों से उसे इतनी तकलीफ़ नहीं होती जितनी वीर के तोहफे से होती। उसके डैड हर साल पैसे दे देते ,माम पसंद और जरूरत की कोई वस्तु दिलवा देती ,हेम बचपन से चाकलेट देता था अब कुछ सालों से टेडीबियर देने शुरू कर दिये। वीर सरप्राइज के चक्कर में कुछ ऐसा तोहफा देता कि शीना से न इस्तेमाल करते बनता न इधर उधर करते बनता। वह अधिकतर जींस शार्टस और स्कर्ट पहनना पसंद करती थी और वीर को लगा कुछ अलग देना चाहिए । इसलिए पिछली बार वह सलवार कमीज़ लाया ,रंग स्टाइल सब उम्र दराज औरतों के हिसाब से।अब अगर शीना वह पोषक पहनती तो उसकी सहेलियां मुंह पर हाथ रख कर मुंडी नीचे करके खीं खीं करती और अगर नहीं पहनती तो वीर का मुंह उतर जाता। इस बार ऐसी नौबत न आए ,वीर को भी दुख न पहुंचे , उसने एक महीने पहले से ही वीर के सामने अपनी मनपसंद ड्रेस के फोटो छोड़ने शुरू कर दिये । लेकिन जब वीर को कुछ समझ नहीं आया तो एक दिन उसे जबरदस्ती बाजार ले गईं और अपनी पसंद की पोशाक ले कर आई। अब वीर भी खुश जब भी शीना वह ड्रेस पहनती उसका चेहरा खिल जाता और शीना भी बड़े चाव से उसे पहनती।
अब वह अपने मन की करने के लिए ऐसे ही बीच के रास्ते निकालती। कालेज में आ गई थी ,सारी सहेलियों को मिलकर नये नये प्रयोग करने में बड़ा मज़ा आता। वह जब भी अपनी सहेलियों से बात करती अगर युग वहीं होता तो कान लगा कर अवश्य सुनता। ऐसे ही एक दिन उसे पता चला ये सब लड़कियां किसी दिन चुपके से सिगरेट पीने की योजना बना रही है। जिस दिन ललिता की किटी थी वे सब लड़कियां शीना के घर इक्ट्ठी हो गई और खूब धमाल किया।उस दिन युग जल्दी आ गया था शीना पर नजर रखने के लिए ,वह क्या करेगी जानने की उसे बड़ी उत्सुकता थी।वह उसके घर के आसपास घूमता रहा , जोर जोर से संगीत की और लड़कियों के चीखने कीआवाजें आ रही थी । अंदर बहुत मस्ती की जा रही थी ,पिज्जा बर्गर मंगवाए जा रहें थे।मन तो उसका भी कर रहा था अंदर जाकर देखें ये सब कर क्या रही हैं, लेकिन पता था पिट जाएगा बुरी तरह। जब दो तीन घंटे बाद दरवाजा खुला और एक दो करके लड़कियों ने जाना शुरू किया तो वह अंदर घुस गया।
युग :" तू सिगरेट पी रही थी न ?"
शीना कुछ सकपका गई फिर अकड़ कर बोली :" तुझे क्या?"
युग :" तुझे सिगरेट नहीं पीना चाहिए।"
शीना :" मुझे पता है तुने और हेम ने ग्यारहवी में सिगरेट ट्राई की थी और तू अभी भी अंकल से छुप छुप कर पीता है , फिर मुझे क्यों मना कर रहा है।"
युग :" लड़कियों को नहीं पीना चाहिए नुकसान देती है।"
शीना :" बहुत खूब सिगरेट को तो पता है न लड़के के मुंह में लगीं है या लड़की के। वैसे मुझे सिगरेट पीना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा इसलिए मैं आगे से कभी हाथ नहीं लगाउंगी। ऐसी चीज नहीं है जिसके लिए अपनी सेहत ख़राब करूं।"
युग चैन की सांस लेते हुए :" वही तो मैं कह रहा हूं तुझे सिगरेट नहीं पीना चाहिए।"
शीना :" देख मैं अपनी समझ से इस काम को ग़लत समझकर नहीं करूंगी इसलिए नहीं की कोई अपना निर्णय मुझ पर थोप रहा है।"
युग असमंजस में :" तू न जाने क्या सोचती है और क्या बोलती है, खुद भी कंफ्यूज रहती है औरों को भी कर देती है।"
शीना :" अगर तू लड़कियों को गंभीरता से लेगा और समझने की कोशिश करेगा तो शायद समझ जाएंगा मैं क्या कह रही हूं।"
युग समझ रहा था शीना क्या कहना चाह रही थी,यह इस पिद्दी सी लड़की की अपने अस्तित्व की लड़ाई थी।
एक दिन युग घर के बाहर खड़ा था तभी शीना मोटरसाइकिल पर किसी युवक के साथ आती दिखाई दी। शीना को उतार कर वह युवक तुरंत वापस चला गया। युग शीना की तरफ देखते हुए कुछ सख्ती से बोला :" यह लड़का कौन है ?"
शीना :" वह मीता का भाई विकास है मुझे कोई ओटो नहीं मिल रही थी वो इधर ही आ रहें थे तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया।"
युग :" तुझे ऐसे किसी से लिफ्ट नहीं लेनी चाहिए।"
शीना :" मैं उन्हें तब से जानती हूं जब से मीता से मेरी दोस्ती हुई है। वह मुझे मीता की तरह छोटी बहन मानते हैं। अपनी सुरक्षा की मुझे भी उतनी ही चिंता है जितनी तुम सब को।किसकी कैसी नजर इसका मुझे भी अंदाजा है इतना तो विश्वास करो मुझ पर और मेरी बुद्धि पर ।"
युग को लगा वह सही कह रही है ,हर समय शीना को कमजोर और लाचार समझना बंद करना पड़ेगा। उसकी समझ पर भरोसा करना सीखना होगा।
आज कल वीर शीना को गाड़ी और स्कूटी चलाना सीखा रहा था।जितनी देर गाड़ी चलाने की प्रेक्टिस कराता था उतनी ही देर गाड़ी के कलपुर्जों की जानकारी देता था तो कभी टायर बदलना सिखाता था। एक दिन ललिता झुंझलाती हुई बोली :" क्या वीर गाड़ी चलाना सीखा रहा है वही बहुत है ,क्यों लड़की के हाथ पैर काले करने पर तुला है ।टायर वगैरह तो किसी से भी बदलवा लेगी।"
वीर :" नहीं मां कभी रास्ते में जरूरत पड़ी तो किसी अजनबी की मदद न लेनी पड़े इसलिए इसे अधिक से अधिक जानकारी होनी चाहिए। अगर इसे उड़ने देना है तो इसके पंखों को सशक्त बनाना बहुत आवश्यक है।"
युग का बड़ा भाई अपनी दस साल पुरानी प्रेमिका से शादी कर रहा था । घर में बहुत धूमधाम, नाच गाना चल रहा था । शीना को इस तरह के आयोजन में बहुत मज़ा आता था। हर कार्यक्रम के लिए नई पोशाक पहनकर खूब बन-ठन कर वह भाग लेती। नाचती तो समां बंध जाता। युग ने शीना के साथ शादी में बहुत मस्ती की , उसके दिल में अब शीना के प्रति प्रेम-भाव उमड़ने लगें थे। लेकिन उसने महसूस किया शीना के दिल में उसके लिए इस तरह की कोई भावनाएं नहीं थी ।बचपन से जानती थी इसलिए शीना ने उसकी तरफ इस भाव से कभी ध्यान ही नहीं दिया। वैसे भी बहुत व्यस्त रहती , कुछ न कुछ सीखती रहती ,इन दिनों सैल्फ डिफेंस और जूडो-कराटे की कक्षा में जाती थी। पढ़ाई का अंतिम वर्ष था उसमें भी पूरा ध्यान रहता था। युग की पढ़ाई हो गई थी , नौकरी ढूंढ रहा था।
बड़े भाई की शादी के तीन महीने बाद ही घर में किट किट शुरू हो गई,सास बहू में नहीं, पति पत्नी में रात दिन बहस रहती थी । दोनों को एक दूसरे से शिकायत थी की शादी से पहले जितना प्रेम जताते थे अब उतने ही खडूस हो गए हैं। सपनों की दुनिया से निकल कर अब हकीकत के धरातल पर दोनों को सामंजस्य स्थापित करने में थोड़ी परेशानी हो रही थी। युग और उसके माता-पिता को कोफ्त हो रही थी इस अशांति से, इतनी तेज आवाज , बे-सिर-पैर की बहस उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। बहुत पहले शहर के आखिरी छोर पर एक फ्लेट बुक कराया था जो अब बनके तैयार हो गया था । जैसे ही वह उनके नाम हुआ वे तीनों वहां जाकर रहने लगे ,इस बीच युग की नौकरी भी लग गई। अब वह व्यस्त रहता शीना के घर की तरफ जाना नहीं होता , तो उसको शीना के बारे में कोई जानकारी नहीं रहती । एक दिन हेम से पता चला उसकी पढ़ाई खत्म हो गई थी और वह नौकरी करने लगीं थीं। उसने सोचा समय निकाल कर शीना के घर जाएगा ,बधाई देकर उसके मन को टटोलने की कोशिश करेगा। लेकिन ऐसी नौबत ही नहीं आई कुछ समय बाद ही पता चला शीना की सगाई हो गई है उसकी बुआ की दूर की किसी रिश्तेदारी में। मन तो ख़ुश नहीं हुआ लेकिन शीना को जबरदस्ती चाहने के लिए कैसे मजबूर कर सकता था , इसलिए जब शीना का फ़ोन आया तो वह चौंक गया।
शीना गाड़ी के पास आराम से खड़ी थी उसको देखते ही बोली :" जहां तुम गाड़ी ठीक कराते हो वहां फोन कर दे , मेरी गाड़ी ले जाएगा। मम्मी पापा और दोनों भाई मौसी के यहां शादी में गए हैं , मुझे आफिस से दो दिन सोमवार और मंगलवार की छुट्टी नहीं मिली इसलिए नहीं गई। अपने मेकेनिक को फोन करूंगी तो वह तुरंत वीर भाई को फोन करके बता देगा और वे सब बीच में ही कार्यक्रम छोड़ कर यहां आ जाएंगे। "
युग समझ गया शीना ने उसे क्यों फोन करके बुलाया वह नहीं चाहती वीर को पता चले उसने गाड़ी ठोक दी है , बेकार सब परेशान होंगे। रास्ते में युग को लगा शीना कुछ खामोश और परेशान सी दिख रही है। वह उसको लेकर अपने घर पहुंचा तो उसकी मां सविता ने बड़े प्यार से शीना को बिठाया, खाना खिलाया और और पूछा क्या हुआ था।
शीना :" अपनी सहेली के घर जा रही थी रास्ते में गाड़ी पेड़ से टकरा गई। "
सविता यह कहकर " बेटा गाड़ी ध्यान से चलाया करो" अपने कमरे में चली गई।
युग :"मां चली गई अब सच सच बता क्या हुआ था? तेरी गाड़ी की दिशा तेरे घर की तरफ थी ,तू जा नहीं रही थी आ रही थी कहीं से । दूसरे तू इतनी कुशल चालक है , ट्रैफिक भी अधिक नहीं था ऐसे कैसे गाड़ी टकरा गई।"
शीना :" तू बाल की खाल क्यों निकाल रहा है , जो मैंने कहा दिया उसे मान क्यों नहीं लेता।?"
युग :" तू सब बातें बता रही हैं या मैं वीर भाई को फोन करूं।"
शीना :" यह मेरा व्यक्तिगत मामला है और तू ब्लेकमेलिंग जैसा ओछा काम कर रहा है।"
युग को लगा शीना कह तो सही रहीं हैं लेकिन उसकी जिज्ञासा उसे बैचेन कर रहीं थीं ।
युग :" तुझे जो समझना है समझ ,अब बता बात क्या है।"
शीना :" मेरी अमन से सगाई को तीन महीने हो गए हैं , फिर भी मैं उसके साथ सहज नहीं हो पाती हूं। उससे बात तक करने मैं संकोच होता है इसलिए वह थोड़ा नाराज़ रहने लगा है। आज मेरी छुट्टी थी सोचा उसके घर जाकर आज सारा दिन उसके साथ बिताती हूं शायद हम एक दूसरे को कुछ समझ सकें। लेकिन वहां जाकर देखा वह किसी और लड़की के साथ था, दरवाजा तक बंद करना भूल गया था।"
युग :" तू क्या चाहती है तुझसे सगाई हो गई तो वह किसी और लड़की से बात भी न करें .....
लेकिन शीना के आंखों में आंसू देखकर स्थिती की गंभीरता को समझते हुए वह बोला " तेरा मतलब है वह उस लड़की के साथ ...….नीच धोखेबाज । क्या उसे पता है तुने उसे यह सब करते हुए देखा है।"
शीना ने सिर हिला कर हामी भरी" वह मेरे पीछे आता लेकिन इस स्थिति में नहीं था कि एक दम मेरे .... । लौटते वक्त मैंने रास्ता दूसरा लिया था मैं अब उससे अकेले नहीं मिलना चाहतीं हूं।"
युग :" वह अब तेरे घर आएगा माफी मांगेगा , फिर अकेले देखकर बदतमीजी भी कर सकता है। तुझे बहुत बुरा लगा होगा अमन की इस ओछी हरकत से ,तू क्या उसको माफ़ कर देगी।"
शीना :" जब मैं अमन के घर से लौट रही थी तब बहुत अपसेट थी,रो रही थी इसलिए गाड़ी टकरा गई। लेकिन अब कुछ नोर्मल हो गई हूं , अंगूठी तो मैं उसी समय वही छोड़ आईं थीं। माफ़ करने का तो सवाल ही नहीं , जो अभी ऐसी हरकत कर रहा है वह शादी के बाद इमानदारी से रिश्ता निभाएगा इसकी क्या गारंटी।"
युग :" तू ऐसा कर जब तक सब शादी के समारोह से आ नहीं जाते तू यहीं रहना। तीन दिन की तो बात है । शाम को तेरे घर जाकर तीन दिन के लिए तुझे जो समान चाहिए ले आएंगे।"
शीना मान गई , उसके बाद दोनों बात करते रहे बचपन से लेकर अब तक की। रविवार भी कैसे निकल गया पता ही नहीं चला, एक दो फिल्में देखी या इधर-उधर घूमते रहे। शीना को महसूस हुआ वह युग के साथ कितनी सहज और खुश थी, युग हमेशा भाइयों और दोस्तों की भीड़ में खड़ा होता , उसने उसकी तरफ कभी अलग से ध्यान ही नहीं दिया।वह कितना मजाकिया और हेंडसम है और सबसे बड़ी बात वह उसको समझता है।
युग :" ऐसे क्यों घूर रही है क्या हुआ?"
शीना :" सोच रही हूं तू देखने में इतना बुरा भी नहीं है।"
युग :" शुक्र है तुने नोटिस तो किया , हमेशा अपने भाइयों और सहेलियों में ही उलझी रहती थी। "
शीना शर्माकर :" तू कहना क्या चाह रहा है?"
युग :" मैं तो तुझे बड़े भाई की शादी में ही प्यार करने लगा था लेकिन तेरी आंखों में ऐसी कोई चाहत न देख चुप रहा। सोचा जब तेरा ध्यान इस ओर जाने लगेगा तब सबसे पहले अपनी अर्जी लगा दूंगा, लेकिन तू तो सीधे ही शादी के मैदान में कूद पड़ी। "
शीना :" हां तू ठीक कह रहा है , अभी मेरे दिमाग में ऐसा कोई विचार नहीं था लेकिन जब अमन का रिश्ता आया तो पापा ने मिलने पर जोर दिया ।अरेंज मैरिज में जैसा होता है ,हम दोनों ने बात की ।वह बात करने में बहुत सलीके दार लगा , दिखने मैं बहुत स्मार्ट था , मैं ने हां कर दी , बाकी सब बातें मम्मी-पापा को ठीक लगी । लेकिन धीरे-धीरे उससे बात करके मैंने महसूस किया कि उसके और मेरे विचारों में बहुत अंतर है ,वह अपने लिए जितना आजादी पसंद था अपनी होने वाली पत्नी के लिए उतने ही कठोर कायदे कानून थे उसके। उसने मुझे बातों बातों में जताना शुरू कर दिया था उसे मुझसे क्या उम्मीदें हैं , मुझे कैसे रहना होगा , क्या पहनना होगा। मैं कल सुबह उसके पास गईं थीं जिससे सारा दिन उसके साथ बिताकर हम दोनों एक दूसरे को ठीक से समझ सकें। लेकिन उसकी इस हरकत से साफ जाहिर है कि वह मुझे और इस रिश्ते को गम्भीरता से नहीं ले रहा है। उसके मन में मेरे लिए कोई इज्जत नहीं प्यार तो दूर की बात है। वैसे तो मैं उसकी अंगुठी वहां छोड़ आईं थीं तो अब मैं इस सगाई को नहीं मानती लेकिन मम्मी-पापा के आने के बाद वे उसे और उसके माता-पिता को स्थिती से अवगत करा देंगे "
युग :" वीर भाई को पता चलेगा तो वे न जाने क्या करेंगे। कहीं अमन का सिर न फोड़ दें।"
शीना :" इसलिए तो जब तक वो सब आएंगे मैं बिल्कुल शांत हो जाऊंगी। उन्हें लगना नहीं चाहिए मैं परेशान या दुखी हूं उसकी इस हरकत से। शांति से दोनों परिवार बैठ कर बातें कर लेंगे,अब मेरे मन में कोई मलाल नहीं है । शादी के बाद पता चलता तो ज्यादा बुरा लगता।अमन जैसे भी जीना चाहता है उसकी जिंदगी है , लेकिन मैं धोखा देने में विश्वास नहीं रखती इसलिए दूसरे से भी ईमानदारी की उम्मीद करतीं हूं।"
इस बीच अमन के कईं फोन आए ,बार बार पूछ रहा था शीना कहां है ,वह उससे मिलकर माफी मांगना चाहता था। लेकिन शीना ने एक दो बार फोन उठाया, उसे साफ़ तौर पर बता दिया वह माफ़ नहीं कर सकतीं और अब दोनों इस रिश्ते से आजाद हैं।
वह फिर भी फोन करता रहा तो शीना ने उठाना ही बंद कर दिया। सोमवार और मंगलवार वह युग के घर से ही आफिस चली गई। मंगलवार की शाम जब वह आफिस से युग के घर पहुंची तो पता चला मैकेनिक उसकी गाड़ी ठीक करके उसके घर ले कर चला गया। अपना सब सामान युग की गाड़ी में रखकर वह युग के साथ अपने घर की ओर चल दी। उसके माता-पिता और दोनों भाई भी आने वाले होंगे। ताला खोलकर वह अपने कमरे में अपना सामान रखने चली गई। और युग बाहर लाबी में बैठ गया। तभी अमन दनदनाते हुए घर में घुसा और शीना शीना आवाज लगाता हुआ उसे कमरों में ढूंढने लगा । युग को बीच में पड़ना उचित नहीं लगा , उसे लगा इन दोनों को आपस में एक बार खुल कर बात कर लेनी चाहिए।
अमन :" शीना कहां थी तुम , मैं तीन दिन से तुम्हारे घर के चक्कर लगा रहा हूं । मुझे माफ़ कर दो मुझसे गलती हो गई।"
शीना :" अमन जो मैं ने उस दिन देखा उसके बाद मैं आपसे शादी नहीं कर सकती हूं । बेहतर होगा हम इस बात को और इस रिश्ते को यहीं खत्म कर दें।"
अमन :" तुम जरा सी बात का बतंगड़ बना रहीं हों। मैं माफी मांग रहा हूं और वादा कर रहा हूं आगे ऐसा बिल्कुल नहीं होगा।"
शीना :" नहीं अमन अपने मेरा विश्वास तोड़ा है इसलिए अब मैं आपसे शादी बिल्कुल नहीं कर सकती।"
अमन चीखते हुए :" तुम अपने आप को समझती क्या हो ? इस तरह से जरा सी बात पर क्या अकड़ दिखा रही हो।"
शीना :" अमन चिल्लाने से कोई लाभ नही, वैसे भी बहुत देर हो गई है आप जाइए,कल पापा आकर आप को फैसला सुना देंगे।" और शीना बाहर जाने लगी। बाहर शीना का परिवार आ चुका था ,अमन का चीखना सुनकर वीर अंदर की ओर भागा तो युग ने उसका हाथ पकड़ लिया।
युग :" भाई शीना को स्थिती से अपने आप निपटने दो।"
अमन ने जोर से शीना का हाथ पकड़ लिया" मेरी बात पूरी नहीं हुई है,जब मैं तुम्हें छूने की कोशिश करता था तो तुम छुईमुई बनकर मुझे झटक देती थी और किसी और के साथ देखकर जलन हो रही है।यह क्यों नहीं कहती सीने में आग लग रही है। " शीना :" मेरा हाथ छोड़ो बहुत हो गया । अब आप बदतमीजी कर रहे हैं।"
अमन :" यह क्यों नहीं कहती किसी और को मेरी बांहों में देखकर तड़प रही हो, लाओ मैं तुम्हारी इच्छा भी पूरी कर देता हूं।"
और अमन ने शीना को किस करने के लिए अपना मुंह आगे कर दिया। तभी शीना ने जोर से अपना घुटना उसके पेट में मारा , उसने शीना का हाथ छोड़कर अपना पेट पकड़ लिया।
अमन करहाते हुए,: अभी मजा चखाता हूं ,समझती क्या है अपने आप को। आज तो बचाने के लिए तेरा वह सांड भाई भी नहीं है।"
अमन जैसे ही लपका शीना की ओर उसने एक जोरदार थप्पड़ उसके मुंह पर मारा और मुड़ कर बाहर जाने लगी।अमन ने लपक कर उसके बाल पकड़ लिए। शीना को इतना तेज गुस्सा आया उसने पलटकर एक मुक्का जोर से अमन की नाक पर मारा। उसकी नाक से खून बहने लगा।एक हाथ से नाक पकड़ कर उसने दुबारा जैसे ही हाथ घुमाया शीना को मारने के लिए ,शीना ने उसका हाथ बीच हवा में पकड़ कर पटकनी दे दी। वह फर्श पर औंधे मुंह गिर गया।
शीना :" तुझ जैसों से निपटने के लिए मुझे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है। मैं अकेली ही काफी हूं तुझे सबक सिखाने के लिए।"
वीर का खून खौल रहा था , जैसे ही सब अंदर कमरे में आएं वह अमन को मारने के लिए झुका लेकिन उसके पिता ने रोक दिया :" नहीं बेटा अब इसकी जरूरत नहीं है , शीना ने अच्छा पाठ पढ़ा दिया है। इसको इसकी गाड़ी में बैठा दो जब सम्भल जाएगा अपने आप चला जाएगा।" फिर बेटी को गले लगाते हुए बोले :" मुझे तुम पर गर्व है बेटा।"
थोड़ी देर बाद सबसे विदा लेकर जब युग जाने लगा तो शीना उसे बाहर छोड़ने आई। युग ने सोचा अपने मन की बात करने का इससे अच्छा मौका फिर कहां मिलेगा। उसने शीना का हाथ अपने हाथ में लेते हुए आंखों में आंखें डालते हुए कहा :" शीना मैंने अपने मन की बात तुम्हें बता दीं हैं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं। अगर तुम्हारे मन में भी मेरे लिए कुछ भावनाऐं हैं तो मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।" शीना ने मुस्कुराते हुए जब हां कर दी तो वह इस वादे के साथ कि अगले दिन अपने मम्मी पापा के साथ आएगा शादी की बात करने ,वह चला गया।
शीना जब अंदर आईं तो वीर बोला :"यह युग क्या कह रहा था?"
शीना :" वह मुझसे शादी करना चाहता है और मैं ने हां कर दी।"
वीर :" तू अब सच में बड़ी हो गई है ,अब से तुझे नन्ही नहीं कहा करूंगा। तूने मेरे दम घोंटू प्यार से छुटकारा पाने का रास्ता भी ढूंढ लिया।"
शीना झेंपते हुए वीर के गले लग कर बोली :" उस दिन अपने मेरी बात सुन ली थी। नहीं भाई मैं तो हमेशा आपकी नन्ही ही रहूंगी, और आज आपका प्यार ही तो मेरी ताकत है ।"
लेखक - अज्ञात
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