Hindi mein bachchon ki kahaniyan - प्रेरणादायक हिंदी कहानी संग्रह
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संध्या की बेला काटना शिल्पा के लिए पिछले दो सालों से दुखद अहसास हो गया था। अपने पति प्रतीक को उसने कितनी बार कहा छः साढ़े छः बजे तक आ जाया करें, लेकिन नौ बजे से पहले वह नहीं आता था। बाजार में दुकानें सब इतने बजें तक ही बंद होती थी। प्रतीक बर्तनों की दुकान का मालिक था, इस मंदी के दौर में जिम्मेदार व्यापारी दो घंटे पहले दुकान बंद कर नुकसान कैसे सहन करें।
शिल्पा को जब पता चला था वह मां बनने वाली हैं तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। रात दिन इस अहसास से की उसकी गोद में एक नन्हा मुन्ना किलकारी भरेगा वह स्वप्न लोक में खोयी रहती। उसकी बड़ी बहन सुमन जो उसके साथ ही रहती थी उसका बहुत ध्यान रखती ।लेकिन आठवें महीने में न जाने क्यों उसके पेट में इतने जोर का दर्द उठा कि उसको तुरंत अस्पताल भर्ती करना पड़ा । कुछ ऐसी जटिलताएं पैदा हो गई कि डाक्टर को एकदम से आपरेशन करना पड़ा।जब डाक्टर ने उसकी गोद में नन्हीं सी रूई सी कोमल गुड़िया दी तो उसे लगा वह उस समय संसार की सबसे भाग्यशाली नारी है। लेकिन प्रतीक के चेहरे पर उदासी देखकर वह समझ नहीं सकी इसका क्या कारण हो सकता है।जब शिल्पा ने बच्ची को प्रतीक से गोदी में लेने को कहा तो न वह उत्साहित लगा न वह शिल्पा से नजरें मिला रहा था। वह फिर भी प्रसन्न होते हुए बोली :" देखो कितनी प्यारी है, मेरी रुही है यह ।क्या बात है आप खुश नहीं हैं इसके आने से कहीं लड़के की चाहत तो नहीं थी आपको!"
प्रतीक बिना कुछ बोले एकदम से उठकर बाहर चला गया तभी डाक्टर आया और उसके हाथ से नन्ही जान को लेते हुए बोला :" नर्सरी में रखना पड़ेगा अभी थोड़ी कमजोर है।"
शिल्पा का मन तो नहीं कर रहा था बच्ची से अलग होने का लेकिन उसकी भलाई के लिए उसने रुही को डाक्टर के सुपुर्द कर दिया।
थोड़ी देर बाद जब सुमन कमरे में आई तो उसका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था तब शिल्पा को लगा स्थिती कुछ गंभीर है। जब शिल्पा ने बहुत पूछा और कसम दी तब उसने बताया रुही के बचने की उम्मीद बहुत कम है। शिल्पा को विश्वास नहीं हुआ, इतने महीनों का कष्ट और सपना एक पल में धाराशाई हो गया।
वह हर आते जाते डाक्टर से अपनी बच्ची का हाल पूछती, कभी भगवान से फरियाद करती या बस रोने लग जाती लेकिन होनी को कौन टाल सकता है । शाम के समय प्रतीक जब रूही को गोद में लेकर शिल्पा के पास आया तो बहुत रो रहा था। शिल्पा ने बच्ची को गोद में लिया तो देखा वह नीली पड़ चुकी थी निष्प्राण थी।उसको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ ,नियती उसके साथ ऐसा क्रुर मजाक कैसे कर सकती हैं ,उसकी कोख भरी ही क्यो थी अगर बच्ची को जिंदगी नहीं देनी थी।वह कुछ देर तक बच्ची को निहारती रही फिर बेहोश हो गई।जब होश आया तो उसकी गोद सूनी थी ,प्रतीक और सुमन सिर झुकाए सामने बैठे थे।
कितने अरमानों से अस्पताल आईं थीं लेकिन खाली हाथ वापस लौट रही थी।
शिल्पा के लिए इस दुख से निकलना बहुत मुश्किल हो रहा था। वह रात दिन पड़ी रोती रहती प्रतीक बहुत प्यार से समझाता, दुकान से जल्दी आ जाता , कहीं न कहीं चलने की पेशकश करता लेकिन वह कुछ प्रतिक्रिया नहीं देती।घर के काम यथावत चल रहे थे ,सुमन ने सब संभाल लिया था।वह भी शिल्पा के खाने पीने का ध्यान रखती , उसे बातों में उलझाकर ध्यान खींचने की कोशिश करती लेकिन शिल्पा पर कोई असर नहीं होता,वह अपने दुख को ओढ़े पड़ी रहती। चार पांच महीने गुजर चुके थे अब इन हालात का असर प्रतीक पर भी पड़ने लगा था।वह बहुत कमजोर और पस्त होता जा रहा था। अधिक से अधिक समय दुकान पर बिताता, गुमसुम और गमगीन रहने लगा था।
उसने सबसे बातें करनी बहुत कम कर दीं थीं , शिल्पा की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिलता था तो वह और अपने आप में सिमटकर रह गया। फिर एक दिन अचानक सुमन घर छोड़ कर चलीं गईं। कोई संदेश भी नहीं छोड़ा था उसने, प्रतीक ने आसपास सब जगह पता किया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। शिल्पा भी जैसे नींद से जागी सो ,बहन की चिंता में अपना ग़म भूल गई। उसकी ससुराल भी फोन करके पूछा, उसके पति ने पहले भी कभी सुध नहीं ली थी सुमन की अब भी बड़ी बेरुखी से जवाब दिया कि उसे कुछ नहीं पता सुमन के बारे में। पुलिस को भी रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। सुमन तो नहीं मिली लेकिन शिल्पा की दिनचर्या पहले जैसी सामान्य हो गई, घर के काम-काज में ऐसी उलझी की अपनी दुख पर से ध्यान कुछ हटा।
अब उसे समय का होश नहीं रहता,बस शाम ढलती और वह उदास हो जाती।न चाहते हुए भी नन्ही रूही का चेहरा आंखों के सामने से घूम जाता।प्रतीक सुबह दस बजे का निकला रात नौ बजे तक ही घर में आता शिल्पा की स्थिति सामान्य होने से उसकी सेहत भी सुधरने लगी थी। लेकिन शिल्पा को लगता जैसे प्रतीक और उसके बीच कुछ दूरियां आ गई है , ऐसा कोई कारण नहीं दिखा जिस पर वह उंगली रख सकें लेकिन कभी कभी उसको अहसास होता था।
बहन की बहुत याद आती , चिंता भी होती न जाने कहां होगी ,कैसी होगी। अचानक ऐसा क्या हो गया जो बिना बताए इस तरह से चलीं गईं,बस कुछ कपड़े और थोड़े से रुपए लेकर। डेढ़ साल बीत गए थे बहन को गए हुए,सुमन के अलावा शिल्पा का अब मायके में कोई नहीं था । मौसी मामा थे लेकिन सब अपने में मस्त। मां का स्वर्गवास तो जब दोनों बहनें स्कूल में थी तब हो गया था, पिता ने साथ शिल्पा की शादी के बाद छोड़ दिया था।
आसपास कुछ स्त्रियों से दोस्ती कर रखी थी फिर भी अकेलापन उसे अखर जाता था। गर्भवती होने से पहले कुछ बच्चों को दोनों बहनें ट्यूशन पढ़ाती थी लेकिन अब उसकी हिम्मत नहीं होती। दुबारा मां बनना चाहती थी , डाक्टर को दिखाया भी, डाक्टर ने कुछ खास उम्मिद दिखाई नहीं।जब भी इन बातों को सोचती मन और व्यथित हो जाता , फिर कितनी भी कोशिश कर ले भजन सुनने की , ध्यान लगाने की कोई फायदा नहीं होता।
उसे लगा किसी ने दरवाजे पर हल्की सी ठक ठक की है, घंटी क्यों नहीं बजाते , निश्चिंतता हों जाती है कोई है नहीं तो लगता है कहीं हवा के कारण वहम तो नहीं हो रहा।
दरवाजा खोला तो देखा एक पांच छः महीने का बच्चा बाहर टोकरी में सो रहा था। उसने आश्चर्य से चारों ओर देखा यह किसका बच्चा है , कौन रख गया है।जब कोई नज़र नहीं आया तो उसने दुबारा बच्चें की तरफ देखा, उसके ऊपर एक लिफाफा रखा था।वह बरामदे की रोशनी जला कर वहीं बैठ गई, ऐसे कैसे बच्चें को अंदर ले जाए पता नहीं किसका है। लिफाफा खोलकर उसने अंदर रखे कागज़ को पढ़ना शुरू किया।
प्रिय छोटी,
छोटी पढ़ते ही उसका माथा ठनका ,सुमन के अलावा उसे छोटी बुलाने वाला कोई नहीं है ।तो यह पत्र सुमन ने लिखा है ,पन्ने पलटकर आखिरी पंक्ति पर नजर डाली तो लिखा था तुम्हारी बहन सुमन।
वह कौतूहल वश पत्र पढ़ने लगी ।
प्रिय छोटी,
आशा है तू अब स्वस्थ होगी,अपना ध्यान रखती होगी। तुझे मेरी चिंता रहती होगी लेकिन मैं ठीक हूं। मैं अब जो लिखने जा रही हूं उसके बाद तू शायद मुझसे कभी बात न करें लेकिन अपने मन का बोझ कम करने के लिए यह आवश्यक है।
शादी के बाद मुझे न तो पति का सुख मिला न गृहस्थी का। मेरे पति अपनी विधवा भाभी के साथ लगे हुए थे और चुंकि वो अकेले कमाने वाले थे घर में उनका विरोध करने का साहस किसी में नहीं था। मेरी सास ननद और देवर चुप रहते थे और यहीं मुझसे भी उम्मीद करते थे। जब मैं ने पिताजी को बताया तो वे चाहते थे कि मैं बस तेरी शादी होने तक चुप रहूं। उन्होंने भागदौड़ कर तेरा छः महीने में विवाह प्रतीकजी से करवा दिया लेकिन स्वयं बीमार पड़ गये। मेरा दुख और इतनी भागदौड़ उनका कमजोर शरीर सहन नहीं कर पाया।वे बहुत दुखी थे जब आखिरी समय में उनसे मिलने गईं,क्षमा मांग रहे थे कि मेरे लिए कुछ कर नहीं सकें।
पिताजी की मृत्यु के बाद मैंने स्वयं अपने पति के विरुद्ध आवाज उठाई , उनके अनैतिक संबंधों का विरोध किया। पुलिस में रिपोर्ट लिखाने की धमकी दी लेकिन पुलिस में कोई मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था।उनकी समाज में धौंस ही ऐसी थी । थक-हार कर मैंने घर छोड़ने का मन बनाया तो मेरे पति और जेठानी ने मुझे बहुत मारा, अधमरा करके गली में छोड़ दिया। मेरी ननद ने डरते डरते तुझे फोन किया तब तूने आकर मुझे अस्पताल में भर्ती कराया। सोच पांच छः घंटे मैं दर्द से कराहती रही लेकिन उस गांव में किसी की हिम्मत नहीं थी मेरे पति के खिलाफ खड़े होने की।
प्रतीकजी और तेरी सेवा से मेरा शरीर तो ठीक हो गया लेकिन मन बिखर गया। मैं ने अपनी आपबीती कभी किसी को विस्तार से नहीं बताई , तुझे भी बस यह बताया मेरा पति शराबी था और मुझे मारता था। तुझे जीवन में भाग्य ने सब सुख दिया ,प्रतीकजी तेरी तरफ ऐसे देखते मानो दुनिया में और कोई है ही नहीं। तेरा यह सम्पूर्ण सुख हमारे बीच कहीं न कहीं एक दीवार थी । मैं तुझसे कभी कुछ इसलिए नहीं कहती कहीं यह सहानुभूति प्राप्त करने के लिए याचना जैसा न लगे।
मैं पुरुष स्पर्श से अनजान थी लेकिन जब प्रतीकजी तुझे जाने अनजाने छू जाते और तू शरमा कर सिमट जाती तब मेरी इच्छाएं भी जाग्रत होने लगी। तुम दोनों का अपना संसार था , आंखों ही आंखों में न जाने क्या बोल जाते थे।कईं बार मैं रात को तुम्हारे दरवाजे के बाहर खड़ी होकर तुम्हारे अंतरंग क्षणों को महसूस करती और फिर अपने कमरे में जाकर कल्पना करती तेरे स्थान पर मैं हूं। जब तू गर्भवती हुई तो तुम दोनों की प्रसन्नता दुगनी हो गई प्रतीकजी तेरे आसपास रहते और मैं तुम दोनों के इस घेरे में अपने आप को अवांछित सा महसूस करती। तुने मुझ पर इतने अहसान किये ,नया जीवन दिया , अपने घर में रहने की जगह दी।कईं बार सोचा कहीं और चली जाऊं लेकिन मौत को इतने करीब से देखा था इतनी पीड़ा सहन की थी कि हिम्मत साथ नहीं दे रही थी। ऐसा नहीं था की तेरी खुशियों से मुझे ईर्ष्या हो रही थी बस दुख था कि ऐसी प्रसन्नता मेरी किस्मत में क्यों नहीं।
जब रूही के जाने के बाद तुम उदासीन पड़ी रहती और प्रतीकजी का ध्यान नहीं रखती तो मुझे कुछ समय बाद तुझ पर गुस्सा आने लगा। उनका दुख क्या कम था ,बच्चा तो उन्होंने भी खोया था। लेकिन वो बिचारे अपना ग़म भूल कर तेरा ध्यान रखतें और अपने व्यापार को भी पूरी मेहनत से संभालते।उस दिन वो इतने दुखी थे दुकान से लौट कर बहुत देर तक चौखट पर बैठे रहे , जैसे तेरे सामने नहीं पड़ना चाहते हों। मैं उन्हें थोड़ी देर बाद बुलाकर अंदर ले गईं , खाना परोसा। किसी तरह उन्होंने आधा अधुरा खाना खाया, वे इतना परेशान थे कि उनकी आंखें गीली थी। मैं हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गईं , अपने सीने से लगाया।जब उनके हाथ मेरे जिस्म पर फिसले तो मेरा रोम-रोम खिल उठा।लगा उन कुछ क्षणों में मैं जिंदा हो गई। लेकिन जब उन्माद थमा और उन्होंने मेरी तरफ देखा तो उनकी नज़रों में क्षुब्धता देखकर मैं सिहर उठी। मेरे लिए अब वहां रहना नामुमकिन हो गया था।
मैं गुरु जी के आश्रम में आकर रहने लगी,तू ढूंढती हुई वहां आईं थीं।। मैं ने गुरुजी के पांव पकड़ लिए थे उनसे झूठ बुलवाया कि मैं वहां नहीं हूं। जल्द ही मुझे अहसास हुआ कि मैं मां बनने वाली हूं, मुझे नहीं समझ आ रहा था की मैं खुश हूं या दुखी।
जब बच्ची मेरी गोद में आई तो समझ आया तुझे रूही के जन्म के समय क्या महसूस हुआ होगा। लगा सारी सृष्टि सिमट कर गोद में आ गई हो , नारीत्व को गौरवान्वित करने वाला पल होता है यह । मैं उसे कलेजे से लगाए सारा दिन प्रसन्नचित रहती लेकिन अंदर ही अंदर यह ग्लानि मुझे कचोट रही थी कि यह तेरी अमानत है मेरे पास। तेरी जिंदगी के कुछ ऐसे क्षण मैंने चुराएं थे जिन पर मेरा कोई हक नहीं था।
प्रतीकजी की इसमें कोई गलती नहीं थी, इसलिए उन्हें क्षमा करने में तुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मुझे माफ़ करना तेरे लिए मुमकिन नहीं होगा , मैं बस चाहती हूं तू मुझसे नफरत न करें। बहुत समय लगा मुझे इस मोह से निकल ने में , लेकिन प्रायश्चित करना आवश्यक है।अपना कलेजा तुझे दे रही हूं,यह मेरी छवि है तू इसे अपनी रुही भी बुला सकती है। मुझे ढूंढना मत अब हम कभी भी न मिले तो अच्छा है,दुख और ग्लानि के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा। मैं स्थिर हो कर शीघ्र दीक्षा ले लूंगी। तेरी और तेरे परिवार की खुशियों की कामना हमेशा करती रहुंगी।
तुम्हारी बहन
सुमन।
पत्र पढ़कर शिल्पा की आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। तभी सामने से प्रतीक आता दिखाई दिया,उसको देखते ही बोला :" आज सिर में दर्द सा हो रहा था इसलिए जल्दी दुकान समेट ली" फिर बच्चे की ओर देखते हुए बोला :" यह बच्चा किसका है?"
बच्ची कुनकुना ने लगी थी, उसे गोदी में उठाते हुए शिल्पा बोली :"हमारी छवि है।" और पत्र प्रतीक के हाथों में दे दिया।
लेखक - अज्ञात
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शिल्पा को जब पता चला था वह मां बनने वाली हैं तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। रात दिन इस अहसास से की उसकी गोद में एक नन्हा मुन्ना किलकारी भरेगा वह स्वप्न लोक में खोयी रहती। उसकी बड़ी बहन सुमन जो उसके साथ ही रहती थी उसका बहुत ध्यान रखती ।लेकिन आठवें महीने में न जाने क्यों उसके पेट में इतने जोर का दर्द उठा कि उसको तुरंत अस्पताल भर्ती करना पड़ा । कुछ ऐसी जटिलताएं पैदा हो गई कि डाक्टर को एकदम से आपरेशन करना पड़ा।जब डाक्टर ने उसकी गोद में नन्हीं सी रूई सी कोमल गुड़िया दी तो उसे लगा वह उस समय संसार की सबसे भाग्यशाली नारी है। लेकिन प्रतीक के चेहरे पर उदासी देखकर वह समझ नहीं सकी इसका क्या कारण हो सकता है।जब शिल्पा ने बच्ची को प्रतीक से गोदी में लेने को कहा तो न वह उत्साहित लगा न वह शिल्पा से नजरें मिला रहा था। वह फिर भी प्रसन्न होते हुए बोली :" देखो कितनी प्यारी है, मेरी रुही है यह ।क्या बात है आप खुश नहीं हैं इसके आने से कहीं लड़के की चाहत तो नहीं थी आपको!"
प्रतीक बिना कुछ बोले एकदम से उठकर बाहर चला गया तभी डाक्टर आया और उसके हाथ से नन्ही जान को लेते हुए बोला :" नर्सरी में रखना पड़ेगा अभी थोड़ी कमजोर है।"
शिल्पा का मन तो नहीं कर रहा था बच्ची से अलग होने का लेकिन उसकी भलाई के लिए उसने रुही को डाक्टर के सुपुर्द कर दिया।
थोड़ी देर बाद जब सुमन कमरे में आई तो उसका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था तब शिल्पा को लगा स्थिती कुछ गंभीर है। जब शिल्पा ने बहुत पूछा और कसम दी तब उसने बताया रुही के बचने की उम्मीद बहुत कम है। शिल्पा को विश्वास नहीं हुआ, इतने महीनों का कष्ट और सपना एक पल में धाराशाई हो गया।
वह हर आते जाते डाक्टर से अपनी बच्ची का हाल पूछती, कभी भगवान से फरियाद करती या बस रोने लग जाती लेकिन होनी को कौन टाल सकता है । शाम के समय प्रतीक जब रूही को गोद में लेकर शिल्पा के पास आया तो बहुत रो रहा था। शिल्पा ने बच्ची को गोद में लिया तो देखा वह नीली पड़ चुकी थी निष्प्राण थी।उसको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ ,नियती उसके साथ ऐसा क्रुर मजाक कैसे कर सकती हैं ,उसकी कोख भरी ही क्यो थी अगर बच्ची को जिंदगी नहीं देनी थी।वह कुछ देर तक बच्ची को निहारती रही फिर बेहोश हो गई।जब होश आया तो उसकी गोद सूनी थी ,प्रतीक और सुमन सिर झुकाए सामने बैठे थे।
कितने अरमानों से अस्पताल आईं थीं लेकिन खाली हाथ वापस लौट रही थी।
शिल्पा के लिए इस दुख से निकलना बहुत मुश्किल हो रहा था। वह रात दिन पड़ी रोती रहती प्रतीक बहुत प्यार से समझाता, दुकान से जल्दी आ जाता , कहीं न कहीं चलने की पेशकश करता लेकिन वह कुछ प्रतिक्रिया नहीं देती।घर के काम यथावत चल रहे थे ,सुमन ने सब संभाल लिया था।वह भी शिल्पा के खाने पीने का ध्यान रखती , उसे बातों में उलझाकर ध्यान खींचने की कोशिश करती लेकिन शिल्पा पर कोई असर नहीं होता,वह अपने दुख को ओढ़े पड़ी रहती। चार पांच महीने गुजर चुके थे अब इन हालात का असर प्रतीक पर भी पड़ने लगा था।वह बहुत कमजोर और पस्त होता जा रहा था। अधिक से अधिक समय दुकान पर बिताता, गुमसुम और गमगीन रहने लगा था।
उसने सबसे बातें करनी बहुत कम कर दीं थीं , शिल्पा की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिलता था तो वह और अपने आप में सिमटकर रह गया। फिर एक दिन अचानक सुमन घर छोड़ कर चलीं गईं। कोई संदेश भी नहीं छोड़ा था उसने, प्रतीक ने आसपास सब जगह पता किया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। शिल्पा भी जैसे नींद से जागी सो ,बहन की चिंता में अपना ग़म भूल गई। उसकी ससुराल भी फोन करके पूछा, उसके पति ने पहले भी कभी सुध नहीं ली थी सुमन की अब भी बड़ी बेरुखी से जवाब दिया कि उसे कुछ नहीं पता सुमन के बारे में। पुलिस को भी रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। सुमन तो नहीं मिली लेकिन शिल्पा की दिनचर्या पहले जैसी सामान्य हो गई, घर के काम-काज में ऐसी उलझी की अपनी दुख पर से ध्यान कुछ हटा।
अब उसे समय का होश नहीं रहता,बस शाम ढलती और वह उदास हो जाती।न चाहते हुए भी नन्ही रूही का चेहरा आंखों के सामने से घूम जाता।प्रतीक सुबह दस बजे का निकला रात नौ बजे तक ही घर में आता शिल्पा की स्थिति सामान्य होने से उसकी सेहत भी सुधरने लगी थी। लेकिन शिल्पा को लगता जैसे प्रतीक और उसके बीच कुछ दूरियां आ गई है , ऐसा कोई कारण नहीं दिखा जिस पर वह उंगली रख सकें लेकिन कभी कभी उसको अहसास होता था।
बहन की बहुत याद आती , चिंता भी होती न जाने कहां होगी ,कैसी होगी। अचानक ऐसा क्या हो गया जो बिना बताए इस तरह से चलीं गईं,बस कुछ कपड़े और थोड़े से रुपए लेकर। डेढ़ साल बीत गए थे बहन को गए हुए,सुमन के अलावा शिल्पा का अब मायके में कोई नहीं था । मौसी मामा थे लेकिन सब अपने में मस्त। मां का स्वर्गवास तो जब दोनों बहनें स्कूल में थी तब हो गया था, पिता ने साथ शिल्पा की शादी के बाद छोड़ दिया था।
आसपास कुछ स्त्रियों से दोस्ती कर रखी थी फिर भी अकेलापन उसे अखर जाता था। गर्भवती होने से पहले कुछ बच्चों को दोनों बहनें ट्यूशन पढ़ाती थी लेकिन अब उसकी हिम्मत नहीं होती। दुबारा मां बनना चाहती थी , डाक्टर को दिखाया भी, डाक्टर ने कुछ खास उम्मिद दिखाई नहीं।जब भी इन बातों को सोचती मन और व्यथित हो जाता , फिर कितनी भी कोशिश कर ले भजन सुनने की , ध्यान लगाने की कोई फायदा नहीं होता।
उसे लगा किसी ने दरवाजे पर हल्की सी ठक ठक की है, घंटी क्यों नहीं बजाते , निश्चिंतता हों जाती है कोई है नहीं तो लगता है कहीं हवा के कारण वहम तो नहीं हो रहा।
दरवाजा खोला तो देखा एक पांच छः महीने का बच्चा बाहर टोकरी में सो रहा था। उसने आश्चर्य से चारों ओर देखा यह किसका बच्चा है , कौन रख गया है।जब कोई नज़र नहीं आया तो उसने दुबारा बच्चें की तरफ देखा, उसके ऊपर एक लिफाफा रखा था।वह बरामदे की रोशनी जला कर वहीं बैठ गई, ऐसे कैसे बच्चें को अंदर ले जाए पता नहीं किसका है। लिफाफा खोलकर उसने अंदर रखे कागज़ को पढ़ना शुरू किया।
प्रिय छोटी,
छोटी पढ़ते ही उसका माथा ठनका ,सुमन के अलावा उसे छोटी बुलाने वाला कोई नहीं है ।तो यह पत्र सुमन ने लिखा है ,पन्ने पलटकर आखिरी पंक्ति पर नजर डाली तो लिखा था तुम्हारी बहन सुमन।
वह कौतूहल वश पत्र पढ़ने लगी ।
प्रिय छोटी,
आशा है तू अब स्वस्थ होगी,अपना ध्यान रखती होगी। तुझे मेरी चिंता रहती होगी लेकिन मैं ठीक हूं। मैं अब जो लिखने जा रही हूं उसके बाद तू शायद मुझसे कभी बात न करें लेकिन अपने मन का बोझ कम करने के लिए यह आवश्यक है।
शादी के बाद मुझे न तो पति का सुख मिला न गृहस्थी का। मेरे पति अपनी विधवा भाभी के साथ लगे हुए थे और चुंकि वो अकेले कमाने वाले थे घर में उनका विरोध करने का साहस किसी में नहीं था। मेरी सास ननद और देवर चुप रहते थे और यहीं मुझसे भी उम्मीद करते थे। जब मैं ने पिताजी को बताया तो वे चाहते थे कि मैं बस तेरी शादी होने तक चुप रहूं। उन्होंने भागदौड़ कर तेरा छः महीने में विवाह प्रतीकजी से करवा दिया लेकिन स्वयं बीमार पड़ गये। मेरा दुख और इतनी भागदौड़ उनका कमजोर शरीर सहन नहीं कर पाया।वे बहुत दुखी थे जब आखिरी समय में उनसे मिलने गईं,क्षमा मांग रहे थे कि मेरे लिए कुछ कर नहीं सकें।
पिताजी की मृत्यु के बाद मैंने स्वयं अपने पति के विरुद्ध आवाज उठाई , उनके अनैतिक संबंधों का विरोध किया। पुलिस में रिपोर्ट लिखाने की धमकी दी लेकिन पुलिस में कोई मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था।उनकी समाज में धौंस ही ऐसी थी । थक-हार कर मैंने घर छोड़ने का मन बनाया तो मेरे पति और जेठानी ने मुझे बहुत मारा, अधमरा करके गली में छोड़ दिया। मेरी ननद ने डरते डरते तुझे फोन किया तब तूने आकर मुझे अस्पताल में भर्ती कराया। सोच पांच छः घंटे मैं दर्द से कराहती रही लेकिन उस गांव में किसी की हिम्मत नहीं थी मेरे पति के खिलाफ खड़े होने की।
प्रतीकजी और तेरी सेवा से मेरा शरीर तो ठीक हो गया लेकिन मन बिखर गया। मैं ने अपनी आपबीती कभी किसी को विस्तार से नहीं बताई , तुझे भी बस यह बताया मेरा पति शराबी था और मुझे मारता था। तुझे जीवन में भाग्य ने सब सुख दिया ,प्रतीकजी तेरी तरफ ऐसे देखते मानो दुनिया में और कोई है ही नहीं। तेरा यह सम्पूर्ण सुख हमारे बीच कहीं न कहीं एक दीवार थी । मैं तुझसे कभी कुछ इसलिए नहीं कहती कहीं यह सहानुभूति प्राप्त करने के लिए याचना जैसा न लगे।
मैं पुरुष स्पर्श से अनजान थी लेकिन जब प्रतीकजी तुझे जाने अनजाने छू जाते और तू शरमा कर सिमट जाती तब मेरी इच्छाएं भी जाग्रत होने लगी। तुम दोनों का अपना संसार था , आंखों ही आंखों में न जाने क्या बोल जाते थे।कईं बार मैं रात को तुम्हारे दरवाजे के बाहर खड़ी होकर तुम्हारे अंतरंग क्षणों को महसूस करती और फिर अपने कमरे में जाकर कल्पना करती तेरे स्थान पर मैं हूं। जब तू गर्भवती हुई तो तुम दोनों की प्रसन्नता दुगनी हो गई प्रतीकजी तेरे आसपास रहते और मैं तुम दोनों के इस घेरे में अपने आप को अवांछित सा महसूस करती। तुने मुझ पर इतने अहसान किये ,नया जीवन दिया , अपने घर में रहने की जगह दी।कईं बार सोचा कहीं और चली जाऊं लेकिन मौत को इतने करीब से देखा था इतनी पीड़ा सहन की थी कि हिम्मत साथ नहीं दे रही थी। ऐसा नहीं था की तेरी खुशियों से मुझे ईर्ष्या हो रही थी बस दुख था कि ऐसी प्रसन्नता मेरी किस्मत में क्यों नहीं।
जब रूही के जाने के बाद तुम उदासीन पड़ी रहती और प्रतीकजी का ध्यान नहीं रखती तो मुझे कुछ समय बाद तुझ पर गुस्सा आने लगा। उनका दुख क्या कम था ,बच्चा तो उन्होंने भी खोया था। लेकिन वो बिचारे अपना ग़म भूल कर तेरा ध्यान रखतें और अपने व्यापार को भी पूरी मेहनत से संभालते।उस दिन वो इतने दुखी थे दुकान से लौट कर बहुत देर तक चौखट पर बैठे रहे , जैसे तेरे सामने नहीं पड़ना चाहते हों। मैं उन्हें थोड़ी देर बाद बुलाकर अंदर ले गईं , खाना परोसा। किसी तरह उन्होंने आधा अधुरा खाना खाया, वे इतना परेशान थे कि उनकी आंखें गीली थी। मैं हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गईं , अपने सीने से लगाया।जब उनके हाथ मेरे जिस्म पर फिसले तो मेरा रोम-रोम खिल उठा।लगा उन कुछ क्षणों में मैं जिंदा हो गई। लेकिन जब उन्माद थमा और उन्होंने मेरी तरफ देखा तो उनकी नज़रों में क्षुब्धता देखकर मैं सिहर उठी। मेरे लिए अब वहां रहना नामुमकिन हो गया था।
मैं गुरु जी के आश्रम में आकर रहने लगी,तू ढूंढती हुई वहां आईं थीं।। मैं ने गुरुजी के पांव पकड़ लिए थे उनसे झूठ बुलवाया कि मैं वहां नहीं हूं। जल्द ही मुझे अहसास हुआ कि मैं मां बनने वाली हूं, मुझे नहीं समझ आ रहा था की मैं खुश हूं या दुखी।
जब बच्ची मेरी गोद में आई तो समझ आया तुझे रूही के जन्म के समय क्या महसूस हुआ होगा। लगा सारी सृष्टि सिमट कर गोद में आ गई हो , नारीत्व को गौरवान्वित करने वाला पल होता है यह । मैं उसे कलेजे से लगाए सारा दिन प्रसन्नचित रहती लेकिन अंदर ही अंदर यह ग्लानि मुझे कचोट रही थी कि यह तेरी अमानत है मेरे पास। तेरी जिंदगी के कुछ ऐसे क्षण मैंने चुराएं थे जिन पर मेरा कोई हक नहीं था।
प्रतीकजी की इसमें कोई गलती नहीं थी, इसलिए उन्हें क्षमा करने में तुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मुझे माफ़ करना तेरे लिए मुमकिन नहीं होगा , मैं बस चाहती हूं तू मुझसे नफरत न करें। बहुत समय लगा मुझे इस मोह से निकल ने में , लेकिन प्रायश्चित करना आवश्यक है।अपना कलेजा तुझे दे रही हूं,यह मेरी छवि है तू इसे अपनी रुही भी बुला सकती है। मुझे ढूंढना मत अब हम कभी भी न मिले तो अच्छा है,दुख और ग्लानि के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा। मैं स्थिर हो कर शीघ्र दीक्षा ले लूंगी। तेरी और तेरे परिवार की खुशियों की कामना हमेशा करती रहुंगी।
तुम्हारी बहन
सुमन।
पत्र पढ़कर शिल्पा की आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। तभी सामने से प्रतीक आता दिखाई दिया,उसको देखते ही बोला :" आज सिर में दर्द सा हो रहा था इसलिए जल्दी दुकान समेट ली" फिर बच्चे की ओर देखते हुए बोला :" यह बच्चा किसका है?"
बच्ची कुनकुना ने लगी थी, उसे गोदी में उठाते हुए शिल्पा बोली :"हमारी छवि है।" और पत्र प्रतीक के हाथों में दे दिया।
लेखक - अज्ञात
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