धरती का रस - Dharti ka ras - A hindi story हिंदी कहानियां छोटे बच्चों के लिए
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एक बार की बात है. एक राजा था. एक बार वो सैर करने के लिए अपने शहर से बाहर चला गया. उसे लौटते समय दोपहर का समय हो गया, उसे खेतों में एक किसान की झोपड़ी दिखाई दी. राजा खेत में विश्राम के लिए रुक गया. वहां झोपड़ी में किसान की बूढी माँ रहा रही थी. राजा को बहुत प्यास लगी थी, इसलिए उसने बुढियां से पिने के लिए पानी माँगा.
बुढिया ने एक गन्ना तोड़ लिया और उसका रस निकालकर राजा को दे दिया. राजा ने वो रस पिया और तृप्त हो गया. रस पिने के बाद राजा ने बुढिया से पुछा - तुम्हे राजा को इस खेत का कितना लगान देना पड़ता है. बुढिया बोली - बेटा हमारा राजा बहुत अच्छा, नेक और दयालु है. वह हमारे बीस बीघा जमीन का मात्र एक रुपया ही लगान लेता है. राजा ने सोचा इतने मधुर रस की पैदा वाले खेत का लगान साल में बस एक रुपया ही क्यों? इसलिए उसने सोचा कि राजधानी जाकर वो अपने मंत्री से इस बारे में विचार - विमर्श करेगा और गन्ने के खेतों का लगान बढ़ाने को सोचेगा. राजा बहुत थका हुआ था इसलिए सोचते सोचते उसे नींद आ गई.
जब वो उठा तो उसने बुढिया से फिर से एक ग्लास रस पिने के लिए माँगा. बुढिया इस बार भी एक गन्ने को लाकर रस निकलने लगी परन्तु उसमे से बहुत कम रस निकला. बुढिया दूसरा गन्ना ले आई लेकिन इस बार भी गिलास नहीं भरा. बुढियां ने इस प्रकार 5 गन्ने का रस निकाला तब जाकर एक गिलास रस का तैयार हुआ. राजा ने पुछा - माता जी, ये क्या हो गया, पहले जब तुमने रस निकाला था तो एक ही गन्ने से पूरा गिलास भर गया था परन्तु अब पांच गन्नो से एक गिलास भरा है. ऐसा क्यों?
बुढिया बोली - बेटा मुझे समझ नहीं आ रहा है क्योंकि ऐसा तो तब ही हो सकता है जब राजा की नियत में खोट आ जाए, क्योंकि ऐसा होने पर धरती अपना रस सोख लेती है, परन्तु हमारा राजा तो बहुत दयावान, प्रजावत्सल और धर्मबुद्धि वाला है, इसलिए ऐसा तो नहीं होना चाहिए था. बुढिया की बात सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया. राजा का चेतन और विवेक जागृत हो गया. राजधर्म प्रजा का पोषण करने के लिए कहता है उनका शोषण करने के लिए नहीं. अब राजा मन ही मन धरती से क्षमा याचना करते हुए बुढिया को प्रणाम कर के राजधानी लौट गया.
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एक बार की बात है. एक राजा था. एक बार वो सैर करने के लिए अपने शहर से बाहर चला गया. उसे लौटते समय दोपहर का समय हो गया, उसे खेतों में एक किसान की झोपड़ी दिखाई दी. राजा खेत में विश्राम के लिए रुक गया. वहां झोपड़ी में किसान की बूढी माँ रहा रही थी. राजा को बहुत प्यास लगी थी, इसलिए उसने बुढियां से पिने के लिए पानी माँगा.
बुढिया ने एक गन्ना तोड़ लिया और उसका रस निकालकर राजा को दे दिया. राजा ने वो रस पिया और तृप्त हो गया. रस पिने के बाद राजा ने बुढिया से पुछा - तुम्हे राजा को इस खेत का कितना लगान देना पड़ता है. बुढिया बोली - बेटा हमारा राजा बहुत अच्छा, नेक और दयालु है. वह हमारे बीस बीघा जमीन का मात्र एक रुपया ही लगान लेता है. राजा ने सोचा इतने मधुर रस की पैदा वाले खेत का लगान साल में बस एक रुपया ही क्यों? इसलिए उसने सोचा कि राजधानी जाकर वो अपने मंत्री से इस बारे में विचार - विमर्श करेगा और गन्ने के खेतों का लगान बढ़ाने को सोचेगा. राजा बहुत थका हुआ था इसलिए सोचते सोचते उसे नींद आ गई.
जब वो उठा तो उसने बुढिया से फिर से एक ग्लास रस पिने के लिए माँगा. बुढिया इस बार भी एक गन्ने को लाकर रस निकलने लगी परन्तु उसमे से बहुत कम रस निकला. बुढिया दूसरा गन्ना ले आई लेकिन इस बार भी गिलास नहीं भरा. बुढियां ने इस प्रकार 5 गन्ने का रस निकाला तब जाकर एक गिलास रस का तैयार हुआ. राजा ने पुछा - माता जी, ये क्या हो गया, पहले जब तुमने रस निकाला था तो एक ही गन्ने से पूरा गिलास भर गया था परन्तु अब पांच गन्नो से एक गिलास भरा है. ऐसा क्यों?
बुढिया बोली - बेटा मुझे समझ नहीं आ रहा है क्योंकि ऐसा तो तब ही हो सकता है जब राजा की नियत में खोट आ जाए, क्योंकि ऐसा होने पर धरती अपना रस सोख लेती है, परन्तु हमारा राजा तो बहुत दयावान, प्रजावत्सल और धर्मबुद्धि वाला है, इसलिए ऐसा तो नहीं होना चाहिए था. बुढिया की बात सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया. राजा का चेतन और विवेक जागृत हो गया. राजधर्म प्रजा का पोषण करने के लिए कहता है उनका शोषण करने के लिए नहीं. अब राजा मन ही मन धरती से क्षमा याचना करते हुए बुढिया को प्रणाम कर के राजधानी लौट गया.
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