
आचार्य चाणक्य के अनुसार इन्सान को अपने मन की सभी बातें किसी से सांझा नहीं करना चाहिए. हमारे मन में दिन भर बहुत विचार आते रहते हैं और ये सभी विचार सबसे सांझा करने योग्य नहीं होते हैं. इसका एक example यह है कि आप जिस व्यक्ति से बात कर रहें है हो सकता है आपकी नजर में उसकी छवि खराब हो तो आपको उसे ये बात बोलनी नहीं है क्योंकि यदि आपने उससे यह बात बोल दी तो वो आपका कोई काम करना तो दूर उल्टा आपसे झगड़ा भी करेगा.
यदि आपको उस व्यक्ति से काम लेना है तो आपको उसके सामने केवल वो ही बात बोलनी है जो सामने वाले को अच्छी लगे और आपका भी फायदा हो. यदि आपकी नजर में वो इन्सान ठीक नहीं है तो आप बेशक उसके साथ कोई कार्य शुरू ही ना करें या उससे किसी कार्य को करवाने की इच्छा ना रखें और यदि आपको उससे काम निकलवाना है तो उसके सामने उसकी बुराई करने की बजाय उसकी सराहना ही करनी होगी जिससे वो खुश हो और आपका फायदा कर दे.